परिशिष्ट / भाषा की परिभाषा / 'हरिऔध'

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परिशिष्ट / भाषा की परिभाषा / 'हरिऔध'

इस ग्रंथ में मैंने यह प्रतिपादन किया है, कि आर्य-जाति का मूल निवास-स्थान भारतवर्ष ही है, वह किसी दूसरे स्थान से न तो आई है, और न वह उसका उपनिवेश है। इसकी पुष्टि के कुछ और प्रमाण नीचे लिखे जाते हैं-

विद्ववर श्रीनारायण भवनराव मराठी भाषा के प्रकाण्ड विद्वान् हैं, उन्होंने ऍंगरेजी में एक गवेषणापूर्ण ग्रंथ लिखा है, उसका नाम है 'दि आर्यावर्टिक होम एण्ड दि आर्यन क्रेडल इन दि सपृसिंधु'। इस ग्रंथ का अनुवाद हिन्दी भाषा में हो गया है, उसका नाम है 'आर्यों का मूल स्थान', उसके कुछ अंश ये हैं-

'एम. लुई जैकोलिअट लिखते हैं, भारत संसार का मूल स्थान है, वह सबकी माता है। 'भारत, मानव-जाति की माता, हमारी सारी परम्पराओं का मूल स्थान प्रतीत होता है, इस प्राचीन देश के सम्बन्धा में, जो गोरी-जाति का मूल-स्थान है, हमने सत्य बात का पता पाना प्रारंभ कर दिया है।

फ्रांसिस विद्वान् क्रूजर स्पष्ट शब्दों में लिखते हैं-

“यदि पृथ्वी पर ऐसा कोई देश है, जो मानव-जाति का मूल स्थान या कम से कम आदिम सभ्यता का लीला क्षेत्र होने के आदर का दावा न्यायत: कर सकता है, और जिसकी वे समुन्नतियाँ और उससे भी परे विद्या की वे न्यामतें जो मनुष्य जाति का दूसरा जीवन है, प्राचीन जगत् के सम्पूर्ण भागों में पहुँचाई गई हैं, तो वह देश निस्सन्देह भारत है।”

एक दूसरे स्थान पर उक्त फ्रांसिस विद्वान् जैकोलिअट यह लिखते हैं-

“भारत संसार का मूल-स्थान है, इस सार्वजनिक माता ने अपनी सन्तान को नितान्त पश्चिम ओर भी भेजकर हमारी उत्पत्तिा सम्बन्धी अमिट प्रमाणों में, हम लोगों को अपनी भाषा, अपने कानून, अपना चरित्रा, अपना साहित्य और अपना धार्म प्रदान किया है।”

मिस्टर म्यूर कहते हैं-

“जहाँ तक मैं जानता हूँ, किसी भी संस्कृत पुस्तक में, अत्यन्त प्राचीन पुस्तक में भी भारतीयों की विदेशी उत्पत्ति के सम्बन्ध में कोई स्पष्ट उल्लेख या संकेत नहीं है।”

मोशियोलुई जैकोलिअट एक दूसरे स्थान पर यह लिखते हैं-

“योरप की जातियाँ भारतीय उत्पत्ति की हैं, और भारत उनकी मातृभूमि है, इसका अखण्डनीय प्रमाण स्वयं संस्कृत भाषा है। वह आदिम भाषा (संस्कृत) जिससे प्राचीन और अर्वाचीन मुहावरे निकले हैं। 'पुरातन देश (भारत) गोरी-जातियों का उत्पत्तिा स्थान था, और जगत् का मूल स्थान है'।

गंगा मासिक पत्रिाका के पुरा तत्तवांक में जो माघ संवत् 1989 में निकली है, डॉक्टर अविनाशचन्द्र दास एम. ए., पी-एच. डी. का एक लेख आर्यों के निवास-स्थान के विषय में निकला है, उसमें एक स्थान पर वे यह लिखते हैं-

“आधुनिकनृत्ववित् पाश्चात्य पण्डितों का मत है कि वर्तमान पंजाब और गांधार देश मानव-जाति का उत्पत्तिा-स्थल है। प्रसिध्द नृतत्ववित् अधयापक सर आर्थर कीथ का मत है कि भारत के उत्तार-पश्चिम, सीमान्त प्रदेश में मानव-जाति की उत्पत्तिा हुई है। दूसरे नृतत्ववित् अधयापक जे. बी. हालडेन ने लन्दन की 'रॉयल इन्सटिटयूशन नामक सभा में 21-2-31 को, यह व्याख्यान दिया था। 2 पृथ्वी के भिन्न-भिन्न चार केन्द्रों में मानव-जाति की उत्पत्तिा हुई थी। उनमें पंजाब और अफगानिस्तान का मधयवर्ती प्रदेश भी मानव-जनन का एक केन्द्र है। भिन्न-भिन्न केन्द्रों में (जैसे चीन और मिश्र में) भिन्न-भिन्न जातियों की उत्पत्तिा हुई है। पंजाब और गांधार में जिस मानव-जाति की उत्पत्तिा हुई थी उसके वंशधार गण आज कहाँ हैं? ऋग्वेद के अति प्राचीन मंत्रों की आलोचना करने से मेरे विचार में ऐसा आता है कि पंजाब और गांधार में ही आर्यों की उत्पत्ति हुई थी एवं यही प्रदेश इनकी आदि उत्पत्तिा का स्थान (Gradle) है। अपने सृष्टिकाल में आर्य-जाति यहीं बसती थी, पीछे भिन्न-भिन्न प्रदेशों में फैली।”

समाप्त।