परियों की कहानियों जैसा शहर बुखारा उज़्बेकिस्तान / संतोष श्रीवास्तव
2012 में उज्बेकिस्तान के पर्यटन के बाद बुखारा शहर न देख पाने की अधूरी चाह बन मन में बसा था। सुना है ग्रेट सिल्क रोड पर स्थित उज्बेकिस्तान के बुखारा प्रांत की राजधानी बुखारा एक ऐसा टाइम कैप्सूल है जो हमें पांच हजार वर्ष पहले की सैर करा देता है। ढेरों मदरसे, मस्जिद, हमाम, मीनारें, मकबरे, हरे नीले रंगों वाली पच्चीकारी युक्त दीवारें ऐसा लगता है जैसे हम बादशाहो, नवाबों के युग में लौट आए हैं। प्राचीन बस्तियाँ आज भी यहाँ मौजूद हैं। एक विशाल परिसर तो पूरी ऐतिहासिक इमारतों को समेटे प्राचीन काल की सैर करा देता है। अबू-अली-इब्ने-सिनो, मोहम्मद अल बुखारी, उमर खय्याम जैसे मशहूर लोगों की नगरी बुखारा 1993 में यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज की लिस्ट में शामिल है।
इस बार मौका मिला विश्व मैत्री मंच द्वारा ताशकंद में आयोजित किए जा रहे अंतर्राष्ट्रीय साहित्य सम्मेलन में जिसमें मैं 24 से 30 अगस्त 2019 तक अपने 28 साहित्यकारों के दल के साथ दोबारा उज्बेकिस्तान गई।
आश्चर्य मिश्रित हर्ष आलीशान पांच सितारा होटल ग्रैंड प्लाजा को देखकर हुआ जहाँ हमें 6 दिन रुकना था। यह वही होटल था जहाँ जुल कुमार ने राज कपूर की तस्वीर स्केच की थी। रिसेप्शन में ही राज कपूर की स्मृति में पियानो रखा था। जगह-जगह दीवारों पर राज कपूर की तस्वीरें, उनकी फिल्मों के दृश्य की तस्वीरें लगी थीं। हम रात को ताशकंद पहुँचे थे। इसलिए भरपूर नींद लेकर सुबह तरोताजा होकर नाश्ते के बाद सम्मेलन में हाजिर थे। सम्मेलन में भारत, अमेरिका तथा उज्बेकिस्तान देशों से आए 32 साहित्यकारों ने साहित्य के विभिन्न विषयों पर चर्चा विमर्श कर हिन्दी को वैश्विक स्तर पर एक सूत्र में लाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की। दूसरे सत्र में चर्चा के विषय "21वीं सदी की कविताओं में स्त्री विमर्श" विषय पर विभिन्न साहित्यकारों ने अपने विचार रखे। आयोजन की समाप्ति के बाद पर्यटन के लिए निर्धारित स्थलों का भ्रमण, ताशकंद के बाद समरकंद। उन सभी स्थलों को मैं दोबारा देख रही थी। कहीं कोई परिवर्तन दिखाई नहीं दिया। सब कुछ ज्यों का त्यों था। फिर आया वह पल जब मैं समरकंद से अपने साथियों के साथ बुखारा जाने वाली ट्रेन में बैठी।
हम रात को बुखारा पहुँचे। हमें एक किलेनुमा खूबसूरत होटल ल्याबी हाउस में ठहराया गया। निश्चय ही यह होटल पहले खूबसूरत किला रहा होगा। होटल के आसपास यहूदी स्थापत्य की हवेलियाँ और शाही भवन थे। ये सभी हवेलियाँ और शाही भवन अब होटल में तब्दील हो गए हैं।
सुबह गर्मागर्म नाश्ता सर्व करते मुस्कुराते खूबसूरत चेहरे हमारी आवभगत करते नजर आए। देखते ही हमें नमस्ते करना उनकी मेहमान नवाजी का प्रतीक है। 2 लाख 75 हज़ार की आबादी वाले बुख़ारा का बहुत ही समृद्ध इतिहास है जिसे देखने के लिए हम होटल से पैदल ही निकले। गाइड ने बताया था कि बुखारा के सभी दर्शनीय स्थल हमारी पैदल यात्रा की हद में ही थे।
5000 वर्ष पुराना बुखारा का यह शाही परिसर एक तरह से इस्लाम का तीर्थ स्थान है जिसमें 713 वीं सदी में निर्मित महल, अट्टालिकाएँ, शाही भवन, बारादरी ... लगा कि जैसे सदियों पुराने समय की उंगली पकड़े पहुँच गई हूँ बुखारा के सुल्तानों के महलों में।
