पहाड़ / कामतानाथ

Gadya Kosh से
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गुलमर्ग के एक होटल में चाय पीते हुए उसने सर्वप्रथम उन्हें देखा था। वे तीन थीं। उनके साथ कोई पुरुष नहीं था। उनमें से दो जींस पहने थीं, एक चूड़ीदार पाजामा और कुर्ता। जींस वाली चमड़े की जैकेट पहने थी और सिर पर स्कार्फ बांधे थी। दूसरी पुलोवर पहने थी। कुर्ते वाली लड़की कार्डिगन पहने थी। तीनों स्वस्थ और जवान थीं। उनके शरीर सुडौल और खूबसूरत थे।

काफी देर तक वह यही समझता रहा कि उनके साथ के पुरुष कहीं इधर-उधर गए हुए हैं। परंतु जब चायघर से निकलकर वे अकेले ही घोड़ों पर चढ़कर खिलनमर्ग की ओर चल दीं, तो उसे विश्वास हो गया कि उनके साथ और कोई नहीं है।

काफी देर तक वह उनकी ओर देखता रहा तो पत्नी ने पूछा, ‘‘क्या बात है?’’

‘‘इनके साथ कोई आदमी नहीं है क्या?’’ उसने कहा।

‘‘क्या पता!’’ पत्नी ने कोई रुचि नहीं दिखाई।

गुलमर्ग से खिलनमर्ग तक लगभग सारे रास्ते वह उनके साथ-साथ आया। रास्ते-भर बार-बार वे अपने घोड़े बदलती रही थीं। घोड़े वाले उनको कमर या रानों से पकड़कर घोड़े से उतरने-चढ़ने में सहारा देते, यह देखकर उसे घोड़ेवालों से ईर्ष्या होने लगी थी। दो-एक बार उसका घोड़ा उनके बिल्कुल बराबर से निकला, तो उसकी इच्छा हुई कि वह उनसे बात करे, परंतु उसने ऐसा नहीं किया।

खिलनमर्ग पहुंचकर उसने जान-बूझकर अपने घोड़े को जहां उनके घोड़े रुके, उन्हीं के पास रोका। वे तीनों घोड़ों से उतरते ही सीधे बर्फ़ पर स्लेज गाड़ियों में फिसलने के लिए चल दीं। स्लेज गाड़ी वाले उनके साथ गुलमर्ग से ही हो लिए थे। वह वहीं घास पर बैठकर सिगरेट पीता रहा तथा उन्हें बर्फ़ के मैदान की ओर जाते हुए देखता रहा। उसकी पत्नी थक गई थी और ज़मीन पर बैठकर हांफ रही थी। उसके लाख मना करने पर भी उसने साड़ी पहन रखी थी। ऊपर से कोट डाले हुए थी। थोड़ी देर वह वहीं बैठा रहा। तब उठकर पत्नी के साथ बर्फ़ की ओर चल दिया। उसकी पत्नी स्लेज गाड़ी पर बैठने को तैयार नहीं हो रही थी। बड़ी मुश्किल से उसने उसे राजी किया। वह वहां पहुंचा, तो वे तीनों बर्फ़ पर खेल कर रही थीं और बर्फ़ की गेंदें बनाकर एक-दूसरे को मार रही थीं।

उनके साथ-साथ वह भी स्लेज पर फिसलता रहा। उनकी गाड़ियां जब एक-दूसरे को पार करतीं, तो वे ज़ोर-ज़ोर से एक-दूसरे का नाम लेकर चिल्लातीं और मुंह से अजीब-अजीब तरह की आवाज़ें निकालतीं। उनमें से एक, एक बार गाड़ी से लुढ़ककर बर्फ़ पर आ गिरी। बाकी दोनों इस बात पर ज़ोर-ज़ोर से हंसने लगीं और देर तक बार-बार उसे बर्फ़ पर ढकेल-ढकेलकर गिराती रहीं।

‘‘चलो, चलें।’’ उसकी पत्नी ने कहा। शायद उसे बर्फ़ पर फिसलने में डर लगने लगा था।

‘‘अच्छा नहीं लग रहा तुम्हें?’’ उसने पूछा।

‘‘लग रहा है।’’

