परदेशी / ममता कालिया
अजब परिवार है हमारा।
तीन भाई-बहन तीन देशों में बसे हैं सब एक दूसरे के लिए तरसते रहते हैं जब हुड़क तेज उठती हैं तो एक दूसरे को लंबे-लंबे फोन कर लेते हैं, प्यार-भरे कार्ड भेजते हैं, अगले साल मिलने का वादा करते हैं कुछ दिनों को जी ठहर जाता है।
पहले सब इकट्ठे रहते थे लखपत कोट का वह बड़ा मकान भी छोटा पड़ जाता वहीं शादियाँ हुई, वहीं नौकरी लगी बड़े भाई केंद्रीय विद्यालय में शिक्षक नियुक्त हुए बहन ट्रेनिंग कॉलेज में प्रशिक्षक नीरद कपूरथला कॉलेज में लेक्चरर हो गया।
भाई अखबारों का गहन अध्ययन करते थे अमरजीत अखबार की तरफ ताकती भी नहीं थी नीरद कॉलेज जाकर कई अखबारों की सुर्खियाँ देख लेता उसकी दिलचस्पी का क्षेत्र साहित्य था।
उन्हीं दिनों भाई को कैनेडा जाने का रास्ता नजर आया अखबार में वहाँ स्कूलों के लिए दर्जनों पद निकले थे भाई-भाभी ने चार फॉर्म मँगा लिए घर में बड़ा बावेला मचा।
बौजी और बीजी ने कहा, 'दोनों भाई इकट्ठे चले जाओगे, हम किसके सहारे जिएँगे?'
भाई ने कहा, 'अमरजीत है, पंकज है और आपकी सारी कबीलदारी यही है।'
'बेटों का हाथ लगे बिना तो सरग भी नहीं मिलता,' बीजी रोने लगीं।
भाई बोले 'एक बार हम वहाँ जम जाएँ तो आप दोनों को भी बुला लेंगे बल्कि अमरो और पंकज को भी वहीं काम दिला देंगे।'
शाम को नीरद कपूरथला से लौटा तो बीजी ने उससे कहा, 'तू तो बड़ा मीसना (घुन्ना) निकला अपने आप बाहर जाने का प्रोग्राम बना लिया।'
नीरद हक्का-बक्का सारी बात जानते ही वह भड़क गया, 'मेरे लिए फैसला लेने का हक किसी को नहीं है चाहे कैनडा हो, चाहे टिंबकटू, मैं कहीं नहीं जाऊँगा।' भाई ने समझाया, 'यहाँ से चालीस गुनी तनखा मिलेगी, घर का सारा दलिद्दर धुल जाएगा।'
'आप धोओ अपना दलिद्दर मेरा फॉर्म कोई जमा न करे।'
'बेवकूफ, तू भरकर दस्तखत करेगा, तभी जमा होगा फॉर्म।'
'कहाँ हैं फॉर्म, लाओ मैं फाड़ दूँ,' नीरद उठा।
अमरजीत ने फार्म बीच में लपक लिया पंकज भी उस दिन वहीं आया हुआ था।
'तुम्हें नहीं जाना तो हमें दे दो हम भी निकल कर देखें इस नरक से।'
नीरद उलझ पड़ा, 'किसे नरक कह रही हो? इस घर को या उस घर को या अपनी नौकरियों को? हद है, जरा सी सेंध क्या मिली, तुम्हें यहाँ नरक दिखाई देने लगा?'
