परिभाषा / सुधा भार्गव
क्या कहा? तुम्हारे मम्मी–डैडी भारत लौटने वाले हैं! तुम तो कह रहे थे, वे इस बार लंदन में छ: मास रहेंगे। यहाँ की नागरिकता लेने का उनका पक्का इरादा है। विष्णु ने अपने दोस्त को कुरेदा।
-हाँ! बहुत कुछ सोचा था, पर बंधु, सब गड़बड़ा गया। डैडी को ब्लडप्रेशर, डायबिटीज़ रोग सताते रहते हैं। स्पोन्ट्लाइटीज़के कारण माँ की गर्दन में इतना दर्द रहता है कि दर्दमारक दवाइयाँ खाते हुये भी मछली की तरह तड़पती रहती हैं। अरमान था, अच्छी से अच्छी चिकित्सा कराऊंगा, बहुत सुख दूंगा, पर दो मास के बाद ही वे उखड़ गए।
-वे क्या कहते हैं?
-बस तोते की तरह एक ही रट लगाए रहते हैं कि मन नहीं लगता। तू तो बीबी को बगल में थामे आफिस निकल जाता है। हम पीछे से क्या करें?
-घर का सन्नाटा उन्हें काटने को दौड़ता होगा। जल्दी से उन्हें दादी–बाबा बना दे फिर तो यहीं जम जाएँगे।
-यह बात नहीं है दोस्त, अंग्रेज़ हमारे देश में बाबू पैदा करके चले गए जो न मॉल जा सकते हैं और न बर्तन माँज सकते हैं, वे हुकुमरानी करते दूसरों के पैर तोड़ सकते हैं| भारत की नौकरशाही जिंदगी से इनके मिजाज आसमान पर चढ़ गए हैं| सुबह उठते ही चाहिए ‘बैड–टी--- लाया हुजूर|’ बदन दर्द है तो मालिशवाली चाहिए और पॉट के लिए चाहिए जमादार। यहाँ यह सब चलने वाला नहीं।
-इसका मतलब अंकल–आंटी को भारत में ज्यादा सुख है!
-खाक सुख! सुख की परिभाषा ही नहीं मालूम…
मगर किसे? एक प्रश्न हवा में फड़फड़ा उठा।