पहाड़ी पर चन्दा( काँठा माँ जून): उत्कृष्ट अनुवाद की कृति / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

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अनुवाद की आधार भूमि है-मूलत: कला और दक्षता। प्राय: जो दैनन्दिन अनुवाद दृष्टिगत होते हैं, वे इस श्रेणी में आते हैं। इतिहास, विज्ञान, एवं सूचनात्मक जानकारी आदि के अनुवाद वस्तुनिष्ठ अधिक होते हैं। साहित्य की विधाओं में भी सूचनात्मक जानकारी के अनुवाद इसी श्रेणी में आएँगे। कथा साहित्य में अनुवाद थोड़ा और कठिन हो जाता है; क्योंकि अनुवाद के विचारबोध के साथ-साथ कथा का भावबोध भी व्यंजित होता है। कथा को व्यंजित वाक्य की गहराई तक न समझने पर; वह केवल भाषिक अनुवाद भर रह जाता है। कथा साहित्य के अनुवाद में अतिरिक्त सजगता की आवश्यकता होती है। यह सजगता हंसराज रहबर (शरत् चन्द्र के उपन्यासों का अनुवाद) , भीष्म साहनी (चिंगिज आइत्मातोव के अंग्रेज़ी से हिन्दी) पहला अध्यापक में देखी जा सकती है। अनुवाद में मूल जैसा आनन्द यह महसूस नहीं होने देता कि यह विषयवस्तु मूल है या अनूदित। काव्य का अनुवाद और भी कठिन है; क्योंकि वहाँ भाव के अनूकूल भाषा न होने पर अनुवाद हास्यास्पद हो सकता है। यह अनुवाद अगर किसी छन्द विशेष से उसी छन्द में किया जाता है, तो अनुवादक के लिए चुनौती और भी बड़ी हो जाती है।

हाइकु-काव्य में रूटीन अनुवाद होते रहे हैं। डॉ. अंजलि देवधर का भारतीय हाइकु (2008-कुल पृष्ठ 35) भारतीय हाइकु के अनुवाद की एक बानगी है, जिसमें भारतीय भाषाओं से लिये गए सभी हाइकु या अनूदित सभी रचनाएँ पूर्णतया हाइकु के शिल्प में नहीं हैं। रचना श्रीवास्तव द्वारा अवधी में अनूदित मन के द्वार हज़ार सभी में हाइकु के शिल्प का अनुपालन किया गया है। डॉ. कुँवर दिनेश जी ने जापान के चार हाइकु सिद्ध का अंग्रेज़ी से हिन्दी में अनुवाद, इन्हीं के द्वारा 5 देशों के 32 हाइकुकारों के 147 हिन्दी हाइकु का अंगेज़ी में फ़्लेम ऑफ़ द फ़ॉरेस्ट नाम से हाइकु में ही अनुवाद, गुणात्मक अनुवाद का उत्कृष्ट उदाहरण है।

इसी कार्य को और भी आगे बढ़ाया है डॉ. कविता भट्ट ने। आपने विश्व के 5 देशों के 43 हाइकुकारों के 468 हाइकु का गढ़वाली के 468 हाइकु में, हाइकु-विधान में ही पहाड़ी पर चन्दा (काँठा माँ जून) नाम से अनुवाद किया है। अनुवाद के रूप में हिन्दी-जगत् में किया गया यह अब तक का बड़ा कार्य है। मेरा यह मत है कि ऐसे अनुवाद के लिए केवल कवि होना ही पर्याप्त नहीं, बल्कि जिस भाषा / बोली में अनुवाद किया जा रहा है, उसकी आत्मा तक पैठ होनी चाहिए। ऐसे अनुवाद में भाषिक क्षमता के साथ भावबोध की गहराई, अर्थ की विभिन्न पर्तों तक भी पहुँच होनी चाहिए। डॉ. कविता भट्ट ने जितने कम समय में, त्वरा के साथ एवं भावबोध की गहनता के साथ सटीक और सार्थक भाषा का प्रयोग किया है, वह चकित कर देने वाला है। इनके द्वारा अनूदित हाइकु इनके मूल हाइकु जैसे लगते हैं। सबसे पहले मेरे हाइकु का अनुवाद किया, फिर डॉ. सुधा गुप्ता जी के हाइकु का। कुछ और हाइकु अनूदित करने की बात चली तो, आपने एक के बाद एक 43 हाइकुकारों का गुणवत्तापूर्ण अनुवाद किया। मूल हाइकु के सामने गढ़वाली हाइकु दिए जाने से अनुवाद को समझना और अधिक सुगम, सम्प्रेष्य और सार्थक हो गया है। भाव और भाषा की दृष्टि से कुछ हाइकु उद्धृत करना आवश्यक है-

डॉ. सुधा गुप्ता जी के ये दो हाइकु देखिए-पंजों पर उचकना के अनुवाद सहजता और सार्थकता-

किशोरी लता / पंजों पर उचक / तरु को बाँधे। (नैं-नैं लगुली / नंगू टेकी खड़ी च / डाळा थैं बाँधी)