‘‘फिर थोड़ी देर रुको न, अभी चलते हैं।’’

पत्नी मान गई और दोबारा बर्फ़ पर फिसलने के लिए ऊपर चढ़ने लगी। गाड़ीवाला खाली गाड़ी घसीटता हुआ ऊपर चढ़ता और इस तरह काफी ऊंचे निकल जाने पर वे उस पर बैठकर फिसलते। गाड़ीवाला पीछे से रस्सी पकड़कर साथ-साथ दौड़ता जाता। वह लगातार उन लड़कियों की ओर देख रहा था। वे अब भी आपस में खिलवाड़ कर रही थीं। उसकी इच्छा हुई कि वह बर्फ़ का बड़ा-सा ढेला बनाकर उनके ऊपर फेंके। इस इरादे से उसने बर्फ़ उठाई भी। परंतु फिर न जाने क्या सोचकर उसे पत्नी के ऊपर फेंक दिया। वह उसके जूड़े में जाकर लगा और बर्फ़ के नन्हें-नन्हें कण उसके बालों में उलझ गए। उसने देखा, पत्नी को उसका ऐसा करना अच्छा नहीं लगा।

‘‘क्या, सब बाल भिगो दिए!’’ उसने सिर से बर्फ़ झाड़ते हुए कहा।

उसने देखा वे तीनों लड़कियां टेंट की ओर वापस जा रही थीं।

‘‘चलो, चलें।’’ उसने पत्नी से कहा और गाड़ीवालों के दाम चुकाने लगा।

वहां से आकर वह भी उसी टेंट से रुका, जहां वह तीनों लड़कियां बैठी थीं। उन्हीं की मेज़ पर दूसरी ओर वह पत्नी के साथ कुर्सी खिसकाकर बैठ गया। चाय का ऑर्डर देकर उसने सिगरेट सुलगा ली। पत्नी थैले से उबले हुए अंडे निकालकर छीलने लगी, जो वे अपने साथ लाए थे।

जैकेट वाली लड़की ने अपनी जैकेट की जिप खोल ली थी तथा स्कार्फ सिर से उतारकर गले में डाल लिया था। उसने देखा, उसके माथे पर पसीने की बूंदें थीं। उसका सीना सांस के चढ़ाव-उतार के साथ ऊपर-नीचे हो रहा था। जैकेट के नीचे उसने सफ़ेद रंग की टी-शर्ट पहन रखी थी।

वे तीनों ही आपस में तेज बातें कर रही थीं तथा बीच में हंसी में एक-दूसरे की जांघों पर ज़ोर से हाथ मार रही थीं।

उसने पत्नी की ओर देखा जो बहुत ही तन्मय होकर अंडे छील रही थी।

उसका घोड़ेवाला जो इधर-उधर से घूमकर उसके पास आ गया था, उससे चाय के लिए पैसे मांगने लगा। उसने एक रुपये का नोट निकालकर उसे दिया। नोट लेकर भी वह वहीं खड़ा रहा।

‘‘इन पहाड़ों के पीछे क्या है?’’ उसने उससे पूछा।

‘‘पहाड़’’, उसने उत्तर दिया।

‘‘और उसके पीछे?’’

‘‘पहाड़।’’

वे तीनों घोड़ेवाले की बात पर मुसकराने लगीं।

‘‘पहाड़ के अलावा भी तुमने कुछ देखा है?’’

