पहेली / ख़लील जिब्रान / बलराम अग्रवाल
दो हजार साल पहले, लेबनान के एक ढलान पर दो दार्शनिक मिले। एक ने पूछा, "कहाँ जा रहे हो?"
दूसरे ने उत्तर दिया, "मैं जवानी के झरनों की खोज में लगा हूँ। मुझे पता है कि उनका स्रोत इन पहाड़ों के बीच से फूटता है। मैंने कुछ ऐसे लेखों को ढूँढ़ निकाला है जिनमें लिखा है कि झरनों के मुँह सूरज की ओर खुलते हैं। तुम सुनाओ, तुम किस खोज में हो?"
पहले ने कहा, "मैं मौत का रहस्य जानने में लगा हूँ।"
दोनों दार्शनिक इस नतीजे पर पहुँचे कि दूसरा उसके मुकाबले बहुत पिछड़ा हुआ है। फिर उन्होंने परस्पर झगड़ना और एक-दूसरे पर आध्यात्मिक अंधेपन का आरोप लगाना शुरू कर दिया।
जब उनके झगड़े ने शोर का रूप धारण कर लिया, तब उधर से गुजरता सीधा-सादा एक अजनबी ग्रामीण वहाँ रुक गया और उनकी गाली-गलौज़ को सुनने लगा।
फिर वह उनके नजदीक गया और बोला, "सज्जनो, मुझे लगता है कि आप दोनों दर्शन के एक ही स्कूल की उपज हैं। अलग-अलग शब्दों में आप एक ही बात बोले जा रहे हैं। आप में से एक जवानी के झरने की खोज में है और दूसरा मौत के रहस्य की। दोनो ही चीजें एक हैं। और क्योंकि एक हैं इसलिए तुम दोनों में मौजूद हैं। अच्छा, अलविदा!" अपनी बात कहने के बाद यह कहते हुए वह वहाँ से चल दिया; जाते-जाते धीमी हँसी भी हँसा।
दोनों दार्शनिक एक पल को सन्न खड़े रह गए। फिर वे भी हँस पड़े। उनमें से एक बोला, "अच्छा, क्या हमें खोज का काम अब साथ-साथ नहीं करना चाहिए?"