पहला अध्याय - शब्दविचार / कामताप्रसाद गुरू

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दूसरा भाग शब्दसाधन पहला परिच्छेद शब्द भेद पहला अध्याय शब्दविचार 86. शब्दसाधन व्याकरण के उस विभाग को कहते हैं, जिसमें शब्दों के भेद (तथा उनके प्रयोग), रूपांतर और व्युत्पत्ति का निरूपण किया जाता है। 87. एक या अधिक अक्षरों से बनी हुई स्वतंत्रा सार्थक ध्वनि को शब्द कहते हैं, जैसेμलड़का, जा, छोटा, में, धीरे, परंतु इत्यादि। (अ) शब्द अक्षरों से बनते हैं। ‘न’ और ‘थ’ के मेल के ‘नथ’ और ‘थन’ शब्द बनते हैं और यदि इनमें ‘आ का योग कर दिया जाय तो ‘नाथ’, ‘थान’, ‘नथा’, ‘थाना’ आदि शब्द बन जायँगे। (आ) सृष्टि के सम्पूर्ण प्राणियों, पदार्थों, धर्मों और उनके सब प्रकार के संबंधों को व्यक्त करने के लिए शब्दों का उपयोग होता है। एक शब्द से (एक समय में) प्रायः एक ही भावना प्रकट होती है; इसलिए कोई भी पूर्ण विचार प्रकट करने के लिए एक से अधिक शब्दों का काम पड़ता है। ‘आज तुझे क्या सूझी है?’μयह एक पूर्ण विचार अर्थात् वाक्य है और इसमें पाँच शब्द हैंμआज, तुझे, क्या, सूझी, है। इनमें से प्रत्येक शब्द एक स्वतंत्रा सार्थक ध्वनि है और उससे कोई एक भावना प्रकट होती है। (इ) ल, ड़, का अलग-अलग शब्द नहीं हैं, क्योंकि इनसे किसी प्राणी, पदार्थ, धर्म वा उनके परस्पर संबंध का कोई बोध नहीं होता। ‘ल, ड़, का अक्षर कहाते हैं’μइस वाक्य में ल, ड़, का, अक्षरों का प्रयोग शब्दों के समान हुआ है; परंतु इनसे इन अक्षरों के सिवा और कोई भावना प्रकट नहीं होती। इन्हें केवल एक विशेष (पर तुच्छ) अर्थ में शब्द कह सकते हैं। पर साधारण अर्थ में इनकी गणना शब्दों में नहीं हो सकती। ऐसे ही विशेष अर्थ में निरर्थक ध्वनि भी शब्द कही जाती है; जैसेμलड़का ‘बा’ कहता है। पागल ‘अल्लबल्ल’ बकता था। (ई) शब्द के लक्षण में ‘स्वतंत्रा’ शब्द रखने का कारण यह है कि भाषा में कुछ ध्वनियाँ ऐसी होती हैं जो स्वयं सार्थक नहीं होतीं, पर जब वे शब्दों के साथ जोड़ी जाती हैं तब सार्थक होती हैं। ऐसी परतंत्रा ध्वनियों को शब्दांश कहते हैं; जैसेμता, हिंदी व्याकरण ध् 61 तन, वाला, ने, का इत्यादि। जो शब्दांश किसी शब्द के पहले जोड़ा जाता है उसे उपसर्ग कहते हैं और जो शब्दांश शब्द के पीछे जोड़ा जाता है; वह प्रत्यय कहलाता है; जैसेμ‘अशुद्धता’ शब्द में ‘अ’ उपसर्ग और ‘ता’ प्रत्यय है। मुख्य शब्द ‘शुद्ध’ है। सू.μ(अ) हिंदी में ‘शब्द’ का अर्थ बहुत ही संदिग्ध है। ‘अब तो तुम्हारी चाही बात हुईμइस वाक्य में तुम्हारी’ भी शब्द कहलाता है, और जिस ‘तुम’ से यह शब्द बना है, वह ‘तुम’ भी शब्द कहलाता है। इसी प्रकार ‘मन’ और ‘चाही’ दो अलग-अलग शब्द हैं और दोनों मिलकर ‘मनचाही’ एक शब्द बना है। इन उदाहरणों में ‘शब्द’ का प्रयोग अलग-अलग अर्थों में हुआ है, इसलिए शब्द का ठीक अर्थ जानना आवश्यक है। जिन प्रत्ययों के पश्चात् दूसरे प्रत्यय नहीं लगते, उन्हें चरम प्रत्यय कहते हैं, और चरम प्रत्यय लगने के पहले शब्द का जो मूल रूप होता है यथार्थ में वही शब्द है। उदाहरण के लिए ‘दीनता से’ शब्द को लो। इसमें मूल शब्द अर्थात् प्रकृति ‘दीन’ है और प्रकृति में ‘तत्’ और ‘से’ दो प्रत्यय लगे हैं। ‘ता’ प्रत्यय के पश्चात् ‘से’ प्रत्यय आता है; परंतु ‘से’ के पश्चात् कोई दूसरा प्रत्यय नहीं लग सकता, इसलिए ‘से’ के पहले, ‘दीनता’ मूल रूप है और इसको शब्द कहेंगे। चरम प्रत्यय लगने से शब्द का जो रूपांतर होता है, वही इसकी यथार्थ विकृति है, और इसे पद कहते हैं। व्याकरण में शब्द और पद का अंतर बड़े महत्त्व का है और शब्दसाधन में इन्हीं शब्दों और पदों का विचार किया जाता है। (अ)μव्याकरण में शब्द और वस्तु 1 के अंतर पर ध्यान रखना आवश्यक है। यद्यपि व्याकरण का प्रधान विषय शब्द है, तथापि कभी-कभी यह भेद बताना कठिन हो जाता है कि हम केवल शब्दों का विचार कर रहे हैं अथवा शब्दों के द्वारा किसी वस्तु के विषय में कह रहे हैं। मान लो कि हम सृष्टि में एक घटना देखते हैं और तत्संबंधी अपना विचार वाक्यों में इस प्रकार व्यक्त करते हैंμ‘माली फल तोड़ता है।’ इस घटना में तोड़ने की क्रिया करनेवाला (कर्ता) माली है; परंतु वाक्य में ‘माली’ (शब्द) को कर्ता कहते हैं यद्यपि ‘माली’ (शब्द) कोई क्रिया नहीं कर सकता। इसी प्रकार तोड़ना क्रिया का फल फूल (वस्तु) पर पड़ता है; परंतु व्याकरण के अनुसार वह फल ‘फूल’ (शब्द) पर अवलंबित माना जाता है। व्याकरण में वस्तु और उसके वाचक शब्द के संबंध का विचार शब्दों के रूप, अर्थ, प्रयोग और उनके परस्पर संबंध से किया जाता है। 88. परस्पर संबंध रखनेवाले दो या अधिक शब्दों को, जिनसे पूरी बात नहीं जानी जाती, वाक्यांश कहते हैं; जैसेμ‘घर का घर’, ‘सच बोलना’, ‘दूर से आया हुआ’ इत्यादि। 89. एक पूर्ण विचार व्यक्त करनेवाला शब्दसमूह वाक्य कहलाता है, जैसेμ‘लड़के फूल बीन रहे हैं’, ‘विद्या से नम्रता प्राप्त होती है’ इत्यादि। 1. वस्तु शब्द से यहाँ प्राणी, पदार्थ, धर्म और उनके परस्पर संबंध का (व्यापक) अर्थ लेना चाहिए। 62 ध् हिंदी व्याकरण