खेलती फाग / पलाश की फुनगी / चूमती आग। (खेन्नी च फाग / पलाश की टुकली / भुक्की प्यो आग)

इन हाइकु में पंजों पर उचकना, चूमना के लिए किए गए प्रयोग हाइकु के द्वारा उभारे गए बिम्ब को साकार करते हैं। तरु के लिए डाळा का, फुनगी के लिए टुकली प्रयोग बहुत सुन्दर है।

डॉ. भगवत शरण अग्रवाल के हाइकु में कविता जी ने पहले हाइकु में भाव का हूबहू और उतना ही मार्मिक अनुवाद प्रस्तुत किया है। बौराए के लिए बौळयें (खड़ी बोली क्षेत्र में बावळा का प्रयोग पागल के लिए किया जाता है।) , स्मृति के लिए खुदै का प्रयोग कई स्थानों पर आया है, जो अनुवादक की क्षमता का उत्कृष्ट उदाहरण है-

बौराए आम / स्वप्नों तक पहुँची / स्मृति-सुवास। (बौळयें आम / स्वीणौ तक पौंछिन / खुदै खुसबो)

नीलमेंदु सागर के हाइकु में चन्द्रमा के लिए जून (स्त्रीलिंग) मुखड़ी= यह शब्द अन्य भाषा क्षेत्रों में भी प्रचलित है-

नौलखा हार / पहने चंद्रमुखी / रात ऊँघती। (नौलक्खा हार / पैरी जून-मुखड़ी / रात ऊँघणी)

निम्नलिखित हाइकु के गहन सौन्दर्य के साथ अनूदित हाइकु किसी भी तरह कम नहीं है-

चाँद हँसा या / छलका है दूध का / भरा कटोरा। (जून हैंसी कि / छळकणी च दूधै / भोरीं कटोरी)

डॉ.गोपाल बाबू शर्मा के हाइकु का तीखा व्यंग्य अनूदित हाइकु में भी उसी भावबोध, प्रतीक और व्यंजना के साथ प्रस्तुत है-

दुष्टों का संग / बबूल के पेड़ पे / टँगी पतंग। (दूस्टु कु संग / बबूला डाळा परैं / टंगीं पतंग)

रेत के टीले / दिखते बड़े ऊँचे / कितने दिन? (रेता यु टिल्ला / दिख्याँदा भौत ऊँच्चा / कथगा दिन)

टीला-टिल्ला, बहुत= भौत, ऊँचा-ऊँच्चा आदि शब्दों के भाषिक तत्त्वों पर ध्यान देना ज़रूरी है कि हमारी बोलियाँ एक-दूसरे से कितनी निकट हैं!

मेरे हाइकु में माथा= मत्था, धरा= पृथिवी >पिरथी, उजाला= उजालू इन शब्दों को समझना तो सरल है, साथ ही मूल हाइकु में आए शब्दों का माधुर्य भी जस का तस निहित है।

माथा तुम्हारा / धरा पर चाँद-सा / उजाला किए। (तुमारू मत्था / पिरथी माँ जून-सी / उजालू कयूँ)

डॉ. कुँवर दिनेश सिंह जी के हाइकु में तारों =गैणों, थौळ=, जून-चन्द्रमा, अकेला= यकुली में मूल का माधुर्य बना हुआ है-

तारों का मेला / रात है जगमग / चाँद अकेला। (गैंणों कु थौळ / रात च जगमग / जून यकुली)

कमला निखुर्पा के हाइकु का अनुवाद और उसकी भाव-भंगिमा मूल हाइकु में पूरी तरह पिरो दी गई है।

आई हिचकी / अभी-अभी भाई ने / चोटी खींची (आई बडुळि / अबि दिदा न, जन / खैंचि हो चुफ्लि)

डॉ. कविता भट्ट ने अपने हाइकु का जो अनुवाद किया है, उसमें शीर्षक हाइकु पर भी एक दृष्टि डाली जाए-

सुकून पाया / तेरा चेहरा देखा / पहाड़ी चाँद (पाई सकून / तेरी मुखड़ी दिखे / काँठा माँ जून)

हिचकियाँ भी परोक्ष रूप में कोई न कोई सन्देश देती हैं जो मन की गहराई से जुड़ा होता है। इन पंक्तियों में देखा जा सकता है-

साँझ-सवेरे / हिचकियाँ दे रही / संदेश तेरे (संध्या-सुबेर / बडुळी देणी छन / रैबार त्यारा)

मैं विस्तार से बात कहूँ, तो डॉ. कविता भट्ट की यह अनूदित कृति अनुवाद के साथ उत्कृष्ट सर्जन का उदाहरण है।

पहाड़ी पर चन्दा (काँठा माँ जून) सम्पादक एवं अनुवादक: डॉ. कविता भट्ट, मूल्य: 340 / -, पृष्ठ: 168, संस्करण: 2021, प्रकाशक: अयन प्रकाशन, महरौली, नई दिल्ली-110030

9-06-2021