परख / मालती जोशी / पृष्ठ 1
रिश्ते सिर्फ खून के ही नहीं होते। कुछ रिश्ते हम स्वयं बनाते है या कह सकते है कि संजाग से बन जाते है। मालती जोशी द्वारा रचित पुस्तक ‘परख’ में भी उन सभी मानवीय रिश्तों का जिक्र किया गया है जिनके साथ मनुष्य अपना जीवन यापित करता है। इस पुस्तक में चौदह कहानियां संग्रहित हैं अधिकांश कहानियां औरतो की अनाम पीड़ा, उसके जीवन की सुरक्षा और उसके मर्म की पड़ताल करने से ये अत्यंत विचारोतेजक और आंतरिक करूणा से भर गई है।
ये करूणा उन पीड़ितों-शोषितों के स्वर से स्वर मिलाती है जो या तो न्याय की गुहार कर रहे है या नितांत चुप है। हमेशा से ही स्त्रियों का यह स्वभाव रहा है कि वह हर अनुचित बात को चुपचाप सह जाती है। पर यह भी सच है कि वक्त के साथ-साथ उनकी मानसिकता भी बदली है और अन्याय के खिलाफ ये आवाज़ उठाना भी सीख गई हैं।
इसकी झलक इस पुस्तक में संग्रहित ‘विषपायी’ और ‘बहुत दूरियॉं हैं मेरे आसपास’ में मिलती हैं। ‘विषपायी’ कहानी में वीणा नामक स्त्री पात्र विभिन्न रूकावटों के बाद भी अपनी पढ़ाई पूरी करती है। साथ ही वह सारी जिम्मेदारियां निभाती है जो आमतौर पर एक पुत्र ही निभाता है। लेखिका ने स्त्री के सभी रूपो का वर्णन इस पुस्तक मे अपनी कहानियों के माध्यम से किया है। फिर वह स्त्री एक पत्नी के रूप में हो, बहन के रूप में, मॉं के रूप में या बेटी के रूप में।
पश्चिमी संस्कति का भारतीय संस्कति पर जो प्रभाव पड़ रहा है इसका उल्लेख भी लेखिका ने अपनी कहानियों मे किया है। ‘अनिकेत’ और ‘कुतो से सावधान’ नामक कहानियों में कुछ ऐसा ही उल्लेख लेखिका ने किया है। आज कुता पालना एक फैशन सा हो गया है और ऐसा करने से एक मध्यमवर्गीय परिवार भी उच्च श्रेणी मे आ सकता है। आज कुता पालना एक स्टेटस सिंबल बन गया है। वहीं ‘अनिकेत’ मे एक ऐसी स्त्री को दिखाया गया है जो भारतीय संस्कति और परम्पराओं को हेय द्रष्टि से देखती है और विवाह के बाद अपनी सास को वद्वाश्रम तक पहुंचा देती है।
आज के समय मे जब समाज अपनी दकियानूसी विचारधारा को बदल रहा है, ऐसे में आज भी कई परिवार है जो स्त्री को विवाहोपरांत बंधक बनाकर रखते है। ऐसा ही सजीव चित्रण ‘बंधक’ नामक कहानी में मिलता है। जहां घर की बहू को दहेज के लिए परेशान किया जाता है और उसे पाई पाई के लिए मोहताज कर दिया जाता है। अंत में उसे अपने परिवार, जहां उसका जन्म हुआ और पली-बढी, उसे सदा के लिए छोड़ देना पड़ता है। बेमेल विवाह की समस्या भारतीय समाज मे काफी समय पहले से ही व्याप्त है। इसी का एक उदाहरण ‘परख’ नाम की कहानी में मिलता है। किन्तु सीमा नामक एक पात्र को इस समस्या से जूझते हुए दिखाया गया है और वह इसमे कामयाब भी हो जाती है।
कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि ‘परख’ में स्त्री के सभी रूपों का समावेश है। पुस्तक का आवरण रंगीन और सुंदर है। पुस्तक की भाषा भी बेहद सरल है। विभिन्न परिस्थितियों में स्त्री की मानसिकता को जानने का अवसर यह पुस्तक हमें देती है।