परिभाषा के परे लोकप्रियता / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि :24 अगस्त 2016
लोकप्रियता का रसायन अबूझ पहली है परंतु लोकप्रियता की सीमा का आकलन करना भी असंभव है। मुंबई में काम करने वाले सितारों को अपनी लोकप्रियता पर गर्व हो सकता है परंतु इस मामले में दक्षिण भारत के रजनीकांत की लोकप्रियता के सामने सारे सितारे बौने नज़र आते हैं। हॉलीवुड में भी कोई सितारा रजनीकांत की तरह लोकप्रिय नहीं है। घटना कुछ समय पूर्व हुई थी। मुंबई के एक फिल्म पूंजी निवेशक ने रजनीकांत की सुपुत्री सौंदर्या की एक फिल्म में धन लगाया था और फिल्म की असफलता के बाद पूंजी निवेशक अपना धन लेने चेन्नई पहुंचा। रजनीकांत ने उससे कहा कि दो माह बाद वे अपनी सुपुत्री का कर्ज अदा कर देंगे। यद्यपि इसमें कोई कानूनी बंधन नहीं था, क्योंकि सौंदर्या ने फिल्म के लिए पूंजी ली थी अौर लाभ मेें भागीदार होने के कारण घाटे का दायित्व भी पूंजी निवेशक का होता है परंतु रजनीकांत कहा कि वे नैतिकता के आदर्श के कारण धन लौटा देंगे। पूंजी निवेशक अपने खुराफाती दिमाग के लिए इतना बदनाम है कि अब मुंबई का कोई निर्माता उससे व्यापार ही नहीं करता।
पूंजी निवेशक चेन्नई के वकीलों से मिला कि उसे सौंदर्या के खिलाफ अदालती मुकदमा लड़ना है परंतु कोई भी वकील रजनीकांत की सुपुत्री के खिलाफ केस लेना ही नहीं चाहता था। उन्होंने पंूंजी निवेशक को समझाया कि अगर उसे दो माह में रकम वापसी की बात रजनीकांत ने कही है तो निश्चय ही उसे रकम मिल जाएगी। किसी भी वकील ने पूंजी निवेशक का केस नहीं लिया। उसके द्वारा मनमांगी रकम के प्रस्ताव के बावजूद किसी भी वकील ने काम नहीं लिया। चेन्नई के वकीलों में यह चर्चा होने लगी कि पूंजी निवेशक सिर्फ रजनीकांत को परेशान करना चाहता है, क्योंकि वे कानूनी तौर पर वह रकम लौटाने के लिए बाध्य नहीं है, फिर भी दो माह में लौटाने की बात कह चुके हैं। दक्षिण भारत में रजनीकांत के वादे पर सबको यकीन है।
बहरहाल, खुराफाती पूंजी निवेशक एक और वकील के पास पहंुंचा, जिसने उसे बातों के जाल में उलझाया, कुछ कागजों पर दस्तखत कराए और पुलिस को खबर की। पूंजी निवेशक को पुलिस ने थाने में ले जाकर बंद कर दिया। उसने जमानत के लिए अपने रिश्तेेदारों को बुलाया परंतु कोई भी वकील या कानूनी अधिकारी उनसे बात ही नहीं करना चाहता था। बहरहाल बात रजनीकांत तक पहुंची तो उन्होंने आवश्यक बॉन्ड भरकर पूंजी निवेशक को जेल से आज़ाद कराया और चंद ही घंटों में रकम भी लौटाकर उसे हर तरह से मुक्त कर दिया। पूंजी निवेशक को लोगों ने बताया कि रजनीकांत के खिलाफ उसकी मुकदमेबाजी की बात आम जनता को मालूम पड़ जाती तो उसके जीवन को खतरा हो सकता था। ज्ञातव्य है कि इस घटना के पूर्व भी रजनीकांत सुपुत्री सौंदर्या द्वारा बनाई किसी फिल्म का घाटा ईरोज कंपनी को लौटा चुके हैं। क्या मुंबई या दुनिया के किसी भी भाग में कोई अभिनेता इतना लोकप्रिय हो सकता है? कमाल की बात यह भी है कि रजनीकांत तमिलनाडु के नहीं हैं। उनका जन्म महाराष्ट्र में हुआ था और उनका नाम शिवाजी है। वे बेंगलुरू में बस कंडक्टर रहे और सिगरेट हवा में उछालकर ओठों में पकड़ने की अदा के कारण फिल्मों में अभिनय का अवसर मिला।
रजनीकांत की असीमित लोकप्रियता यह संकेत भी देती है कि मनोरंजन क्षेत्र में आपका जन्म, जाति, धर्म इत्यादि का कोई महत्व नहीं है। कई राजनीतिक दल रजनीकांत की लोकप्रियता का लाभ चुनाव में लेना चाहते हैं, लेकिन उन्होंने राजनीति में आने से इनकार कर दिया है। वे स्वयं को फिल्म तक सीिमत रखते हैं। वे अत्यंत साधारण आम आदमी की तरह जीवन जीते हैं और सभी सितारा तामझाम से पूरी तरह मुक्त हैं। कुछ वर्ष पूर्व श्रीदेवी ने चेन्नई में अपने मकान की गृहपूजा की और उस अवसर पर अपने श्वसुर सुरेंद्र कपूर का 75वां जन्मदिन चेन्नई मंे मनाया था। उस दावत में रजनीकांत हर मेहमान के पास जाकर उसे ड्रिंक या स्नैक्स स्वयं देतेे थे जैसे कि वेटर करते हैं। यह उनकी विनम्रता है। दावत के बाद प्राय: तीन बजे सुबह जब वे श्रीदेवी के बंगले से निकले तो हजारों प्रशंसक उनके लिए बाहर खड़े थे।
रजनीकांत ने अपने कॅरिअर के प्रारंभ से ही अपनी कमाई का बड़ा भाग गरीबों की सहायता के लिए खर्च करना प्रारंभ किया था। उनके यहां एक विभाग है, जो अर्जियों की जांच करता है और भरपूर सहायता देता है। उनकी मदद से कई गरीब उच्च शिक्षा पाते हैं, बीमारों का इलाज होता है और इसी मानवीय करुणा ने उनकी लोकप्रियता कोगढ़ने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है। रजनीकांत सिनेमा के परदे के परे भी महानायक हैं और वे मुंबई के स्वयं को महानायक कहलाने वाले व्यक्ति की तरह नहीं जीते, जिसने पूरे जीवन में किसी की सहायता नहीं की।
रजनीकांत की दान देने की प्रवृत्ति उन्हें आज का कर्ण बनाती है, जिसने अपना रक्षा कवच तक दान कर दिया था। महानायकों के पात्र उत्तर भारत में कल्पित किए गए हैं परंतु वे घटित दक्षिण भारत में होते हैं। दक्षिण भारत के एक कम आय वाले आम आदमी का जीवन भी सद्गुाणों से ओत-प्रोत हैं। हम उत्तर भारत में एक मंदिर के लिए गृहयुद्ध करने को तत्पर रहते हैं परंतु सबसे भव्य व सुंदर मंदिर दक्षिण भारत में हैं। द्रविड़ संस्कृति की गोद में आर्य संस्कृति पनपी है। मुद्दे की बात सिर्फ इतनी-सी है कि नैतिक मूल्यों के पतन के इस कालखंड में उन्हें दोबारा कैसे जीवंत किया जाए? यह राजनीति के दायरे के बाहर की बात है अौर सच तो यह है कि यह हर घर-आंगन की बात है, जिसे हम सार्वजनिक सभाओं में दुरुस्त करना चाहते हैं।