पाकड़ पर प्रेत(कहानी) / अमरेन्द्र
रात उतरै में आभी ढेरे देर छेलै । जोगबरिया की आय सें रही रहलोॅ छै, कचहरी हाता के ई दुकानी में । जोॅन दिनोॅ सें शहरोॅ में गोड़ राखलेॅ छै, वही दिनोॅ सें । मतरकि कभियो ऊ आपना केॅ है रँ अनभुआर हेनोॅ नै पैलोॅ छेलै, नै ई रँ भयभीते, जे रँ आय आपना केॅ महसूस करी रहलोॅ छेलै । ओकरोॅ चाय-पान के दुकान ठीक बरोॅ गाछी के नीचेॅ छेलै, जे ओकरोॅ वास्तें घरो के काम करै, मतरकि आय यहेॅ घोॅर ओकरोॅ वास्तें राकस के मूँ रँ लागी रहलोॅ छै, गाछी के कोय्यो ठाहुर पर जेन्हैं कोय चिड़ियाँ पंख फड़फड़ावै आरो एक्को पत्ता सरसरावै, तेॅ चौंकी पड़ै ऊ। ओकरोॅ मनोॅ में शंका के आंधड़-बतास चली रहलोॅ छेलै, ‘‘हमरौ खूब मालूम छै कि आय दस सालोॅ के बाद रमखेलिया के याद विसेसरा केॅ कैन्हें पड़लोॅ छै । आय तांय कहाँ हेरैलोॅ छेलै ओकरोॅ मति ? कहियो तेॅ याद नै करलकै । हमरौ खूब मालूम छै कि अनचोके ओकरोॅ पिरीत कैन्हें जागलोॅ छै’’ जोगबरिया नें मने-मन सोचलेॅ छेलै आरो आपनोॅ बाँया तरत्थी पर दाँया हाथ के एक घुस्सा जमैतें कहलेॅ छेलै, ‘‘विसेसरा, बस यहेॅ समझेॅ कि तोहें हमरोॅ भाय छेकैं, ऊ सौतैले कैन्हें नी, आखिर छेकैं तेॅ भाइये । जों भाय नै रहतियैं, तेॅ तहूँ जोगबरिया के गोस्सा देखिये लेतियैं । कोर्ट कचहरी जे होतियै, ऊ देखलोॅ जैतियै । आरो की कोर्ट-कचहरी के दाँव-पेंच तोहें हमरा सें ज्यादा जानै छैं । अरे, हमरोॅ जिनगिये कोर्ट-कचहरी के मुंशी-वकीलोॅ के बीच गुजरलोॅ छै । हमरा एकरोॅ इलिम रहेॅ -न-रहेॅ कि चाय-पान में कत्तेॅ चीनी-पत्ती आरो चूना-खैर लगै छै, मतरकि कानून केना चलै छै, ऊ तेॅ हम्में जानवे नी करै छियै । ई चाय-पान, चीनी-चूना के ज्ञान तेॅ रमखेलिया केॅ छै, जेकरा तोहें उड़ावै लेॅ चाहै छैं, मतरकि जानी लेॅ विसेसर, तोरोॅ ई मंसा जिनगी भर नै पूरैवाला छौं । हों..... ई तोरोॅ लेॅ लगोर होतौं, हमरोॅ लेॅ हमरोॅ बेटा छेकै ।’’ सोचतें-सोचतें हठाते ओकरोॅ ध्यान रमखेलिया दिश गेलै, जे दुकानी के एक ओरी में बेचीं बिछाय केॅ चित्त लेटी गेलोॅ छेलै, छाती पर दोनों हाथ राखलें, एकदम घोर नींदोॅ में ।
जोगबरिया भी ओकरे बगलोॅ में सुतै छै, दुकान केॅ समेटी-उमेटी, तीन बेंची केॅ जोड़ी एकदम चैकी रँ बनाय लेलकोॅ आरो वहीं पर सुती रहलोॅ ।
