परंपरा एवं प्रतिभा / जयप्रकाश चौकसे

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
परंपरा एवं प्रतिभा
प्रकाशन तिथि : 10 जून 2013


'आशिकी-२' लगभग 10 करोड़ में बनी फिल्म 70 करोड़ की आय प्राप्त कर चुकी है, अत: लागत पर मुनाफे की दृष्टि से यह 50 करोड़ में बनी फिल्में जो डेढ़ सौ करोड़ की आय पैदा करती हैं, से भी अधिक लाभ वाली फिल्म है। आदित्य रॉय कपूर और श्रद्धा कपूर को दर्शकों ने बहुत पसंद किया है और इस फिल्म का संगीत कर्णप्रिय होते हुए भी 'आशिकी' के संगीत से कमतर था। अत: सफलता का सारा श्रेय महेश भट्ट, लेखिका शगुप्ता रफीक और श्रद्धा कपूर तथा आदित्य रॉय कपूर को जाता है। एक तरह से यह अलहदा किस्म के कपूरों का दौर है, जिसमें आदित्य रॉय कपूर, श्रद्धा कपूर, अर्जुन कपूर उभर रहे हैं, जबकि शाहिद कपूर नए अंदाज की तलाश में हैं। साथ ही कुनाल रॉय कपूर भी चरित्र भूमिकाओं में चमक रहे हैं। ज्ञातव्य है कि एक बड़ी निर्माण यूटीवी कॉर्पोरेट के शिखर अधिकारी सिद्धार्थ रॉय कपूर के सगे भाई हैं आदित्य एवं कुनाल तथा इसी कंपनी ने अयान मुखर्जी की 'ये जवानी है दीवानी' के अखिल विश्व वितरण अधिकार खरीदे हैं। अत: एक नए किस्म का कपूर घराना मनोरंजन जगत मेें धूम मचा रहा है। ज्ञातव्य है कि सिद्धार्थ कपूर ने ही विद्या बालन से विवाह किया है, अत: अब विद्या भी कपूर हो गई हैं।

श्रद्धा कपूर किसी जमाने में खलनायक रहे शक्ति कपूर की सुपुत्री हैं और फिल्म उद्योग में कहा जा रहा है कि नई तारिकाओं में सबसे अधिक प्रतिभाशाली श्रद्धा ही हैं। इन नए उभरते कपूरों के साथ ही फिल्म उद्योग के प्रथम घराने का प्रतिनिधित्व रणबीर कपूर और करीना कपूर कर रहे हैं। फिल्म उद्योग के 100 वर्षों के इतिहास में इस प्रथम घराने के लोग ८५ वर्षों से सक्रिय हैं। यह कपूर घराने की यशगाथा नहीं है, परंतु संयोगों पर आधारित कथाओं की गिजा पर पलने वाले मनोरंजन उद्योग में भी यह संयोग मात्र है। प्रथम घराने के संस्थापक पृथ्वीराज कपूर विलक्षण व्यक्ति थे। उन्होंने उस दौर में ग्रेजुएशन किया था, जब इस तरह की डिग्री बड़ी सरकारी नौकरी दिलाती थी और उनके पिता बशेश्वरनाथ आला पुलिस अफसर थे। इन सुविधाओं के बावजूद अपने कॉलेज के दिनों से ही रंगमंच में सक्रिय पृथ्वीराज ने पेशावर की सुरक्षा छोड़कर १९२७ में मुंबई आकर संघर्ष किया, जब कथा फिल्मों को प्रारंभ हुए मात्र चौदह वर्ष हुए थे। वे अपनी पत्नी व पेशावर में उत्पन्न शिशु राज कपूर के साथ ही मुंबई आए। उन्होंने घोर संघर्ष किया और पहली बोलती फिल्म 'आलमआरा' में वे छोटी-सी चरित्र भूमिका में देखे गए। इसके साथ ही वे एंडरसन नाटक कंपनी में भी सक्रिय थे और मात्र तीन वर्ष पश्चात न्यू थिएटर्स कलकत्ता की पहली सुपरहिट फिल्म 'सीता' में श्रीराम की भूमिका करके सितारा बने। अशोक कुमार तीन वर्ष पश्चात सितारा बने। पृथ्वीराज ने ही फिल्म उद्योग में पूजा-पाठ, हवन इत्यादि की परंपरा प्रारंभ की और ताउम्र काले धन को हाथ नहीं लगाया। उनके परिवार में सभी आगामी पीढिय़ों ने फिल्मों से धन कमाया, फिल्मों में धन लगाया और अन्य व्यवसाय में रुचि नहीं ली। पृथ्वीराज ने पृथ्वी थिएटर्स की स्थापना की, जिसने पंद्रह वर्षों में २७०० प्रस्तुतियां कीं, जिनमें तेरह हजार घंटे वे मंच पर रहे। अत: कपूर-गाथा बताने के पीछे ठोस कारण हैं। संयोग पीढ़ी-दर-पीढ़ी नहीं होते।

