परिणय बंधन से बाहर था नलिनी-अशोक का प्रणय / जयप्रकाश चौकसे

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परिणय बंधन से बाहर था नलिनी-अशोक का प्रणय


आज हम ऋतिक रोशन और सुजैन के अलगाव की खबरों से स्तब्ध हैं। शादी की संस्था पर से धीरे-धीरे लोगों का विश्वास उठता जा रहा है, परंतु कुछ प्रेम कहानियां शादी के दायरे के बाहर घटित हुई हैं तथा ऐसी ही प्रेम कहानी थी हिन्दुस्तानी सिनेमा के पहले सुपर सितारे अशोक कुमार और शिखर नायिका नलिनी जयवंत की। दोनों ने एक-साथ कई फिल्में हैं जैसे ‘समाधि’ 1950, ‘संग्राम’ 1950, ‘जलपरी’ एवं ‘काफिला’ 1952 ‘लकीरें’ और ‘नाज’ 1954 तथा ‘मि एक्स’ एवं ‘शेरू’ 1957 आज पाठकों को यह जानकर आश्चर्य होगा कि 1950 में प्रदर्शित ‘संग्राम’ में नलिनी जयवंत ने स्विम सूट (बिकनी) पहनने का साहस दिया था और जब कोई दस वर्ष बाद नूतन ने स्विम सूट (बिकनी) ‘दिल्ली का ठग’ में पहना तब उन्होंने सगर्व कहा कि उनकी मौसी नलिनी जयवंत ‘संग्राम’ में पहन चुकी हैं। अशोक कुमार और नलिनी जयवंत की फिल्मों के प्रेम दृश्यों में भावना की तीव्रता और पैशन होता था, जिसे आजकल परदे पर प्रेम का रसायन कहा जाता है। अशोक कुमार और नलिनी के बंगले मुंबई के यूनियन पार्क चेंबूर में थे और नलिनी प्राय: स्नान के बाद छत पर अपने बाल सुखाने आती थीं तो अशोक कुमार दूरबीन से उन्हें ताकते थे, जो इसी काम के लिए खरीदी गई थी। उम्र का सोलहवां साल हमेशा के लिए प्रमियों के हृदय में स्थिर हो जाता है। इस प्रेम कथा का दिल छूने वाला प्रसंग अनेक वर्ष पश्चात घटित हुआ जब वृद्ध और बीमार अशोक कुमार का हालचाल उनके चौकीदार से नलिनी जयवंत पूछती थीं तथा उनका मनपसंद भोजन का डिब्बा चौकीदार को देती थीं। इसी तरह नलिनी के अस्वस्थ होने का समाचार मिलने पर अशोक कुमार नलिनी जयवंत को होम्योपैथी की दवा उनके चौकीदार के माध्यम से भेजते थे। इस अजीब प्रेम कथा का यह प्रसंग अनजाना ही रह जाता, यदि एक दिन सुनील दत्त अशोक के बंगले पर नहीं पहुंचते और वहां टिफिन कैरियर देखने पर अशोक कुमार उन्हें सारा मामला बताते। बुढ़ापे में युवावस्था के दोनों प्रेमी टिफीन बॉक्स को ही प्रेम-पत्र की तरह भेजते थे। गोया की हाल ही में प्रदर्शित एवं प्रशंसित इरफान खान अभिनीत ‘द लंच बॉक्स’ के अफसाने के दशकों पूर्व ऐसी हकीकत घटित हो चुकी थी। सुनील दत्त को जिस ‘रेलवे प्लेटफार्म’ में पहला अभिनय का अवसर मिला था, उसकी नायिका नलिनी जयवंत ही थीं। ज्ञातव्य है कि सन् 1951 में फिल्म फेयर द्वारा किए गए एक सव्रेक्षण में दर्शकों ने नलिनी जयवंत को सबसे मादक नायिका चुना गया था। ए.आर. कारदार ने जर्मन किवदंती ‘लीजेंड्स ऑफ काटमे’ से प्रेरित ‘जादू’ नामक फिल्म नलिनी जयवंत के साथ बनाई और खानाबदोश लड़की की भूमिका में नलिनी जयवंत ने कमाल का अभिनय किया था। दिलीप कुमार के साथ नलिनी जयवंत ने ‘शिकस्त’ में अभिनय किया और देवआनंद के साथ ‘राही’ तथा ‘मुनीमजी’ जैसी सफल फिल्मों में काम किया। उन्होंने अपने पच्चीस वर्ष के कॅरियर में साठ फिल्मों में अभिनय किया।

राज खोसला ने ‘काला पानी’ (1957) में नलिनी को अत्यंत महत्वपूर्ण चरित्र भूमिका के लिए किसी तरह मनाया। इस फिल्म में वे कोठे पर नाचने वाली की भूमिका में थीं, जिसके पास नायक देवआनंद के जेल में सजा भुगतते पिता की बेगुनाही का सबूत है और इस सबूत को पाने के लिए देवआनंद उससे प्रेम का स्वांग रचता है और हकीकत जानते हुए भी उसे सबूत देती है। इस फिल्म में उन पर एक गाना फिल्माया गया ‘जो मैं होती राजा बेला चमेलिया लटक रहती तोरे बंगले पर’ नलिनी ने इस बड़े मादक ठुमके के साथ प्रस्तुत किया। उन्हें इस भूमिका के लिए ‘फिल्म फेयर’ ने पुरुस्कृत भी किया। सच तो यह है कि वह बेला चमेलिया की तरह अशोक की यादों से ताउम्र चिपकी रही।

उन्होंने दो बार विवाह किया था- पंद्रह की उम्र में उनकी चार फिल्मों के निर्देशक देसाई से तथा वर्षो बाद निर्देशक प्रभु दयाल से। परंतु सच यह है कि प्रेम उन्होंने केवल अशोक कुमार से किया। बीस दिसंबर 2010 को 84 की वय में उनकी मृत्यु हुई और उनसे पहले चले गए।

अशोक कुमार कदाचित ऊपर से किसी दूरबीन द्वारा नलिनी को देखते रहे होंगे। बीमार अशोक कुमार का हालचाल उनके चौकीदार से नलिनी पूछती थीं तथा उनका मनपसंद भोजन का डिब्बा चौकीदार को देती थीं। इसी तरह नलिनी के अस्वस्थ होने पर अशोक कुमार नलिनी जयवंत को होम्योपैथी की दवा उनके चौकीदार के माध्यम से भेजते थे।