‘‘जी, शाब।’’

‘‘क्या?’’ उसने पूछा।

‘‘पहाड़!’’ उसने मूर्खों की तरह दांत निकाल दिए।

इस बार लड़कियां खिलखिलाकर हंस पड़ीं। वह भी हंसने लगा।

पत्नी ने अंडे छीलकर प्लेट में रख दिए थे। चाकू निकालकर उसने उन्हें चार-चार हिस्सों में काट दिया और नमक निकालकर उन पर छिड़कने लगी। नमक छिड़ककर उसने प्लेट उसकी ओर खिसका दी।

‘‘लीजिए,’’ उसने प्लेट उन लड़कियों की ओर बढ़ाते हुए कहा।

एक क्षण वे तीनों चुप रहीं। तभी जैकेटवाली लड़की ने कहा, ‘‘धन्यवाद, आप खाइए।’’

‘‘लीजिए न!’’ उसने आग्रह किया।

उन्होंने एक-एक टुकड़ा उठा लिया।

लड़का चाय ले आया था। उसने प्लेट बीच में रखी रहने दी और चाय पीने लगा।

‘‘आप लोग अकेले ही आई हैं?’’ उसने चाय पीते हुए उनसे पूछा।

‘‘जी।’’

‘‘कहां, दिल्ली से?’’

‘‘जी नहीं, अमृतसर से।’’

‘‘और लीजिए न।’’

‘‘नहीं, बस, धन्यवाद।’’

उसने प्लेट अपनी ओर खिसका ली। जैकेटवाली लड़की ने जिप दोबारा बंद कर ली थी।

जल्दी ही वे चाय पीकर उठ गईं। उसने गौर किया, जैकेटवाली लड़की ज्यादा स्मार्ट थी। बाकी दो की अपेक्षा उसके नाक नक्श भी ज्यादा अच्छे थे, हालांकि उसका रंग उन दोनों के मुकाबले में कुछ दबा हुआ था।

उसने सोचा, उसे अभी शादी नहीं करनी चाहिए थी। परंतु उसकी शादी को छह वर्ष हो चुके थे। उसके दो बच्चे भी थे, जिन्हें वह अपने पीछे अपनी मां के पास छोड़ आया था। उसने देखा, वे तीनों टेंट से कुछ दूर जाकर ज़मीन पर बैठ गई थीं और उसकी ओर देखकर आपस में बातचीत कर रही थीं। जैकेटवाली लड़की का मुंह उसकी ओर था। बीच-बीच में वह उधर देख लेती थी।

वह पत्नी के साथ बैठा चाय पीता रहा। चाय समाप्त कर बाहर निकला तो देखा, वे तीनों घोड़ों पर बैठकर वापस जा रही थीं।

‘‘चलिए शाव, बारिश आने वाला है,’’ उसके घोड़ेवाले ने कहा। शायद वह वहीं खड़ा उसके निकलने की प्रतीक्षा कर रहा था। उसने देखा आकाश पर एक ओर काले-काले बादल गहरी धुंध की तरह छाने लगे थे।

उसने पत्नी को घोड़े पर चढ़ने में मदद दी और स्वयं उचककर अपने घोड़े पर बैठ गया। थोड़ी ही देर में वह फिर उन लड़कियों के निकट था। उतरने में उसे लगा, गिरने का ज्यादा खतरा है। ‘होश’, ‘होश’-घोड़ा किनारे चलता, तो घोड़ेवाला उसे आवाज़ देता। वे लड़कियां भी ‘होश’, ‘होश’, कर रही थीं।

‘‘नीचे क्या है?’’ उसने घाटी की ओर इशारा करते हुए घोड़ेवाले से पूछा।

घोड़ेवाले ने उसकी ओर देखकर अपने गंदे दांत निकाल दिए।

‘‘पहाड़ है क्या?’’ उसने कहा। ‘‘जी, शाब।’’

‘‘और उसके नीचे?’’

‘‘पहाड़।’’ उसने जान-बूझकर कहा और हंसने लगा।

जैकेटवाली लड़की भी हंसने लगी। उसका घोड़ा उसके बहुत निकट था। इस बार उसने स्कार्फ गले में बांध रखा था। उसके बाल हवा में उड़ रहे थे। तभी उसने देखा, उसकी पत्नी का घोड़ा खड्ड की ओर बिल्कुल किनारे चल रहा था। वह काफी पीछे रह गया था।

‘‘जल्दी-जल्दी चलो,’’ उसने अपने घोड़ेवाले से कहा और सोचने लगा कि पत्नी को रुकने के लिए आवाज दे या नहीं।

नीचे घाटी में बारिश होने लगी थी।