परिवार, प्रयोगशाला और प्रेम / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 31 अगस्त 2018
प्रयोगशाला में ऐसे गोश्त निर्माण पर शोध किया जा रहा है, जिसमें किसी पशु के प्राण नहीं लेने पड़े। इस आभासी गोश्त खाने वाले को लगेगा कि वह असल गोश्त ही खा रहा है। पशुओं और पर्यावरण की रक्षा के लिए यह शोध किया जा रहा है। इस तरह व्यावसायिक हुड़दंगियों के हाथ से एक मामला निकल जाएगा। शोध करने वाले प्रयास कर रहे हैं कि स्वाद में कहीं कोई कसर नहीं रहे। डिब्बे में बंद पावडर को पानी में घोलकर दूध बनाया जाता है, जिसके स्वाद को असल दूध की तरह करने के प्रयास भी हो रहे हैं।
मां के दूध समान शक्ति अन्य प्रकार के दूध में नहीं होती। मां के दूध के साथ एक भावना जुड़ी है। जिसका उत्पादन किसी प्रयोगशाला या कारखाने में नहीं किया जा सकता। भावना के उत्पादन के भी प्रयास हो रहे हैं। दरअसल, भावना उत्पादन में राजनैतिक दल सफल हो चुके हैं। कार्यकर्ता के अवचेतन में नेता की छवि ठूंस दी जाती है। राजनीति का संसार भी भावना की धुरी पर ही घूमता है। शिकागो विश्वविद्यालय की मार्था सी. नुसबौम की लिखी किताब 'पॉलिटिकल इमोशन' में बहुत गहराई से यह प्रस्तुत किया गया है कि महान नेता महात्मा गांधी ने किस तरह भावना की शक्ति से एक सफल आंदोलन चलाया। अब्राहम लिंकन भी यह कर चुके थे। दरअसल राजनीति के क्षेत्र में दो तरह की भावना का उत्पादन किया जाता है।
कुछ दल उस तीव्र भावना को जगाते हैं, जिसमें हिंसा के तत्व शामिल होते हैं। कुछ दल प्रेम प्रेरित भावना जगाते हैं जो अहिंसा की उर्जा से संचालित हैं। बहरहाल, यह तो सच है कि भावना उत्पादन में राजनीति क्षेत्र ने विज्ञान की प्रयोगशाल के पहले ही सफलता अर्जित कर ली है। शेखर कपूर की फिल्म 'क्वीन एलिजाबेथ' की नायिका केट ब्लेन्चेट ने उन क्षेत्रों की यात्रा की है जहां से रोहिंग्या को अपने जन्म स्थान से खदेड़ा जा रहा है। उसने कहा है कि सारा पलायन पूर्व नियोजित हिंसा है और इसमें प्रेम भावना को नष्ट किया जा रहा है। इतिहास चक्र का व्यंग्य देखिए कि इसी बंगाल से खदेड़े गए नब्बे हजार शरणार्थियों ने भारत में शरण ली थी और तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमति इंदिरा गांधी ने उस क्षेत्र को स्वतंत्र कराकर एक स्वतंत्र देश की स्थापना की थी और आज रोहिंग्या लोगों को खदेड़कर उसी बंगलादेश में भेजा जा रहा है।
प्रेम भावना को राजनीतिक स्वार्थ, नफरत की अभिव्यक्ति का माध्यम बना देता है। यह भी गौरतलब है कि हॉलीवुड के कुछ सितारों ने मानव अधिकार के हित में कार्य किए हैं जैसे मर्लन ब्रैन्डो ने ऑस्कर अस्वीकार किया, क्योंकि अमेरिका ने रेड इंडियंस के साथ अन्याय किया था। मुंबई फिल्म उद्योग के सितारे इस तरह की मुहिम में शामिल नहीं होते। इसका एक कारण यह भी है कि सत्तारूढ़ दल सेंसरबोर्ड के माध्यम से उन पर गहरा दबाव पैदा करने में सक्षम हैं। इसके साथ ही उन्हें हुल्लड़बाज लोगों के माध्यम से भी डराया जाता है।
विज्ञान की प्रयोगशाला में बना हुआ गोश्त बहुत से विवाद समाप्त कर देगा और साथ ही पर्यावरण की रक्षा भी करेगा। दरअसल, आज सबसे बड़ा मुद्दा तो पृथ्वी के संरक्षण का है। जिसके के लिए करोड़ों पौधे लगाना आवश्यक है। सरकार पौधारोपण कार्यक्रम संचालित करती है परंतु ट्री गार्ड की चोरी हो जाती है और अधिकांश बीज अंकुरित ही नहीं हो पाते। अब ट्री गार्ड की रक्षा के लिए तो सरकार होमगार्ड को नहीं भेज सकती। कहीं भीषण बाढ़ आई है तो कहीं सूखे से बचाव के कार्य हो रहे हैं। प्रेम भावना का लोप सबसे बड़ी समस्या है। नफरत की शक्तियां बहुत शक्तिशाली होती हैं। क्या प्रयोगशाला में मनुष्यों का निर्माण भी किया जाएगा और वे रोबो से अलग प्रकार के होंगे? पृथ्वी को अस्तित्व बचाने के लिए
प्रेम, स्नेह और सक्रिय अहिंसा परिवार नामक प्रयोगशाला में ही संभव है। अत: सबसे अधिक आवश्यक है कि परिवार नामक संस्था कि रक्षा की जाए और यह परिवार राजनीति में प्रचलित परिवार से सर्वथा अलग बात है। छदम परिवार प्रेम को बड़जात्या ने फिल्म माध्यम में बहुत भुनाया है।