परछाई / ख़लील जिब्रान
Gadya Kosh से
जून के महीने का एक प्रभात था। घास अपने पड़ोसी बलूत वृक्ष की परछाई से बोली,
‘‘तुम दाएं-बाएं झूल-झूलकर हमारे सुख को नष्ट करती हो।’’
परछाई बोली,
‘‘ अरे भाई, मैं नहीं, मैं नहीं ! जरा आकाश की ओर देख तो। एक बहुत बड़ा वृक्ष है जो वायु के झोकों के साथ पूर्व और पश्चिम की ओर सूर्य और भूमि के बीच झूलता रहता है।’’
घास ने ऊपर देखा तो पहली बार उसने वह वृक्ष देखा। उसने अपने दिल में कहा,
‘‘घास ! यह मुझसे भी लम्बी और ऊंची-ऊंची घास ही तो है।’’
और घास चुप हो गई।