पद्मावत, पैडमैन व अय्यारी का प्रदर्शन तिकोन/ जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि :10 जनवरी 2018
अक्षय कुमार अभिनीत 'पैडमैन' अौर 'अय्यारी' दोनों जल्द ही प्रदर्शित हो रही हैं। भंसाली की 'पद्मावत' को सेन्सर का प्रमाण-पत्र मिल गया है और वह 25 जनवरी को प्रदर्शित होगी। 'अय्यारी' के फरवरी के शुरू में प्रदर्शित होेने की संभावना है। भंसाली को प्रदर्शन पूर्व प्रचार की आवश्यकता नहीं है। अनावश्यक विवाद ने बहुत प्रचार दे दिया है। सामान्य परिस्थितियों में जो लोग इसे नहीं देखते, वे भी अब देखना चाहते हैं। इसे सिमॉन द ब्वॉ 'काउंटर क्लोज़र' कहती हैं अर्थात जीतने वाला जानता है कि वह हार गया है। भंसाली की फिल्म विदेशों में बहुत आय अर्जित करेगी। अजीब बात है कि फिल्में अपनी मनोरंजन देने की क्षमता मात्र पर नहीं चलतीं। क्या दौर है कि विवाद बैसाखी बन गए हैं। हर क्षेत्र में गुणवत्ता खारिज हो रही है और हुड़दंग समानांतर सत्ता बन चुका है।
'पैडमैन' एक यथार्थ के व्यक्ति के प्रयास पर आधारित है परंतु 'अय्यारी' पूरी तरह काल्पनिक फिल्म है। आजकल हर फिल्म के प्रारंभ में निर्माता को डिसक्लेमर देना पड़ता है कि कथा काल्पनिक है और किसी भी व्यक्ति या घटना से साम्य महज इत्तेफाक है। बहरहाल, 19वीं सदी के अंतिम दशक में बाबू देवकीनंदन खत्री के उपन्यास 'चंद्रकांता' एवं 'भूतनाथ' के प्रकाशन के साथ ही अय्यार शब्द लोकप्रिय हुआ। अनेक लोगों ने इन उपन्यासों को पढ़ने के लिए हिंदी भाषा सीखी। इसी तरह इब्ने सफी की जासूसी दुनिया के कैप्टन विनोद और उनके हसोड़ साथी हमीद के कारनामे हिंदी में अनुदित होकर प्रकाशित हुए और अत्यंत लोकप्रिय हुए। यह गौरतलब है कि बाबू देवकीनंदन खत्री और इब्ने सफी दोनों के ही केंद्रीय पात्र जासूस हैं और पृष्ठभूमि अपराध की रही है। इसी तरह अगाथा क्रिस्टी के उपन्यास अत्यंत लोकप्रिय हुए और एक आकलन था कि अगाथा क्रिस्टी के पाठकों की संख्या केवल बाइबिल से कम है गोयाकि क्राइस्ट और क्रिस्टी सबसे अधिक पढ़े गए हैं। सर ऑर्थर कानन डॉयल का काल्पनिक पात्र शेरलॉक होम्स इतना लोकप्रिय हुआ कि उपन्यास में वर्णित उसके पते पर प्रतिदिन हजारों खत आते थे। लेखक थक गया तो उसने एक उपन्यास में शेरलॉक होम्स के पहाड़ी से गिरने के कारण मौत का विवरण लिख दिया। प्रशंसक नाराज हो गए, सड़कों पर प्रदर्शन होने लगे तो अगले उपन्यास में उन्हें शेरलॉक होम्स को जीवित दिखाना पड़ा। परोक्ष रूप से प्रशंसक लेखक बन जाते हैं और लोकप्रियता सृजनधर्मी व्यक्ति को मजबूर कर देती है। इसी तरह की लोकप्रियता के दबाव में हुक्मरान देश का अहित करने लगता है।
25 जनवरी की शाम से 29 जनवरी तक छुटि्टयों का बॉक्स ऑफिस लाभ उठाने के लिए निर्माता बेकरार हो रहे हैं। फिल्म व्यवसाय छुटि्टयों और त्योहार आधारित हो चुका है। सिनेमाघरों में तीन दिन भीड़ रहती है और चार दिन सन्नाटा पसरा रहता है। सच तो यह है कि सामान्य जीवन भी सप्ताहांत में सिकुड़ गया है। कई देशों में व्यक्ति के अंतिम संस्कार भी सप्ताहांत के लिए स्थगित कर दिए जाते हैं। संभवत: आत्माएं भी वेटिंग रूम में रखी जाती हैं कि चित्रगुप्त सप्ताहांत छुटि्टयों से लौटेंगे तब कर्म का बहीखाता देखकर स्वर्ग या नर्क का आवंटन होगा। जमीं पर व्यवस्था के दोष ही ऊपर की व्यवस्था के दोष बन जाते हैं। जमीन के आईने में ही ऊपर की परछाई मौजूद होती है। ऊपर का हव्वा धरती पर अन्याय और असमानता को एक मुखौटा प्रदान करता है। बकौल शैलेन्द्र, 'आदमी है आदमी तो जीत पर यकीन कर, अगर कहीं है स्वर्ग तो उतार ला जमीन पर।'
बाबू देवकीनंदन के अय्यार शत्रु को लखलखा सुंघाकर बेहोश करते हैं। आजकल लखलखा को क्लोरोफार्म कहा जाता है। नेता अपने भाषण और वादों का लखलखा संुघाकर अवाम के होशहवास हर लेता है। कुछ फिल्में भी इस तरह बनाई जाती हैं कि अवाम के लिए लखलखा साबित हों कुछ फिल्में जागते रहने का संदेश भी देती हैं। एक महान फिल्म का तो नाम ही 'जागते रहो' था। खाड़ी देश में कैदियों के साथ अमानवीय व्यवहार पर बनी एक फिल्म के कारण उस देश के जेल-नियमों में सुधार किया गया। 'मिडनाइट एक्सप्रेस' नामक फिल्म भी प्रभावशाली सिद्ध हुई। शांताराम की 'दहेज' फिल्म के प्रदर्शन के बाद दहेज विरोधी कानून बने। इस फिल्म में विवाह के पश्चात भी फरमाइश की जाती है और विवाहिता जान लेती है कि यह सिलसिला भी नहीं रुकेगा। उसका पिता ताज़ी फरमाइश के अनुरूप सामान लाकर बेटी को दिखाता है और पूछता है कि क्या कोई चीज छूट गई है। बेटी कहती है कि 'कफन नहीं लाए।' यह कहकर वह मर जाती है, क्योंकि उसने इस सिलसिले को रोकने के लिए पहले ही जहर खा लिया था।
बहरहाल, 'अय्यारी' ऐसा शब्द नहीं है कि शायरी में प्रयुक्त हो परंतु निदा फाज़ली ने क्या खूब इस्तेमाल किया है, 'औरों जैसे होकर भी बाइज्जत है बस्ती में, कुछ लोगों का सीधापन है, कुछ अपनी अय्यारी है, जीवन जीना सहज नहीं, यह है बहुत बड़ी फनकारी भी।'