पहचान / प्रभुदयाल श्रीवास्तव
उस दिन रास्ते में हीरालाल जी मिल गये दुआ सलाम हुई और हाल चालों का आदान प्रदान होने लगा।
"राम प्रसाद को तो जानते ही होंगे आप, यहीं ग्वालटोला में रहते हैं क्या हाल हैं उनके? कई दिनों से नहीं दिखे-" मैनें उनसे औपचारिकतावश पूछा।
“कौन राम प्रसाद यार याद नहीं आ रहा-" उन्होंनें माथे पर बल डालते हुए और कुछ सोचते हुए से जबाब दिया।
" अरे यार हद हो गई, अरे वही मास्टर साहब जिन्हें इस साल राष्ट्रपति - पुरस्कार मिला है-"मैने उन्हें याद दिलाते हुये कहा।
"बिल्कुल याद नहीं आ रहा है कौन से राम प्रसाद।" जैसे उन्होंने हाथ ही खड़े कर दिये हों, की मुद्रा में जबाब दिया।
"अरे भाई वही राम प्रसाद जिसका लड़का दंगा -फसाद में पकड़ा गया था,थाने में आग लगा रहा था औऱ्......."
"अच्छा -अच्छा बंटी का बाप राम प्रसाद!ऐसा बोलो न । बंटी को कौन नहीं जानता, सारे शहर में तूफान मचाए है,महिलाओं का तो घर से निकलना दूभर किए है। "
" हाँ कहाँ है वह। "
"पता नहीं भैया घर छोड़ कर कहाँ चला गया। "
मैं सोच रहा रहा था कि राष्ट्रपति से पुरस्कार पाने वाले रामलाल को मुहल्लॆ में कोई नहीं जानता परंतु एक आवारा के बाप की हैसियत .........................। " कैसा समय है !