परदा जो गिर गया तो / महिमा वर्मा
आज 'पर्दे के पीछे' column का, 26 वर्षों का अनवरत सफर थम गया.....
श्री जयप्रकाश चौकसे को उनका आखिरी कॉलम लिखने पर भावांजलि उनके समस्त पाठकों की ओर से..... वे सदा स्वस्थ रहें हम पर उनके स्नेह की छांव बनी रहे.....
परदा जो गिर गया तो.. दुनिया के रंगमंच में सामने का मंजर चमकता,हँसता,खिलखिलाता,नूरानी नज़र आता है पर पर्दे के पीछे की दुनिया कुछ और ही कहानी बयां करती है,जीवन की धूप-छांव की,लाचार कदमों से लंबा सफर तय करने की,पत्थर का सीना तोड़कर पानी निकालने की|ऐसी ही पर्दे के पीछे की दुनिया से विगत छब्बीस वर्षों से पाठकों को रूबरू करा रहे हैं श्री जयप्रकाश चौकसे....बिना रुके,बिना थके....
पाठकों की जिंदगी का एक हिस्सा बन चुका है ‘परदे के पीछे’|और आज जब अंततः परदा गिर ही गया तो पहले तो मन डिनायल मोड में चला गया फिर जैसा की उनके पुत्र राजू के अनुसार ‘ऑल गुड थिंग्स कम टु एन एंड’| मेरा जे पी चौकसे (जैसा कि वह जाने जाते हैं)से दोहरा नाता है एक पाठक के अलावा वे मेरे बड़े स्नेहिल मौसाजी हैं|मेरे लिए बड़ा मुश्किल है यह कहना कि मैं उनकी एक पाठक की तरह से प्रशंसक हूँ या एक भांजी की तरह से उनके स्नेह से अभिभूत हूँ|वैसे पूरा चौकसे परिवार मौसाजी के अलावा भी उषा मौसी,मेरे दोनों भाई राजू व आदित्य,भाभियाँ अनीता एवं छवि और चारों बच्चे आपको अपने प्रेम व स्नेह से हमेशा सराबोर रखते हैं|आज जब ‘परदे के पीछे’ का शायद आखिरी कॉलम पढ़ा तो स्मृतियों का सैलाब उमड़ रहा है समझ में नहीं आता क्या लिखूँ?ऐसा लगता है जीवन की साधारण घटनाओं को भी कोई लिखता है क्या|लिखने के लिए तो कोई बहुत एक्सट्रा ऑर्डीनरी घटना होनी चाहिए|पर आज जब पीछे मुड़कर देखती हूँ तो बचपन से मेरे विवाहोपरान्त जब मिलना कम से कमतर होता गया,मैं कहीं भी रही जबलपुर,चेन्नई मौसाजी एक दिन के लिए भी आये तो मुझसे मिलने जरूर आए|और अब मैं इंदौर मैं हूँ तो लगता है कभी दूर गई ही नहीं थी|ये गहराई से कायम स्नेह-बंधन ही एक्सट्रा ऑर्डीनरी है बाकी जो यादें हैं वो बहुत ही साधारण सी प्रतीत होती हैं|
‘परदे के पीछे’ से झाँकते हुए किस्सों ने जहां एक ओर बॉलीवुड के निकट से दर्शन तो कराये ही पर जीवन का दर्शन भी उसमें से निकल निकल कर सामने आता रहा|समझ में ही नहीं आया कि लिखने वाला फिल्मी चकाचौंध का उपासक है या एक फिलॉसफर दरवेश|फिल्मी किस्सागोई से आरंभ हुए उनके लेख प्रेम,मानवीय करुणा,जिजीविषा,जीवन-मृत्यु की विवेचना करते हुए भावनाओं के सागर की अतल गहराइयों में डुबोते हुए बेशकीमती मोतियों तक पहुंचा देते हैं|फिल्मी समाचार से शुरू हुआ लेख जलवायु,भूमि,जल संरक्षण,तक किस सहजता से पहुँचा दिया जाता है यह लिखने वाले की बौद्धिक सम्पदा की कहानी कहता है|वर्ष 2011 में 31 दिसंबर को लिखा गया लेख आज भी उतना ही सामयिक है जितना तब था और शायद हर कैलेंडर नव वर्ष की पूर्व संध्या पर वैसा कि वैसा प्रस्तुत किया जा सकता है|जैसे लिखने में वे दो ध्रुवों को एक साथ साध लेते हैं वैसे ही स्वभाव में भी कभी नरम,कभी गरम,कभी नीम कभी शहद|भरी सभा में मोस्ट पोलीटकली इनकरेक्ट बात बिना पलकें झपकाए कर दंड पेलते हुए निकल जाने वाला इंसान और राज कपूर,ऋषि कपूर की मृत्यु पर विचलित होकर हफ्तों तक गम के सागर में डूबने वाला इंसान एक ही है यह विचार ही किसी अजूबे से कम नहीं प्रतीत होता|यह हद दर्जे का मुँहफट इंसान रिश्तों को किस कदर प्रेम सरिता से सिंचित कर के रखता है यह उनके संपर्क में आए व्यक्ति बहुत अच्छी तरह से जानते हैं|बुरहानपुर ,अपनी मिट्टी और वहाँ रहने वालों से अगाध प्रेम,फिल्मी दुनिया में ‘मेरा तुझसे है पहले का नाता कोई’की तर्ज़ पर बने अनमोल रिश्ते जैसे राज कपूर परिवार ,सलीम खान परिवार ,बोनी कपूर परिवार और कितने ही और|उनके बारे में कुछ लिखने बैठी तो ‘क्या भूलूँ क्या याद करूँ’ ‘क्या लिखूँ क्या छोड़ूँ’|उनके MIG वाले घर में हिन्दी एवं इंग्लिश पुस्तकों से भरी अलमारियाँ मैं जिनकी ओर सम्मोहित सी खिंची चली जाती थी,उस अनमोल खजाने से मैंने ही नहीं कितने ही अन्य लोगों ने भी अपनी ज्ञान पिपासा बुझाई है|उषा मौसी एक पर्फेक्ट लाब्रेरियन की तरह बकायदा एक रजिस्टर मेंटेन करती रही हैं की कौन पुस्तक ले गया और किसने वापस की|हाँ यह बात अलग है कि यह सिस्टम भी अनेकों बार फ़ेल हुआ ,कई पुस्तकें वापस नहीं आईं और दुबारा खरीदी गईं|मृत्युंजय,राग-दरबारी,कसप तो शायद ‘तिबारा’ खरीदी गई|इस सबके बावजूद भी पुस्तकों का लेन -देन अबाध गति से जारी रहा|ज्ञान के सागर में गोते लगाकर पाठकों तक बेशकीमती मोती पहुंचाने वाले चौकसे मौसाजी,ICU से भी अपना कॉलम लिखने वाले,अपने पाठकों के लिए जीने वाले जे पी चौकसे को अनगिनत पाठकों का प्यार भरा सलाम|आप स्वस्थ रहें,आपके दिल को सुकून रहे,इसी विश्वास के साथ कि शायद ये परदा पुनः उठ जाये ...........