परकटी बैरण तै प्यार होग्या / नवीन रमण
अश्वनी और बबीता
अश्वनी
जाको राखे साइयां मार सकै ना कोई. बाल न बांका हो सके चाहे जगबैरी होई॥
अश्वनी मैं समझगी ओ लैटर तन्नै मेरे तै लिख्या था।
जूणसा (जो) काल (कल) हिन्दी के मासटर कै फंस गया था। बता कोए लैटर नै किताब मैं भी धरया (रखता,) करै। के तेरै गोज (जेब) कोनी थी। क्यूकर (कैसे-कैसे) तेरे लैटर मैं गलती काढण (निकाल) लाग रह्या था। बता लैटर का प्यार नी दिख्या बस गलती दिखी उसनै।
यो हिन्दी आळा मासटर है पक्का कमीण सै। ऊ तै पूरे टिक्के (तिलक) लगा कै आवै। अर जब उसी प्यार आळी कविता पढ़ावै फेर एक हाथ इसका आपणी पेंट मैं रहवै। कितनी भूंडी (बुरी तरह) ढाल खुजावै (खुजलाता) सै। शरम बी कोनी आती इसनै तो।
यो तो सुकर है एक क्लास मैं तीन बबीता सै। मासटर समझया कोनी कुण-सी बबीता तै लैटर लिख्या सै।
ऊ तै तू इतना सरमावै (शरमाना) अर लैटर मैं इतनी कसुत्ती-कसुत्ती बात लिख राखी थी। हाट कै (दोबारा) लिखिए तू मन्नै लैटर।
फूल बोया है तन्नै प्यार का, सुखण कोनी दयू।
बबीता बात की पक्की सै, तन्नै रोण कोनी दयू॥
तेरी प्यारी परकटी बबीता
- परकटी-छोटे बालों वाली