परिवार की शतरंज पर शह और मात का खेल / जयप्रकाश चौकसे

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परिवार की शतरंज पर शह और मात का खेल
प्रकाशन तिथि :21 सितम्बर 2017


सेन्सर बोर्ड ने एक फिल्मकार से आलिया भट्‌ट का अनापत्ति प्रमाण पत्र मांगा है क्योंकि फिल्म के नायक ने एक दृश्य में उनका नाम उच्चारित किया है। जबकि वे फिल्म में अभिनय नहीं कर रही हैं। पटकथा के संवाद में भी आलिया का नाम नहीं था। स्पष्ट होता है कि मल्होत्रा के अवचेतन में आलिया का नाम छाया हुआ है परन्तु कभी नीमबेहोशी में मुंह से निकले नाम का यह अर्थ नहीं लगाया जा सकता है कि वह व्यक्ति उसे प्यार करता है। गुरुदत्त की फिल्म 'साहब, बीबी और गुलाम' में ज़बा नामक पात्र नीमबेहोशी में सुपवित्र का नाम बड़बड़ाती है और उसके पिता समझते हैं कि वह सुपवित्र से प्रेम करती है। उनके विवाह का निश्चय करते हैं परन्तु ज़बा तो भूतनाथ से प्रेम करती थी। जब ज़बा के पिता मृत्युशैया पर उसकी शादी सुपवित्र से करने की बात करते हैं तो वह सुपवित्र को अपने घर से दूर जाने का आदेश देती है। उपन्यास में केवल संकेत है कि ज़बा की शादी भूतनाथ से होती है परन्तु फिल्म में उन्हें विवाहित ही प्रस्तुत किया गया है।

गुरुदत्त ने पटकथा लेखन के समय उपन्यासकार को मुंबई निमंत्रित किया था और वे लेखन के समय मौजूद रहे परन्तु सारा काम गुरुदत्त और अबरार अल्वी ने ही किया। आठ सौ पृष्ठों के उपन्यास में से गुरुदत्त ने केवल हवेली की उस बहु के पात्र पर ध्यान दिया जिसने अपने शराबी और अय्याश पति को सदराह पर लाने के उसकी इच्छा के अनुरूप शराबनोशी प्रारंभ की परन्तु पति के सुधर जाने के बाद वह शराब पीना बंद नहीं कर पाई। उसकी इस निसहायता को ही केन्द्र में रखा गया है।

इस फिल्म के गीत गुरुदत्त की पत्नी गीतादत्त ने गाए हैं और पात्र की भावनाओं को बड़ी शिद्दत से महसूस करके आवाज में दर्द पैदा किया है। यह गौरतलब है कि कालांतर में गीतादत्त बहुत पीने लगीं। नागपुर में उनके गायन का कार्यक्रम आयोजित किया गया परन्तु वे गा नहीं पाईं। गुरुदत्त ने आयोजकों की हानि की भरपाई की। गुरुदत्त की आत्महत्या के लिए लोगों ने उनकी वहीदा रहमान से अंतरंगता की बात फैलाई परन्तु यह सच नहीं है। उन्होंने गीतादत्त से प्रेम विवाह किया था और ताउम्र उसे ही चाहा। इस फिल्म के एक दृश्य में सामंतवादी पात्र की नपुंसकता की ओर महीन संकेत है जब शराबनोशी की आदी बनी बीवी कहती है कि क्या उसके पति ने उसे वह सुख दिया जिस पर पत्नी का अधिकार होता है? क्या उसने उसे मां बनने की सहूलियत दी।

यह बात भी गौरतलब है कि राजकपूर की 'जागते रहो' में भी नपुंसकता का संकेत है और विलक्षण चरित्र अभिनेता मोतीलाल ने यह काम किया। इस अभिव्यक्ति में गीतकार शैलेन्द्र ने भी कमाल किया है। गीत के बोल हैं 'पिया आज खिड़की खुली मत छोड़ो, हल्की हल्की चले बयार, पिया खिड़की खुली मत छोड़ो, पपीहे ने प्यास बुझाई, मैं रही फिर भी प्यासी, बाती जली मत छोड़ो, पिया खिड़की खुली मत छोड़ो'। इस गीत के छायांकन के समय ठरकी आदतन शराबी जमींदार महसूस करता है कि उसने अय्याशी में सबकुछ गंवा दिया और आज वह पतिधर्म भी निर्वाह नहीं कर सकता। मोतीलाल एक संवेदनशील कलाकार थे और न्यूनतम शारीरिक हरकत करके बड़ी से बड़ी बात अभिव्यक्त करते थे। उन्होंने 'छोटी छोटी बातें' नामक सार्थक फिल्म का निर्माण व निर्देशन भी किया था जिसके एक दृश्य में यह भी स्पष्ट किया था कि परिवार में सफल सदस्य का सम्मान असफल सदस्य से अधिक होता है। इस दृश्य में एक स्वादिष्ट पदार्थ डाइनिंग टेबल पर सदस्य एक-दूसरे को पास करते हैं परन्तु खाली प्लेट ही उस मुखिया के पास पहुंचती है जो अब सेवानिवृत है और सबसे कम कमाता है।

परिवार के रिश्तों के सारे ताने बाने अत्यंत सूक्ष्म रूप से गढ़े होते हैं और जिस आवाज में बात की जाती है, वह आवाज भी पात्र की कमाई का संकेत स्पष्ट कर देता है।