परजीवी / सुकेश साहनी

Gadya Kosh से
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"मालिक, रहम करो...एक पुड़िया दे दो।" रामदेव पानी से निकाल ली गई मछली-सा तड़प रहा था। "ओफ! आँतें कटी जा रही है, दे दो नहीं ंतो मर जाऊँगा..."

"ओए, कल मरता है तो आज मर जा!" जोगेंदर गुर्राया, "कल से कख भी दोहरा किया है तूने? तेरा बाप तुझ कमजात के लिए मेरे पास खजाना तो नहीं छोड़ गया जो पुड़िया दे दूँ। होश कर, दो हजार की पुड़िया खा चुका है पिछले महीेने से।"

"परदेश में तुम ही हमारे माई-बाप हो। मेरी खुराक दे दो...पूरा बदन फोड़े-सा लप-लप कर रहा है। मैं रात-दिन मेहनत करूँगा...सारा कर्ज चुका दूँगा। मालिक, अब और देर मत करो...मुझे कुछ हो जाएगा।"

"ओय मोहने..." जोगेंदर ने कुछ सोचते हुए कहा, "दे एक पुड़िया इस हरामी को।"

रामदेव की जान जैसे पुड़िया में ही कैद थी। उसने मोहन सिंह के हाथ से अफीम की पुड़िया झपट ली और जल्दी से एक गोली बनाकर पानी के साथ गटक गय। उसे लगा जैसे शरीर में ठंड पड़ गई है। सामान्य होते ही वह झाले से बाहर आ गया।

"इदंर के साथ खेतों में खाद बिखेर देना।" अपने पीछे जोगेंदर का आदेश-भरा स्वर सुनाई दिया।

उसने जानवरों के चारे के पास पड़ी टोकरी उठाई और थके कदमों से खेतों की ओर चल दिया। उसकी आँखों के आगे पाँच बरस पहले का वह दिन घूम गया जब वह अपने गाँव से काम की तलाश में यहाँ आया था। मोटी तनख्वाह और बढ़िया खाना...तब उसे लगा था अगर कहीं स्वर्ग है तो यहीं है। एक साल तक वह घर रुपए भी भेजता रहा था। धीरे-धीरे किस तरह जोगेंदर ने उसे अफीम का आदी बना दिया, उसे पता ही नहीं चला। अब पूरी पगार जोगंेदर ने उसे अफीम खरीदने में ही खर्च हो जाती है। कई बार उसने नौकरी छोड़कर अपने गाँव में रहने का निश्चय किया, पर अफीम की ज़रूरत ने उसे वापस जोगंेदर के झाले पर ला पटका। घर का ध्यान आते ही उसे याद आया कि उसने छोटे भाई के कई पत्रों का उत्तर नहीं दिया है। उसने अपनी जेब से मुड़ा-तुड़ा अंतर्देशीय निकाला और लिखने लगा...

प्रिय सूर्यदेव शुभ आशीर्वाद, तुम्हारा लिखा सभी पत्र मिला। आगे सूर्यदेव को मालूम हो कि हम यहाँ सकुशल हूँ, कोई बात की चिंता नहीं है। तुम मेहनत से मन लगाकर काम करना, बाकी सब काम सही रूप से पार भगवान कराएँगे। तुमने खेती-बाड़ी में पानी की दिक्कत के बारे में लिखा हैए सो अभी दामोदर काका से कह-सुनकर काम चलाओ, इसी में हम सबकी भलाई है बाकी जब दुनो जन एक साथ बैठेंगे तब निर्णय लेंगेए अभी हमारा घर आना हो न सकेगा। सूर्यदेव का मालूम कि हम लिखे थे तुम्हें इधर बुलावेंगे पर हम गलती पर थे। जो गलती हम किए तुम्हें नहीं करने देंगे। अपना जो जमीन का टुकड़ा, घर-द्वार है उसी से जुड़े रहना इसी में हमारा मान'-मर्यादा है, दिक्कत तो होगा पर घबराने से तो नहीं चलेगा। अपनी भाभी को इस बारे में मत बताना और इधर का चिंता नहंीं करना। बराबर पत्र देते रहना और क्या कहूँ थोड़ा लिखा बहुत समझना। छोटों को शुभ आसीस बड़ों को नित प्रति का सादर प्रणाम, तुम्हारा भाई रामदेव मिसिर।

"ओय सूर दे पुत्रा!" जोगेंदर की कड़कती आवाज उसके कानों में पड़ी, "तेरी हड्डियाँ विच वी हरामखोरी घुस गई!"

उसने जल्दी से चिट्ठी मोड़कर जेब में रखी और टोकरी में खाद भरकर खेत में बिखेरने लगा। उसे विचित्र अनुभूति हुई. उसे लगा जैसे खाद के साथ शरीर का रक्त भी जोगेेंदर के खेतों में बिखरता जा रहा है।

ठीक उसी समय जोगेंदर ने आलीशान झाले में दर्पण के सामने अपने चेहरे पर निगाह डाली। उसका चेहरा सेब की तरह लाल सुर्ख हो रहा था।