विदेशी आक्रमण कई बार होने और हर बार ध्वस्त इमारतों के पुनर्निर्माण के कारण यह शहर ऐसा लगता है जैसे अभी ही निर्मित हुआ है।
ल्याबी हाउस से 5 मिनट की दूरी पर ल्याबी हौज है जो एक छोटा-सा सरोवर है। इस सरोवर के आस-पास ही पूरा का पूरा बाज़ार लगा है। गलियारों में खाने-पीने की दुकानें। दो कूबड़ वाले ऊंट की मूर्ति जो मैंने पहली बार यहीं देखी, महिलाओं के शृंगार की वस्तुएँ, जेवर आदि। सामने दिख रही थी 16वीं सदी में बनी नॉघाई कारवांसेरी की भव्य इमारत। एक जगह सूखे पेड़ों के तनों पर बेहद सुंदर डिजाइन वाले कपड़े लपेटे गए थे। हस्तशिल्प का इससे बढ़िया विज्ञापन और क्या हो सकता था।
मुल्ला नसरुद्दीन की मूर्ति नॉघाई कारवांसेरी के विशाल परिसर में थी। बचपन में चंदा मामा में देखते थे कि मुल्ला नसरुद्दीन गधे पर सवार है। उसी रूप सज धज में अब यहाँ मूर्ति के रूप में साकार देख रहे थे। हम सबने उसके संग फोटो खिंचवाई।
सामने नादिर दीवान बेगी मदरसा है जिसके दरवाजे पर अमर पक्षी जिसे फिनिक्स पक्षी भी कहते हैं का रंग बिरंगा चित्र भी मन मोह रहा था। फिनिक्स पक्षी मरने के बाद अपनी राख से दुबारा पैदा हो जाता है ऐसी मान्यता है।
नॉघाई कारवांसेरी इमारत खान मोहम्मद रिहिम्बी ने अपने शासनकाल में बनवाई थी। इस इमारत में वह बाहर से आने वाले व्यापारियों को ठहराता था। इमारत एक मंजिल की है जिसमें मेहमानों के खाने-पीने, सोने, विचार विमर्श करने के लिए 45 कमरे हैं। नौकरों के लिए अलग कमरे। अब इस विशाल परिसर को हस्तशिल्प के बाज़ार में परिवर्तित कर दिया गया है। बेहद खूबसूरत हस्तशिल्प के नमूनों से भरे इस बाज़ार की सैर बड़ी रोमांचक थी। यहाँ कलाकार अपनी कला का प्रदर्शन भी करते हैं। एक जगह हाथ करघे पर सिल्क के डोरों से कपड़ा बुना जा रहा था। एक स्टॉल पर हमें एक बुजुर्ग महिला सिल्क के कुर्ते पर लकड़ी का फ्रेम चढ़ाकर कशीदाकारी करती मिली जो बिल्कुल रूसी लेखक पुश्किन की नज़्म की नायिका जैसी खूबसूरत थी। हस्तशिल्प के खिलौने कठपुतलियाँ भी थीं। कठपुतली वाला हमें देखकर तुरंत कठपुतली का नाच दिखाने लगा। वह भारतीय अभिनेता अभिनेत्रियों के नाम लेता और उनसे सम्बंधित गाने सुनाता।
गाइड ने बताया कि अब हम चल रहे हैं मघोक ए अत्तर मस्जिद जो उज्बेकिस्तान की सबसे पुरानी मस्जिद है। यह 9 वीं सदी में बनाई गई थी और इसका पुनर्निर्माण सोलहवीं सदी में किया गया था।
"आपको पता है दिल्ली की जामा मस्जिद के इमाम सैयद अब्दुल्ला बुखारी के पूर्वज बुखारा से ही भारत आए थे।"
मैंने गाइड से कहा तो वह बोला "यहाँ आपके देश के गौतम बुद्ध के मंदिर भी हैं। लेकिन अब उनके अवशेष ही रह गए हैं और पारसी मंदिर के अवशेष भी हैं देखिये।" कहा जाता है कि तब यहाँ पारसी और बौद्ध अनुयायी पूजा आराधना करते थे। बाद में इसे तुड़वाकर इस पर मस्जिद बनाई गई। तोड़ने और निर्माण करने का कार्य लगातार आक्रमणकारियों के कारण होता रहा। अभी जो मस्जिद है वह मंगोलों ने बनवाई और आक्रमण से बचाने के लिए उसे रेत के टीलों में छिपा दिया गया। 1930 में जब इन टीलों से मस्जिद की बुर्जियाँ झांकी तो इसे खुदाई करके बाहर निकाला गया। अद्भुत...