'क्या है यहाँ पर! सारे दिन मेहनत करो, गिने-गिनाए रुपए हाथ आते हैं चार ट्यूशन न करें तो घर का खर्च नहीं चलता आए दिन लूट-खसोट का आतंक।'
'जा बच्चा, तू भी गोरों का देस देख ले।,' बौजी ने कहा।
इस तरह एक-एक कर वे चारों चले गए हम भी बहुत दिन पंजाब नहीं रह पाए नीरद को इलाहाबाद युनिवर्सिटी में नौकरी मिल गई और हम सब इलाहाबादी बन गए।
इस बीच बच्चे छोटे से बड़े हो गए भाई की तीनों बेटियाँ और अमरो के चीनू मीनू हमारे ताक पर फोटोग्राफ बनकर रखे रहे उनके बारे में खबर मिलती रही कि सैंडी बहुत अच्छा पिआनो बजाती है, कि नीता ने सोशल वर्क में ग्रेजुएशन किया है और साधना की शादी वहीं के एक अमीर बाशिंदे से तय हो गई है हमारी स्मृतियों में वे अभी भी बच्चियाँ थीं, जो यहाँ से जाते वक्त रो रही थीं और कहती थीं, 'हमें नहीं जाना इतनी दूर, हम वापस आ जाएँगे।'
इस बार भाभी ने फोन पर कहा, 'भावना, हमारा बहुत अच्छा दोस्त रिचर्ड भारत जा रहा है एक हफ्ते राजस्थान घूमकर वह इलाहाबाद पहुँचेगा एक हफ्ते वह वहाँ रहेगा उसके आराम का पूरा ध्यान रखना घर की सफाई कर लेना कहीं भी गंदगी, मच्छर, छिपकली न दिखने पाए रिचर्ड डॉक्टर है तुम्हारे भाई उसे साथ लेकर आते, पर उन्हें अभी छुट्टी नहीं मिल रही हैं हमें तुम पर भरोसा है जैसे हमारे आने पर मेहमाननवाजी करती हो, वैसी ही करना।'
इस फोन के बाद काम के तामझाम में मैं बस चकरघिन्नी हो गई एक नजर घर पर डाली, दूसरी परिवार पर लगा, दोनों गड़बड़ हैं घर तो बिल्कुल अजायबघर बना हुआ था।
खाने के कमरे में बीजी का तख्त बिछा हुआ था ड्राइंगरूम का पलस्तर उखड़ा पड़ा था अंदर बच्चों ने अपने कमरे को कंप्यूटर-रूम बना रखा था पढ़नेवाले कमरे में कपड़े बिखरे रहते ड्रेसिंग टेबिल सीढ़ियों पर रखी थी और रसोई इतनी घिचपिच थी कि खुद मुझे ही उसमें सामान ढूँढने में गश आ जाता छोटे-से आयतन में बना यह फ्लैट ऐसा था कि इसमें मुहब्बत या मजबूरी के अलावा साथ रहने का कोई औचित्य नहीं था।
मैंने बच्चों से कहा, 'देखो, ताईजी के मेहमान तीन दिन बाद आ रहे हैं तुम अपना कमरा साफ कर लो बगलवाले कमरे में उन्हें ठहराएँगे वे तुम्हारा कमरा देखकर क्या सोचेंगे!'
बच्चों ने कोई ध्यान नहीं दिया दूसरी बार टोकने पर मन्नू अपने कमरे में पड़ी सारी किताबें, सी.डी. और तौलिए हमारे कमरे में पटक आया।
मैं घर-भर का कबाड़ पड़छत्ती पर डालती, आलमारियों के ऊपर चिनती, पौधों को छाँटती, पगलाई डोलती रही।
नीरद ने कहा, 'क्यों परेशान होती हो जैसा घर है, वैसा ही रहने दो अगर यहाँ उसे तकलीफ होगी तो अपने आप होटल में चला जाएगा।'
मेरे लिए यह तर्क ग्राह्य नहीं था वह क्या सोचेगा कि पढ़ी-लिखी लड़कियाँ हिंदुस्तान में ऐसे घर चलाती हैं। भाभी अलग खफा होंगी।
तीन दिन के घनघोर परिश्रम से मैंने अध्ययन-कक्ष में रद्दोबदल कर उसे अतिथि-कक्ष में तबदील कर दिया चुन-चुन कर घर की सभी नायाब चीजें यहाँ पहुँच गईं।
बिस्तर पर चार इंच का फोम का गद्दा, दीवारों पर पिकासो और विंशी की बनाई हुई तस्वीरों के फोटोप्रिंट, नया टर्किश तौलिया, विदेशी बाथरूम स्लिपर्स, नया जग और एक अदद फ्रिज भी कमरे के बाहर वाली जगह में रखवा दिया।
अन्नू ने इतनी तैयारियाँ देख कर कहा, 'वाह मम्मी! यह कमरा तो बिल्कुल विदेशी लग रहा है बस एक मेम की कसर हैं यहाँ पर।'
मैंने कहा, 'अन्नू, प्लीज तुम अपना म्यूजिक सिस्टम इस कमरे में लगा दो अगले हफ्ते तक की बात है।'
आश्चर्य कि बिना हुज्जत के दोनों बच्चों ने अपना जान से प्यारा म्यूजिक-सिस्टम अतिथि-कक्ष में फिट कर दिया मैंने चुन-चुन कर बाख, बिथोविन, मोजार्ट के कैसेट टेबिल पर रखे बच्चों ने कहा, 'हम थोड़ा पॉप भी रख देते हैं, नहीं तो उसका हाजमा खराब हो जाएगा।'
साढ़े छ: फीट लंबा रिचर्ड पार्कर जब नीरद के साथ घर में घुसा तो कमरा उसकी उपस्थिति से एकदम भर गया वह सभी से गर्मजोशी से मिला बीजी को उसने हाथ जोड़ कर कहा, 'नमस्टे!'
