परिशिष्ट 1 / हिंद स्वराज / महात्मा गांधी
'हिंद स्वराज' के हिंदी अनुवाद के लिए गांधीजी ने जो प्रस्तावना लिखी थी, जिसमें उन्होंने मिलों के बारे में नीचे की बात कही थी :
'यह पुस्तक मैंने सन 1909 में लिखी थी। 12 वर्ष के अनुभव के बाद भी मेरे विचार जैसे उस समय थे वैसे ही आज हैं। मैं आशा करता हूँ कि पाठक मेरे इन विचारों को प्रयोग करके उनकी सिद्धता अथवा असिद्धता का निर्णय कर लेंगे।
'मिलों के संबंध में मेरे विचारों में इतना परिवर्तन हुआ है कि हिंदुस्तान की आज की हालत में मैन्चेस्टर के कपड़े के बजाय हिंदुस्तान की मिलों का प्रोत्साहन देकर भी अपनी जरूरत का कपड़ा हमें अपने देश में ही पैदा कर लेना चाहिए।'
(सन 1921)
'हिंद स्वराज' के अँग्रेजी अनुवाद की प्रस्तावना लिखते हुए गांधीजी ने इस पुस्तक का एक ग्राम्य शब्द सुधारने की इच्छा बताई थी :
'इस समय इस पुस्तक को इसी रूप में प्रकाशित करना मैं आवश्यक समझता हूँ। परंतु यदि इसमें मुझे कुछ भी सुधार करना हो, तो मैं एक शब्द सुधारना चाहूँगा। एक अँग्रेज महिला मित्र को मैंने वह शब्द बदलने का वचन दिया है। पार्लियामेंट को मैंने वेश्या कहा है। यह शब्द उन बहन को पसंद नहीं है। उनके कोमल हृदय को इस ग्राम्य भाव से दुख पहुँचा है।
(सन 1921)