परिवार के सदस्य / चित्तरंजन गोप 'लुकाठी'
'विकास' सबसे पहले खड़ा हो गया। कॉपी देते हुए बोला—सर लिख लिया।
"वाह!" कहते हुए मैंने कॉपी देखी। उसमें उसका और उसके मां-बाप का नाम लिखा था। पूछा, "तीन ही नाम...? तुम्हारी दो बहनें भी हैं न?"
"हैं तो। पर वे हमारे परिवार की कैसे होंगी? शादी के बाद, दूसरे परिवार में चली जाएंगी न!"
"ओह, हाँ।" कहते हुए मैंने दूसरे बच्चे की कॉपी ली। एक-एक कर सबकी कॉपियाँ देखीं। क्लास टू के सभी बच्चों ने अपने-अपने परिवार के सदस्यों का नाम लगभग ठीक-ठाक लिख लिया था।
सबसे अंत में प्रकृति आयी। उसकी कॉपी में कुल पच्चीस नाम थे। उसके चार चाचा, चार चाचियाँ और उनके बाल-बच्चों के अलावा भी कुछ और नाम थे। एक नाम के नीचे उंगली रखकर मैंने पूछा—यह किसका नाम है?
"जी, हमारी बूढ़ी गाय का।" उसने जवाब दिया।
"और यह?"
"हमारे घर में एक बूढ़ा कुत्ता भी है न, उसका।"
"हूँ... और यह?"
"सर, हमारे घर में एक पूंछ कटा तोता है। कहीं से खुद आ गया है।"
"अच्छा और यह कौन है?"
"इ तो प्यारू है सर। हमारे आंगन में एक कुबड़ा पेड़ है न, पलाश का...? वही।"
मैं मौन था। मेरी दृष्टि प्रकृति पर टिकी थी और उंगली कॉपी पर।