मैंने उसके लिए चीज सैंडविचेज बना कर पहले से ही रख लिए थे जल्दी से चाय बनाई पुरानी सेविका मालती का मन नहीं माना इतनी दूर से आए मेहमान को सिर्फ एक चीज के साथ चाय पिलाते हैं कभी? उसने आलू-प्याज के पकौड़े बना डाले और पापड़ तल दिए रिचर्ड इतना सब देख कर भौचक रह गया उसने गप से एक पकौड़ा मुँह में रखा 'ऊ औ आ।'
पकौड़ा बहुत गर्म था रिचर्ड कुर्सी से उछला और पकौड़ा मुँह से बाहर निकला, बच्चों की तरफ देखकर हँसा, 'सॉरी' उसने कहा फिर पकौड़े को फूँक-फूँककर मुँह में डाला।
'डेलिशस', उसने कहा और तीन चौथाई प्लेट चट कर गया उसे चाय भी बढ़िया लगी यह कहना मुश्किल था कि हमारी मेहनत रंग दिखा रही थी या उसका मूड।
शाम को हम उसे नदी-किनारे घुमाने ले गए उसकी आदत थी, वह एक-एक चीज के इतिहास में जाने का प्रयत्न करता।
'यह घाट किसने बनवाया, कौन से सन् में बना?'
'ये मूर्तियाँ कौन से भगवान की हैं?'
'इतने सारे भगवानों से आप लोग कन्फ्यूज नहीं होते?'
'यह मल्लाह कब से नाव चलाता है, इसकी उम्र क्या है?'
जाहिर था कि हम उसके सभी सवालों के जवाब नहीं दे पाए घर आकर हमें यह भी लगा कि हम अपने परिवेश के विषय में कितने कम तथ्य जानते हैं।
बीजी ने कहा, 'नीरद, रिचर्ड से कह कि निकर बनियान में बाहर न निकले कपड़े पहन कर जाया करे।'
पर रिचर्ड को बहुत गर्मी लग रही थी वह कैनेडा के एलबर्टा इलाके से आया था, जहाँ तापमान हिमांक से कई डिग्री नीचे रहता है।
अंग्रेजी जानते हुए भी उसका लहजा समझने में हमें थोड़ी दिक्कत हो रही थी किसी तरह काम-चलाऊ बातें हो जातीं पर मैंने पाया, बीजी और बच्चों को ऐसी कोई परेशानी नहीं थी वे सब मिलकर घंटो टी.वी. देखते भाभी ने अपने ऑफिस और घर के अंदर-बाहर का एक वीडियो टेप भी भेजा था उसे वी.सी.आर पर लगाकर वह बताता जाता, क्या हो रहा है जो बात शब्दों से स्पष्ट न होती, वह अभिनय करके पूरी करता सब ठहाके लगाते बिना भाषा के वह बीजी को भाई के हाल बता देता थोड़ी देर को मैं दोनों के बीच दुभाषिया बनी फिर बीजी ने मुझे उठा दिया।
'इसकी बातें मेरी समझ आ रही हैं,' उन्होंने कहा।
पहली रात मैं मनाती रही कि ऊपर के कमरे में कहीं कोई छिपकली, चूहा अपनी दैनिक गश्त पर न आ जाय मच्छरों के खिलाफ कई इंतजाम पहले से कर रखे थे।
खाने का समय सकुशल बीता सीधा-सादा शाकाहारी भोजन था उसे अच्छा लगा पानी उबला हुआ था, फिर भी उसने नहीं पिया उसने मालती से कहा, 'चाय'।
हिन्दी के दो तीन शब्द वह वहीं से सीख कर आया था 'अच्छा, हाँ, नहीं' का उच्चारण और अर्थ वह जानता था।
