पहाड़ी नदी और प्रतिभा के किनारे / जयप्रकाश चौकसे

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पहाड़ी नदी और प्रतिभा के किनारे
प्रकाशन तिथि :26 जुलाई 2017


पहाड़ों की तरह पुराना मुद्‌दा यह है कि संतान पर माता-पिता एवं पूर्वजों का प्रभाव कितना रहता है और इस मुद‌्दे पर नदी की चंचलता व प्रवाह लेकर बहने वाली कंगना रनौट ने सैफअली खान और करण जौहर की टीम को भारी शिकस्त दी। अवसर था विदेश में आयोजित एक फिल्म पुरस्कार वितरण समारोह का। सैफ अली खान ने फरमाया कि वे फिल्म उद्योग में अपनी मां शर्मीला टैगोर खान के कारण हैं तो कंगना का जवाब था कि इस तरह की धारणा सही होती तो आज वे अपने जन्म स्थान हिमाचल प्रदेश में किसान कन्या होतीं और बोवनी के इस समय अत्यंत व्यस्त होतीं। भाई-भतीजावाद फिल्म उद्योग से कहीं अधिक राजनीति के क्षेत्र में देखा जा सकता है। यहां तक कि उद्योग क्षेत्र में विरासत के आधार पर कॉर्पोरेट घराने संचालित किए जा रहे हैं। फिल्म उद्योग में तो आम दर्शक ही निर्णायक शक्ति है। शशधर मुखर्जी ने अनेक लोगों को अवसर दिए परंतु वे अपने पुत्रों और उनकी संतानों को सितारा नहीं बना पाए।

इसके साथ यह भी स्थापित सत्य है कि कुछ बीमारियां भी आनुवांशिक होती हैं। माता-पिता के गुण-अवगुण के साथ ही कुछ बीमारियां भी पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलती रहती है परंतु इसके बावजूद व्यक्ति का अपना कुछ निजी भी होता है। मशीनों द्वारा उत्पाद से भिन्न है मनुष्य की संतानें। राज कपूर की ख्वाजा अहमद अब्बास द्वार लिखी फिल्म 'आवारा' में पृथ्वीराज कपूर द्वारा अभिनीत पात्र का विश्वास है कि राजा का बेटा राजा और डाकू का बेटा डाकू ही बनता है। इस मिथ्या धारणा के आधार पर वह अदालत में एक निरपराध को सजा भी दिलवाने में सफल होता है। सजा काटने के बाद वही व्यक्ति उसकी संतान को अपराधी बनाने के एजेंडे में जुट जाता है। फिल्म में पुत्र अपराधी के कटघरे में खड़ा है और इस तथ्य से अनजान पिता जज के पद पर आसीन है और जज साहब द्वारा पाली-पोसी कन्या उनके विरोध में खड़ी है, क्योंकि वह आरोपी युवा से प्यार करती है। पिता-पुत्र रिश्ते पर यह फिल्म 1951 मंे प्रदर्शित हुई और पिता-पुत्र की दूसरी महत्वपूर्ण फिल्म 'मुगल-ए-आजम' 1960 में प्रदर्शित हुई। एक फिल्म में पृथ्वीराज के पुत्र की भूमिका उनके अपने पुत्र राज कपूर ने अभिनीत की तो दूसरी फिल्म में पुत्र की भूमिका दिलीप कुमार ने अभिनीत की। ज्ञातव्य है कि ख्वाजा अहमद अब्बास ने 'आवारा' की कथा उस वक्त के शिखर फिल्मकार मेहबूब खान को सुनाई थी। उन्हें पटकथा पसंद थी और वे मुंहमांगा दाम भी देने को तैयार थे परंतु वे पिता की भूमिका में पृथ्वीराज के साथ दिलीप कुमार को लेना चाहते थे परंतु अब्बास साहब का कथन था कि यथार्थ जीवन के पिता-पुत्र ही भूमिकाओं को निभाएं तो फिल्म का प्रभाव अधिक होगा। वहां मौजूद नरगिस ने यह विवाद राज कपूर को बताया तो राज कपूर अब्बास साहब के पास पहुंचे। उन दिनों ख्वाजा अहमद अब्बास मरघट के निकट बने होटल में रहते थे, क्योंकि उसका किराया कम था। उसी जगह राज कपूर ने पटकथा सुनी और जेब से एक रुपया निकालकर अग्रिम मुआवजे के रूप में दिया, क्योंकि वे अपने साथ केवल इतना ही लेकर आए थे। अलसभोर में राज कपूर होटल से 'अावारा' की पटकथा लेकर निकले तथा इस फिल्म को बनाकर उन्होंने सफलता का इतिहास ही रच दिया। क्या यह मुमकिन है कि किसी दाहसंस्कार के पश्चात आत्मा ने राज कपूर को आशीर्वाद दिया हो। किंवदंतियां ऐसे इत्तेफाक से भी बनती हैं। यह भी तथ्य है कि राज कपूर ने निर्माण के दौरान अहमद अब्बास को एक लाख रुपए दिए, जबकि उस दौर में लेखकों को दस या पंद्रह हजार रुपए से अधिक नहीं मिलते थे।

इस घटना के बाद राज कपूर अौर अब्बास की टीम ने अनेक फिल्में साथ-साथ कीं। इस पूरे प्रकरण के कई वर्ष पश्चात अब्बास साहब की मृत्यु के बाद उनके दूर का कोई सगा-संबंधी पाकिस्तान से आया और उसका दावा था कि राज कपूर पर अब्बास का कुछ लेना बाकी है।

उस व्यक्ति को आरके स्टूडियो के अकाउंट विभाग में लंबी चली जांच-पड़ताल के बाद यह ज्ञात हुआ कि अनुबंध से कहीं अधिक राशि राज कपूर लेखक को दे चुके थे। वह तथाकथित रिश्तेदार बड़ी खिसयायी हालत में बाहर जाने लगा तो राज कपूर ने उसे एक रुपया यह कहकर दिया कि यही उसकी औकात है।

राज कपूर अब्बास साहब को पितावत सम्मान देते थे परंतु उनका रिश्ता खून का नहीं था। उने रिश्ते की आधारशिला समाजवादी विचारधारा थी अौर वैचारिक रिश्ते खून के रिश्तों से अधिक मजबूत होते हैं। आज पूंजीवाद ने अपने प्रचार-तंत्र के दम पर अपने को स्थापित कर लिया है परंतु यह स्थायी दौर नहीं है, क्योंकि समाजवाद का आधार साधनहीन के प्रति मानवीय करुणा का है और मानवीय करुणा की नदी किसी के रोके रुक नहीं सकती। करण जौहर और सैफ अली खान को भले ही उनके वंश का लाभ मिला हो परंतु प्रतिभा उनकी बपौती नहीं है। पहाड़ों में जन्मी कंगना ने फिल्म उद्योग में क्वीन का दर्जा अपनी प्रतिभा से पाया है। कोई आश्चर्य नहीं कि वे झांसी की रानी फिल्म में केंद्रीय भूमिका करने के साथ उसका निर्माण भी कर रही हैं।