पहचान / सुकेश साहनी
वह हड़बड़ी में था-उसे ठीक नौ बजे 'हिंदी दिवस' के उपलक्ष्य में आयोजित व्याख्यानमाला में भाग लेने हेतु विश्वविद्यालय पहुँचना था। एक तो गाड़ी ने दो घण्टे की देरी से पहुँचाया था, दूसरे वह इस शहर के भूगोल से बिल्कुल अनजान था। उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि विश्वविद्यालय तक कैसे पहुँचे।
एक व्यक्ति विदेशी नस्ल के कुत्ते की जंजीर पकड़े बहुत तेजी से चला आ रहा था।
"टायसन! मूव...मूव फास्ट!" -इससे पहले कि वह कुछ पूछता, वह उसे अनदेखा करके तेजी से निकल गया।
"भाईसाहब, रुहेलखण्ड विश्वविद्यालय के लिए बस कहाँ से मिलेगी?" अगले ही क्षण वहाँ से गुजर रहे एक साइकिल सवार को रोककर उसने पूछ लिया।
साइकिल सवार कुछ सोचते हुए बोला, "जीआईसी, जीजीआईसी, बीबीएल वगैरह के बारे में तो पता है, जीपीएम, बीसी और सेंट मारिया तो बिल्कुल नजदीक हैं, पर...वो...क्या कहा आपने रोहेलखण्ड...? इस बारे में तो पहले कभी नहीं सुना। माफ कीजिए...हिन्दी के मामले में अपना दिमाग ज़रा ऐसा-वैसा ही है, आप किसी और से पूछ लीजिए..."
देर पर देर हो रही थी। उसने बस से जाने का ख्याल छोड़ दिया और रिक्शे से जाने का निश्चय किया।
"भैया, रुहेलखण्ड विश्वविद्यालय चलोगे?"
"सही मोहल्ला बताओ साब, इस नाम की कोई जगह नहीं है यहाँ।"
"अरे भाई, बताया तो -विश्वविद्यालय! इतना भी नहीं जानते तुम!" ...जहाँ लड़के-लड़कियाँ पढ़ते हैं।"
"कैसी बात करते हो, साहब जी,"- रिक्शेवाले ने बुरा-सा मुँह बनाया, "बीस साल से इसी शहर में रिक्शा चला रहा हूँ, यहाँ के चप्पे-चप्पे से वाकिफ हूँ। इस शहर में इस नाम का कोई सकूल नहीं है।
रिक्शे वाला आत्मविश्वास- भरी आँखों से उसकी ओर देख रहा था।
"भाई, मुझे युनिवर्सिटी से बुलावा आया है, "झल्लाकर उसके मुँह से निकल पड़ा, "पीलीभीत जाने वाली सड़क पर बहुत बड़ी इमारत है..."
"युनवसटी!" रिक्शेवाला चहका, "तो पहले ही सही बोलना था। युनवस्टी कौन नहीं जानता! बैठो अभी पहुँचाए देता हूँ।"