ऊ धीरें-घीरें बेंची सें उठलै आरो रमखेलिया के दोनों हाथ केॅ छाती सें हटाय केॅ नीचें करी देलकै, ‘‘कहै छै छाती पर हाथ राखी केॅ सुतला सें खराब-खराब सपना आवै छै ।’’ वैनें माय सें सुनलोॅ बातोॅ केॅ याद करनें छेलै ।
छाती पर हाथ धरी सुतला पर रमखेलिया केॅ तेॅ सपना की ऐतै, हों, जोगबरिया केॅ आयकल खराब-खराब सपना जरूर आवी रहलोॅ छै, जोॅ न दिनोॅ सें ओकरा अशुभ के शंका मिललोॅ छै आरो यहेॅ सपना के कारण ऊ आयकल रात-रात भरी भरसक जागले रही जाय छै। जगले रहै छै तेॅ हेन्है केॅ नै; आयके तेॅ बात छेकै, वै नें विसेसरा केॅ सरजुग के पान दुकानी पर देखलेॅ छेलै । पान लेला के बादो ऊ घंटा भरी वहेॅ दुकानी पर खाड़े रही गेलोॅ छेलै । चबाय तेॅ रहलोॅ छेलै पान, मतरकि ओकरोॅ नजर रमखेलिये दिश छेलै । वैं समझी रहलोॅ छलै कि हम्में ओकरा नै देखलेॅ छियै, मतरकि ओकरा की मालूम, जोॅ न दिना सें ओकरोॅ नीयत के पता हमरा चललोॅ छै, हम्में आपनोॅ अजनबी गहकियो पर नजर राखै छियै । आयकल, तेॅ आदमी केॅ दिन-दहाड़े उड़ाय लै भागै छै, रमखेलिया के आभी उमिरे की होलोॅ छै, बारह बरिस के तेॅ होेतें-होतै ।’’
पता नै ओकरोॅ मनोॅ में की ऐलोॅ छेलै, ऊ धीरें-धीरें सरयुग के दुकानी दिश बढ़लै, वाहीं सें हिन्नें-हुन्नें सब दुकानी के आगू-पीछू केॅ कोन्हराय-कोन्हराय केॅ देखलेॅ छेलै आरो फेनू निचिन्त होय आपनोॅ बेचीं तक लौटी ऐलोॅ छेलै । सोचलकै, ‘‘रात बीतै में अभियो आधोॅ पहर बाकी छै, कैन्हेंनी वें एक झपक मारी लौं । फेनू तेॅ फरचोॅ होय के पहिले, जे आँख खुलतै तेॅ दस बजेॅ रातिये फुर्सत ......कांही कोय शंका-ऊंका के बातो नै छै’’ आरो केहुनी बल्लोॅ लेटतें आपनोॅ टाँग बेंची पर चढ़ाय लेलेॅ छेलै । नींद लानै के खयालोॅ सें वैं आँखो बन्द करी लेलकै, मतरकि आय ओकरा केन्हौ केॅ नींद नै आवी रहलोॅ छेलै । रही-रही केॅ विसेसर के चेहरा ओकरोॅ आँखी में घुरी आवै छेलै, आरो ओकरोॅ चेहरा याद करी ऊ फेनू बुदबुदैलोॅ छेलै, ‘‘केन्होॅ छटलोॅ बदमाश लागेॅ लागलोॅ छै ई । आय सें दस साल पहिलका सें एकदम अलग । तखनियो कड़ा रुख के तेॅ छेवे करलै । नै रहैतियै तेॅ खाली माय्ये-बाबू के की, पूरा टोला-मुहल्ला के विरोध करी केॅ फुलटुस दा के विधवा कनियैनी केॅ आपनोॅ घोॅर केना लै आनतियै ! विसेसर नें टोला में हकाय केॅ कही देलेॅ छेलै, ‘‘रमखेलिया आबेॅ हमरोॅ बच्चा छेकै, आरो एकरी माय हमरी कनियैन ।’’
