पहले कौन मुर्गी या अंडा / जयप्रकाश चौकसे
पहले कौन मुर्गी या अंडा
प्रकाशन तिथि : 25 फरवरी 2011
साजिद नाडियाडवाला और निर्देशक साजिद खान की अक्षय कुमार अभिनीत 'हाउसफुल-2' की शूटिंग लंदन में जून से शुरू होगी और वर्ष के अंत तक फिल्म का प्रदर्शन संभव है। परंतु विगत दिनों दोनों ने फिल्म बनाने के पहले ही फिल्म के प्रमोशन के लिए एक टीजर बनाया है, जिसका प्रदर्शन वर्तमान में जारी क्रिकेट तमाशे के समय टेलीविजन पर निरंतर दिखाया जाएगा। फिल्म की मार्केटिंग का यह पहला हिस्सा है, गोयाकि खेत में कपास बोई है, परंतु उससे बनने वाले कपड़े का प्रचार प्रारंभ हो जाएगा।
यह छोटी सी बात उद्योग की मौजूदा कार्यप्रणाली पर प्रकाश डालती है। वह यह कि फिल्म निर्माण में गुणवत्ता अब पूरी तरह खारिज हो चुकी है और केवल मार्केटिंग के लिए एक बेजान प्रोडक्ट बनाना है। चुटकुलों की तरह फिल्म गढऩे वाले इस अंधी व्यवस्था में नाम और दाम दोनों कमा रहे हैं। फिल्म की पटकथा ऐसे गढ़ी जाती है कि उसमें सितारों की भीड़ जमा की जा सके। इंजन की तरह एक सितारा साथ है, तो पीछे चाहे जितने डिब्बे जोड़ लें। गाड़ी तो चलने वाली है और इन चुटकुलेबाज फिल्मकारों के लिए फिल्म चलती का नाम गाड़ी है। फिल्म को जुए की तरह लेने वाले कई पूंजी निवेशक हैं, जो खेल में शामिल हैं। सारा खेल आधारित है प्रदर्शन के पहले तीन दिनों पर, जिसमें हजारों जगह फिल्म लगाकर मुनाफा हो जाए। चौथे दिन आय के आंकड़े सारा खेल समाप्त कर देते हैं, परंतु मार्केट में केवल तीन दिन का ढोल पीटा जाता है।
इस तरह के तमाशे रचने में निर्देशक को सबसे कम काम करना पड़ता है। आधा दर्जन गाने अर्थात फिल्म के पच्चीस मिनट नृत्य निर्देशक शूट भी करता है और संपादित भी करता है। फिल्म में लगभग एक घंटे के मारधाड़ वाले दृश्य एक्शन डायरेक्टर शूट और संपादित करता है और पंद्रह मिनट के विशेष प्रभाव वाले दृश्य कंप्यूटरजनित छवियों के होते हैं। नाटकीय दृश्य में गुणवान कैमरामैन और दखलंदाज सितारे के सक्रिय सहयोग से निर्देशक महोदय काम कर लेते हंै।
इस समय फिल्म उद्योग में इस जोड़-तोड़ के दम पर अनेक लोग सफल-संपन्न निर्देशक बन गए हैं। कुछ सचमुच में काम जानने वाले प्रतिभाशाली लोग जैसे संजय लीला भंसाली, विशाल भारद्वाज और अनुराग कश्यप ऐसी गैर भारतीय कहानियां चुनते हैं, जिनमें आम दर्शक की रुचि ही नहीं है और ये लोग अपने अदृश्य यूरोपियन फिल्मकारों की प्रशंसा पाने के लिए मेहनत करते हैं।
इन दो विपरीत छोरों के बीच एक छोटा सा वर्ग है जो सामाजिक सोद्देश्यता का मनोरंजन गढ़ता है। कुछ युवा फिल्मकार सामने आए हैं, जो अधिकतम की स्वीकृति के दायरे में फिल्में गढ़ते हैं। परंतु बड़े सितारों का उन्हें सहयोग प्राप्त नहीं है। सितारे के साथ का अर्थ है बड़ा बजट मिलना।
इस दौर में फिल्मों से प्राप्त आय के मनगढ़ंत आंकड़े प्रचारित करके ऐसा बाजार खड़ा किया गया है, जो है ही नहीं और कुछ सफल निर्देशकों को अकल्पनीय धन मिलने लगा है। वे धन बटोरने में इतने व्यस्त हो गए कि उन्होंने अपने काम पर ध्यान ही नहीं दिया। मसलन अनीस बज्मी जिनकी 'नो एंट्री' और कुछ अन्य फिल्में सफल हो गईं, उनकी 'नो प्रॉब्लम' असफल रही और निर्माणाधीन फिल्मों के निर्माता घबरा गए। आजकल वे असिन और सलमान खान के साथ 'रेडी' नामक दक्षिण भारतीय फिल्म का हिंदी संस्करण बैंकॉक में शूट कर रहे हैं। आज साधन हैं, सितारे हैं परंतु समर्पित फिल्मकारों की कमी है, जिनके पास फिल्म बनाने का जुनून हो। बाजार सब कुछ बना सकता है, यह जुनून नहीं बना सकता।