पहिया जाम / मधु संधु
सीधे स्पष्ट नियम थे उसके- इस हाथ दे, उस हाथ ले। उसने आज के काम कागज पर लिखे, तरतीब दी और चल दिया। वह था तो एक मामूली क्लर्क, पर विभाग में उसका दर्जा अलादीन के चिराग-सा था। तीन से पाँच तक का समय प्रबंधकीय ब्लॉक में ही बीतता।
डॉ० सहगल के भांजे के एम०टेक० द्वितीय सेमेस्टर के परीक्षा परिणाम का पता करके उसने वहीं से फोन किया, "साहब जी परिणाम अभी कम्प्युटर में चढ़ा है। उसके अंक 42, 63, 83 और 30 हैं। एक पेपर में रिअपियर है। मैं आते-आते रिअपियर का फोरम लेता आऊँगा।
एक विद्यार्थी की माइग्रेशन फ़ाइल गर्ग दबाकर बैठा था। उसने गर्ग को बेटे के पास होने की बधाई दी। विभाग के पिछले फंक्शन से बचे डॉ वी०आई०पी० पेन भेंट किए दो मीठी दोस्ताना बातें की। एक-आध चुटकुला सुनाया और फ़ाइल मूव करवा ली।
गुप्ता सर के तीन बिल ऑडिट में फंसे थे। वह झट-पट पांचवें माले की सीढ़ियाँ चढ़ गया। ऑडिट वालों का इंतजाम करके आया था। उसे सब रेट मालूम थे। बंद लिफाफा ही साहब के पेपर वेट के नीचे रखा और फ़ाइल को पहिये लग गए। अब वह फ्री था। सुर्खरू था।
कालगति, समय चक्र कब एक-सा रहता है? जैसे सब के दिन फिरते हैं, वैसे ही इस पूरी दुनिया के दिन भी फिर गए।
अब वह निश्चिंत बैठा था। न किसी का रिज़ल्ट लाने की चिंता थी, न ऑडिट का बिल पास करवाने की, उ जाने-खाने का हर काम करने की, न विनम्रता बांटने की।
क्योंकि अबके बॉस ने न केवल उसे रंगे हाथों पकड़ा था, बल्कि सस्पेंशन के ऑर्डर निकलवाने, प्रैस में खबर देने, लंबी छुट्टी पर घर भेजने की धमकी भी दी थी। किसी तरह पगड़ी उनके पैरों पर रखकर उसने इज्जत और नौकरी तो बचा ली, पर अब विभाग में पहिया जाम-सा हो गया था। हर काम ठहर गया था। रुक गया था।