पहाड़ के मनुष्य से विविध रिश्ते / जयप्रकाश चौकसे

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पहाड़ के मनुष्य से विविध रिश्ते
प्रकाशन तिथि : 08 फरवरी 2019


ऑस्ट्रेलिया की जेल में बेहरोज बूचानी नामक ईरानी मूल के निवासी ने अपने मोबाइल पर एक किताब लिखी, 'नो फ्रेन्ड बट ए माउंटेन'। उनके मित्र ने किताब का अनुवाद प्रकाशित किया, जिसे लगभग 7 करोड़ का इनाम दिया गया परंतु कैद में होने के कारण पुरस्कार समारोह में वह स्वयं उपस्थित नहीं हो पाया। गौरतलब है कि जेल की कोठरी में बंद व्यक्ति पहाड़ को अपना मित्र मानता है। उसके प्रति प्रेम बढ़ता है, जिसे हम देख नहीं पाते, मिल नहीं पाते। 'वापसी' फिल्म के लिए निदा फाज़ली ने गीत लिखा था 'जिसे देखा ही नहीं उनसे मोहब्बत हम कर बैठे'। किसी वस्तु या भाव के प्राचीन होने को हम इस तरह अभिव्यक्त करते हैं कि पहाड़ों की तरह पुरानी गोयाकि हम पहाड़ के माध्यम से समय की बात करते हैं। स्थान और समय का गहरा रिश्ता है। कभी-कभी किसी स्थान पर पहुंचकर हमें कोई भूली-बिसरी दास्तां याद आ जाती है। इसी तरह का गीत भी है 'हुस्न पहाड़ों का.. क्या कहना के बारहों महीने यहां मौसम जाड़ों का'। कुछ स्थानों पर समय की बर्फ धीरे-धीरे पिघलती है। मानव मस्तिष्क वह पहाड़ है, जिसमें सोना छिपा है और सुषुप्त अवस्था में ज्वालामुखी भी लंबे समय से फटने का इंतजार कर रहे हैं।

राजकुमार हिरानी ने संजय दत्त से उनकी आप बीती सुनी और उसी पर आधारित फिल्म 'संजू' बनाई। हर आदमी अपनी कथा अपने स्वार्थ के दृष्टिकोण से सुनाता है तथा इसे पूरा सच नहीं माना जा सकता। पूरी फिल्म सुनील दत्त को गरिमामय करती है। जरासंध की 'लोह कपाट' से प्रेरित बिमल रॉय ने 'बंदिनी' फिल्म बनाई।

पंडित जवाहरलाल नेहरू ने अपनी आत्मकथा में भारत के स्वतंत्रता संग्राम का वर्णन किया है। उन्होंने स्वयं पर कम और संघर्ष पर विशद रूप से लिखा है गोयाकि उस आत्मकथा का विषय कालखंड है। उन्होंने नैनीताल जेल में 'ग्लिमसेस ऑफ व‌र्ल्ड हिस्ट्री' लिखी । उन्हें वाचनालय की सुविधा नहीं थी कि वे किसी संदर्भ ग्रंथ को पढ़ सकें। उन्होंने अपनी स्मरण शक्ति के सहारे महान ग्रंथ की रचना की। महात्मा गांधी की आत्मकथा सर्वकालीन महान पुस्तक है। दूसरे विश्व युद्ध पर सबसे अधिक किताबें लिखी गई और फिल्में बनी हैं। नाजी जेल में किए गए अत्याचारों का विवरण भी उपलब्ध है। 'एना फ्रैंक की डायरी' एक बच्ची की दृष्टि से अमानवीय यातनाओं को प्रस्तुत करती है। नवाज़ुद्दीन सिद्‌दीकी अभिनीत फिल्म 'मांझी-द माउंटेन मैन' एक सत्य घटना पर आधारित फिल्म है। एक व्यक्ति ने पहाड़ खोदकर एक मार्ग बनाया, जिसके उपयोग से उस क्षेत्र के लोगों को प्रतिदिन 20 किलोमीटर की यात्रा से बचाया गया। उस क्षेत्र का विकास ही इस एक घटना के कारण हो पाया। उस व्यक्ति का नाम दशरथ मांझी था। एक किंवदंती बनी प्रेम कथा शीरी-फरहाद की भी है, जिसमें फरहाद पहाड़ खोदकर नहर लाने में सफल होता है परंतु शीरी से उसका विवाह नहीं हो पाता। सारी किवदंती बनी प्रेम कहानियां त्रासदी ही हैं। अजय देवगन अभिनीत फिल्म 'सन ऑफ सरदार' में जूही चावला का संवाद है कि जिस प्रेम कथा में मिलन नहीं हो पाता क्या उसे प्रेम कथा नहीं मानते। लैला मजनू भी त्रासदी है। के. आसिफ अपनी इस फिल्म के क्लाइमैक्स के लिए जन्नत के सात सेट लगाना चाहते थे। लैला और मजनू मृत्यु के पश्चात जन्नत में मिलते हैं। उनकी असमय मृत्यु के बाद कस्तूरचंद बोकाडिया ने उस आधी-अधूरी प्रेम कथा को किसी तरह प्रदर्शित कर दिया। सभी धार्मिक आख्यानों में स्वर्ग और नर्क के आकल्पन हैं। स्वर्ग की तरह नर्क भी अनेक सतहों वाला है। जैसे रौरव नर्क सबसे अधिक भयावह है। भास्कर के श्रवण गर्ग की कविता का शीर्षक है 'पिता तुम तो पहाड़' कविता-'वह जो पहाड़, खड़ा किया था तुमने/ पत्थर के टुकड़ों को, अपनी लगातार जख्मी होती पीठ पर, ढो-ढो कर/ आज भी वैसा ही खड़ा है। मत ढूंढना मुझे पहाड़ की उस चोटी पर/ जहां तुम ले गए थे मुझे उंगली पकड़कर और फिर छोड़ दिया था मुझे प्रतीक्षा करने के लिए/ हर पुत्र ढूंढता रहता है पिता को अपने जीवन भर/ और पाता है अंत में उसे अपने ही पुत्र में/ और तलाशती रहती है बेटी, मां को/ और हारकर उसे फिर पाती है अपनी ही बेटी में/ अंत में ऐसा तो होता ही है हर युग में।