पवित्र नगर / ख़लील जिब्रान / बलराम अग्रवाल

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बचपन में मुझे बताया गया था कि किसी नगर में हर आदमी धर्म-ग्रंथ के अनुरूप आचरण करता है।

मैंने कहा, "मैं उस नगर और उसकी पवित्रता को देखना चाहूँगा।"

यह काफी दूर था। मैंने यात्रा के पुख्ता इंतजाम किए। चालीस दिन की यात्रा के बाद मैं नगर के सामने जा पहुँचा। इकतालीसवें दिन मैंने उसमें प्रवेश किया।

अरे बाप रे! नगर के हर निवासी के बस एक आँख और एक हाथ था। मेरे आश्चर्य की सीमा न रही और मैंने अपने-आप से पूछा, "इतने पवित्र नगर के निवासी और एक आँख, एक हाथ?"

फिर मैंने देखा कि वे भी आश्चर्यचकित थे। उन्हें मेरे दो हाथों और दो आँखों वाला होने पर अचरज था।

और जब उन्होंने एक-साथ बोलना शुरू किया तो मैंने पूछा, "क्या यह वाकई वही पवित्र नगर है जहाँ के निवासी धर्म-ग्रंथ के अनुरूप जीवन जीते है?"

वे बोले, "हाँ, यही वह नगर है।"

"तो… " मैंने कहा, "तुम सबको क्या हुआ? तुम्हारी दायीं आँख और दायें हाथ कहाँ गए?"

सारे-के-सारे लोग पीछे घूम गए। बोले, "आप आइए और देखिए।"

वे मुझे नगर के बीचोबीच एक मन्दिर में ले गए। वहाँ मैंने हाथों और आँखों का ऊँचा ढेर देखा।

वे सब-के-सब मुरझाए पड़े थे।

मैंने कहा, "किस निर्दयी ने तुम पर यह जुल्म ढाया है?"

उनके बीच फुसफुसाहट शुरू हो गई। उनमें से एक बुजुर्ग आगे आया और बोला, "यह स्वयं हमने किया है। ईश्वर ने हमें हमारे भीतर छिपी बुराइयों पर विजय पाने वाला बनाया है।" यह कहकर वह मुझे एक ऊँची धर्मशिला पर ले गया। बाकी सब उसके पीछे चले। उसने उस शिला पर खुदी एक इबारत मुझे दिखाई। मैंने पढ़ा - "अगर तेरी दाईं आँख अपराध करती है, तो उसे बदन से निकाल फेंक। यह तेरे लिए फायदे का सौदा है क्योंकि इस तरह तू अपने एक दुश्मन को नष्ट कर देगा और तेरा पूरा शरीर नर्क में जाने से बच जाएगा। और अगर तेरा दायाँ हाथ अपराध करता है तो इसे काट डाल और शरीर से अलग कर दे। यह तेरे लिए फायदे का सौदा है क्योंकि इस तरह तू अपने एक दुश्मन को नष्ट कर देगा और तेरा पूरा शरीर नर्क में जाने से बच जाएगा।"

अब मेरी समझ में आया। मैं उन सबकी ओर घूमा और चिल्लाया, "क्या तुममें एक भी आदमी दो आँखों और दो बाँहों वाला नहीं है?"

उन्होंने जवाब दिया, "नहीं, एक भी नहीं। केवल वे बचे हैं जो अभी बहुत छोटे हैं और इस इबारत को पढ़ने और इसके आदेश को समझने लायक नहीं हुए हैं।"

और जब हम उस मन्दिर से बाहर आए, मैं उस पवित्र नगर से निकल भागा क्योंकि मैं उतना छोटा नहीं था और उस इबारत को पढ़ भी सकता था।