यह सोचते हुए कि हर विदेशी को खजुराहो जाने की बेताबी होती है, हमने उसके लिए टूरिस्ट बस से वहाँ जाने का आरक्षण करवा दिया उसे बताया उसने गर्दन हिलाई 'नो, आइ प्लान टु गो टु सारनाथ।' (नहीं, मेरा इरादा सारनाथ जाने का है।)
'सारनाथ हम सब किसी भी दिन कार से चलेंगे,' नीरद ने कहा, 'पहले तुम वह जगह तो देख लो, जिसके लिए भारत आए हो।'
उसने कहा, वह ट्री ऑफ नॉलेज, 'बोधिवृक्ष - देखेगा उसकी बहन ने उससे बौद्ध उपासना के उपकरण मँगवाए हैं, वे खरीदेगा।'
हमारे लिए अपने काम से छुट्टी लेना मुश्किल था उसने कहा, 'मैं अकेले चला जाऊँगा आप मुझे गाड़ी में बिठा दें।'
अच्छे मेजबान की तरह हमने कहा, 'अभी जल्दी क्या है,' आए हो तो दो चार दिन रह लो।'
उसने अपनी डायरी दिखाई, जिसमें उसके एक महीने के प्रवास का पूरा टाइम-टेबिल बना हुआ था।
'अनजान जगह में अकेले जाते तुम्हें डर नहीं लगता? मैंने पूछा।
'क्या आपको मुझसे डर लगा? नहीं न! फिर मैं आपसे कैसे डर सकता हूँ? इनसान तो हर जगह एक-सा है।'
'पर तुम्हारे पास हमारी भाषा नहीं है अपनी जरूरत कैसे बताते हो?'
'काम चल जाता है।'
'देखो, नीरद बोले, 'इस देश में जितने अच्छे लोग हैं, उतने बुरे भी कोई दुश्मन जैसा मिल गया, तब?'
'मुझे आपके भाई ने बताया था कि भारत में पानी के सिवा तुम्हारा कोई दुश्मन नहीं होगा,' रिचर्ड ने हँसते हुए कहा।
खजुराहो का आरक्षण रद्द करवा दिया गया अगले दो दिन का समय उसने ज्यादातर घर में बिताया दोपहर में वह आनंद-भवन देखकर आया रात के खाने पर हम सब इकठ्ठा बैठकर बातें करते रहे।
परिचय का प्रथम संकोच टूटने के बाद अन्नू मन्नू अपनी पुरानी बुलंदी पर थे मन्नू ने पानी अपने गिलास में डालने के चक्कर में मेज पर फैला दिया मैं परेशान हो उठी।
'कितनी बार कहा है, तुम दोनों छोटी मेज पर खाया करो।,' मैंने भुनभुनाते हुए झाड़न की तलाश की, जो नहीं मिला।
'तुम्हें कनरस पड़ा हुआ है बड़ों के बीच घुसकर बैठना क्या बच्चों को शोभा देता हैं?' मैं और भी बोलती दिन भर की भड़ास निकलने को थी वैसे भी परिवार का खयाल है कि डाँटते हुए मुझे नशा चढ़ जाता है गुस्से में मैं जनम-जनम की गलतियाँ गिनते लगती हूँ। दुखी होकर मन्नू ने खाना ही छोड़ दिया रिचर्ड ने इसरार किया, 'मन्नू, मैं तुम्हारा दोस्त हूँ मेरे कहने से खा लो प्लीज।'
'हमें भूख नहीं हैं।' उसने कहा।
उसके छोड़ते ही अन्नू ने भी अपनी प्लेट सरका दी।, 'हम भी नहीं खाएँगे।'
बीजी बोली, 'इधर तो आ, मैं तुम दोनों को खिलाऊँगी भगतिन बिल्ली की कहानी सुननी है?'