नए कपूरों में अर्जुन कपूर के पिता सुरेंदर कपूर को भी विभाजन के बाद मुंबई आने पर पृथ्वीराज ने ही अवसर दिए और अर्जुन तीसरी पीढ़ी हैं। दूसरी पीढ़ी के अनिल कपूर आज भी सक्रिय हैं और उनकी पुत्री सोनम शीघ्र ही 'रांझना' में नजर आएंगी, जिन्होंने 'सावरिया' से यात्रा प्रारंभ की थी। बोनी कपूर ने दो दर्जन फिल्में बनाई हैं और अर्जुन उन्हीं के सुपुत्र हैं।

आदित्य कपूर सबसे पहले संजय लीला भंसाली की 'गुजारिश' में छोटी भूमिका में चमके, परंतु इसकी असफलता के बाद उनकी 'एक्शन रीप्ले' भी नहीं चली और दो वर्ष उन्होंने बिना काम के गुजारे तथा अच्छी पटकथा का इंतजार किया। महेश भट्ट उम्र के इस पड़ाव पर भी सजग हैं और नई प्रतिभा प्रस्तुत करने में उन्हें महारत हासिल है। श्रद्धा कपूर में साहस है कि उन्होंने आदित्य चोपड़ा की तीन फिल्मों का अनुबंध त्यागकर 'आशिकी-2' स्वीकार की और उसका चरित्र-चित्रण भी राधा की तरह प्रेम में समर्पित बाला का किया गया, जिसने उसे परदे पर जीवंत कर दिया। कुनाल रॉय कपूर खाए-पिए कपूर हैं, परंतु मोटापे के बावजूद वे 'ये जवानी है दीवानी' में पसंद किए गए। टेलीविजन पर राम कपूर भी अच्छे-खासे मोटे हैं, परंतु अभिनय प्रतिभा के कारण छोटे परदे के सबसे बड़े सितारे हैं।

दरअसल, प्रतिभा, परिश्रम और समर्पण किसी जति-विशेष, धर्म-विशेष या वंश मात्र का एकाधिकार नहीं है, वरन इसके धनी स्वयं एक वंश है, एक परंपरा है और प्रतिभाशाली व्यक्ति इस परंपरा से प्रेरित होकर अपने व्यक्तिगत योगदान से इसी प्रतिभा परंपरा को मजबूत बनाता रहता है। यह संगीत के घरानों की तरह है। कुछ वर्ष पूर्व टेलीविजन के एक कार्यक्रम में पाकिस्तान के एक बालक ने भारत के एक बालक से प्रतिस्पद्र्धा करने से यह कहकर इनकार कर दिया कि हम दोनों एक ही संगीत घराने के हैं, अत: हमारे घराने का भाईचारा हमें एक-दूसरे का प्रतिद्वंद्वी नहीं बनाता।