आसपास के खंडहर उस युग के सार्वजनिक स्नानागार हैं।
चलते चलते एक और बाज़ार आया "ताकी तल्पक फरोश बाजार" सोने, चांदी, हीरे, जवाहरात की दुकानों से जगमग, लेकिन सब कुछ बहुत महंगा। इस बाज़ार ने पर्यटकों को खूब लुभाया। इसी परिसर में मीर ए अरब मदरसा भी है जिसे 1536 में बुखारा के शाह अब्दुल्ला खान ने बनवाया। मदरसे का बहुत बड़ा प्रांगण है जिसके प्रवेश द्वार पर नीले रंग की गुंबद है। उबेदुल्ला खान को इसी मदरसे में दफनाया गया था क्योंकि तब मकबरे बनाने का चलन नहीं था।
पो ए कलान परिसर की सबसे ऊंची भव्य और पुरानी मीनार है कलान मीनार। इस मीनार से मस्जिद का इमाम अजान तो देता ही था साथ ही मृत्युदंड पाए कैदियों को यहीं से मौत की सजा भी दी जाती थी। इसलिए इसे ड्रेथ टावर भी कहते हैं। कैदियों को मीनार तक ले जाकर नीचे पथरीली जमीन पर ढकेल दिया जाता था। उफ कितनी लोमहर्षक, वीभत्स मौत।
208 खंभों पर 288 गुंबद वाली वास्तुकला की बेहतरीन मस्जिद बीवी खानम मस्जिद 1514 में बुखारा के सुल्तान ओबेदुल्ला गाजी ने बनवाई। इसी के पास महिला शाही हम्माम है। हमारे ग्रुप की सभी महिला सदस्यों के साथ मैं घुमावदार रास्तों से होकर इस हम्माम में जब दाखिल हुई तो वहाँ हल्के खुशबूदार धुँए से हॉल को भरा पाया। हॉल में एक महिला बिल्कुल नग्न लेटी थी और एक उज्बेकी महिला उसका मसाज कर रही थी। यहाँ शाही परंपरा से खुशबूदार तेल से मसाज होता है। एक कॉर्नर पर लाल गुलाब की पंखुड़ियाँ कई तरह के लोशन नक्काशी दार कटोरों में रखे थे। शाही हम्माम सुल्तानों के समय की याद दिला रहा था। कहते हैं बुखारा के सुल्तानों में सुल्तान अब्राहिम सबसे अय्याश सुल्तान था।
उसकी 16 हज़ार बेगमें थीं। वह सवा लाख के जूते पहनता था जिसमें हीरे मोती जड़े थे।
18 लाख घोड़े, हाथी थे उसकी सेना में।
उसके महलों में घूमते हुए मुझे लगा जैसे वे 16 हज़ार बेगमें मेरी ओर पीड़ा भरी आंखों से देख रही हैं। उज्बेकिस्तान से भारत लौटने तक वे आंखें जैसे मेरा पीछा करती रहीं।