जब ये दोनों छोटे थे, दादी से कहानी सुनते हुए, उन्हीं के हाथ से खाना खाते थे अब बच्चे कुछ बड़े हो गए थे, पर खाने के समय कभी भी छोटे बन जाते।
दोनों के मुँह फूले रहे।
बीजी ने कहा, 'जो मेरे पास पहले आएगा, उसे एक रुपया मिलेगा।'
दोनों दादी के तख्त पर एक साथ उछलकर चढ़े मालती ने नई प्लेट में खाना लगाकर बीजी को दिया बीजी ने दोनों को बातों में ऐसा लगाया कि वे सारी रोटियाँ चट कर गए।
मेरा मूड अभी भी उखड़ा हुआ था हमारे घर में दो दिन भी सभ्यता से रहना दूभर है। बच्चों को अक्ल सिखाओ तो बड़े बोलने लगते हैं इसीलिए शायद रिचर्ड यहाँ से जल्दी जा रहा है।
रिचर्ड ने भोजन के बाद चाय पीते हुए हम दोनों से कहा, 'आपकी मेहमाननवाजी को मैं कभी भुला नहीं पाऊँगा। आपके परिवार में मुझे बहुत अपनापन मिला है।'
'और यहाँ की गड़बड़ियाँ भी कभी नहीं भूला पाओगे!' मैंने कहा।
'जिन्हें आप गड़बड़ियाँ कह रही हैं, उनके लिए हमारे देश में तरसते हैं लोग कहाँ मिलती हैं घर-परिवार की गर्मी मुझे देखिए, बारह साल की उम्र से अकेला हूँ माँ-बाप का तलाक हो गया पहले माँ के साथ रहा दो साल। बाद उसने दूसरी शादी कर ली फिर पिता के साथ रहा। उसके साल भर बाद पिता ने भी शादी कर ली मेरे लिए कहीं जगह नहीं बची थी।'
'अब तो आप वयस्क हैं।' मैंने कहा।
'पर कितना अकेला एक बात बताऊँ! वहाँ अलबर्टा में हम सब अकेले हैं, द्वीप की तरह आपके भाई कभी-कभी कहते हैं, नीरद ने ठीक किया, जो परदेस नहीं आया।
नीरद को अपने पर नाज हुआ बोला, 'रिचर्ड, मैं तो तभी जानता था कि रोटी के लिए कोई अपनी मिट्टी नहीं छोड़ता मेरा तो लिखने-पढ़ने का काम है शोहरत, बदनामी जो मिलनी है, यहीं मिले सात समुंदर पार चला गया तो कौन सुनेगा मेरी आवाज, मेरे शब्दों में से सारी खुशबू निकल जाएगी।'
'राइट,' रिचर्ड ने कहा, 'तुम्हारे भाई को उसका एहसास है। आपके घर में अभी डिनर के समय तीन पीढ़ियाँ एक साथ खाना खा रही थी। अरे, दुर्लभ सुख है यह ऐसा दृश्य देखे मुझे बरसों हो गए कि बच्चों के माँ-बाप अपने माँ-बाप के सामने आज्ञाकारी बच्चे बन जाएँ। तीन पीढ़ियाँ एक छत के नीचे, एक कमरे में प्रेम से बैठी हैं, कहीं कोई तनाव नहीं। आपके बच्चों को एक नॉर्मल लड़कपन मिल रहा है बहुत बड़ी बात है यह! इसे कभी कम करके मत देखिएगा।'
रिचर्ड सुबह बनारस चला गया, पर मुझे जीवन-भर के लिए शिक्षित कर गया वह अलमस्त परदेसी सिर्फ सैलानी नहीं था।