वैनें पिछलका दिनोॅ केॅ याद करलकै, ‘‘मतरकि सालो नै पुरलोॅ होतै, घरोॅ में गाली-गलौज मचेॅ लागलोॅ छेलै । रमखेलिया माय केॅ ओकरोॅ सांय के नाम लैकेॅ की-की नै गाली पढ़ेॅ लागलोॅ छेलै, आरो रमखेलिया, रमखेलिया तेॅ टुक-टुक खाली ताकै । भुखलोॅ -प्यासलोॅ टौव्वैतेॅ रहै । जबेॅ मय्ये केॅ दाना नसीब नै छेलै तेॅ बेटा केॅ कहाँ सें होतियै । टोला-पड़ोसोॅ सें तेॅ पहलें सें दुश्मनी छेलै, ई बीहा लै केॅ । फेनू विसेसरै कोॅ न कमाऊ छेलै । दिन भरी हिन्नें-हुन्नें सें झाड़ी लानै तेॅ घोॅर चलै.........विसेसरां भले घरोॅ सें आँख मुनी लेलेॅ छेलै, आरो सब केना मुनतियै ! एक घरोॅ के दू दुआर रहलै सें की होय जाय छै । कानवोॅ -कपसवोॅ दीवार-द्वार थोड़े जानै छै । हमरोॅ जी फाटी केॅ रही गेलोॅ छेलै,
‘‘मतरकि सचमुचे यहेॅ बात छेलै ?’’ जोगबरियां आपनोॅ दिमागोॅ पर बल देलेॅ छेलै आरो तुरत्ते ऊ बोली उठलोॅ छेलै, ‘‘नै, नै, ई तेॅ नै छेलै । बात कुछु आरो छेलै । जोॅ न दिन हम्में ओसरा पर रमखेलिया केॅ खेलतें देखलेॅ छेलियै, वही दिन हम्में एकदम सें अवाक रही गेलोॅ छेलियै, ओकरा निरयासी केॅ देखलेॅ छेलियै--एकदम हमरे बेटा के नाक-नक्श लेलेॅ छै । सोचलेॅ छेलियै--आय ऊ जों जिन्दा रहतियै, तेॅ हेने होतियै, छिनमान हेने ।’’
केन्होॅ पगलाय गेलोॅ छेलै जोगबरिया--आपनोॅ गोदी में आपनोॅ पहिलोॅ टा पूत पावी केॅ । सोरी घोॅर भी नै बुझलेॅ छेलै वैनें आरो दिन-रात सोरिये घरोॅ में घुसलोॅ रहै । टोला-पड़ोसा के रिश्ता में भौजाय लगैवाली जनानी सिनी लाजो लगावै, मतरकि ओकरा पर कोय असर नै । वैं सोचेॅ लागलै--कत्तेॅ -कत्तेॅ सपना देखलेॅ छेलै वैनें, अपनी कनिलयैनी से भी कहीं ज्यादा........मतरकि छवो महीना भर नै टिकलै, आपनें नसैलै तेॅ मय्यो केॅ साथे-साथ लै गेलै । हँकरी-हँकरी केॅ जान दै देलेॅ छेलै, एकदम सें तेजी देलेॅ छेलै अन्न-पानी केॅ .......पता नै, रमखेलिया केॅ देखत्है कैन्हें हमरा लागलोॅ छेलै कि हमरे बेटा फेनू जनम लेलेॅ छै, आरो ऊ दिन एक बातोॅ पर रमखेलिया माय के गोदी सें एकरा लै केॅ हम्में यहाँ चललोॅ ऐलोॅ छेलियै । ऊ दिन सें लै केॅ आय तक कोय्यो नै खोज-खबर लेलकै, विसेसरा तेॅ तखनी ई बातोॅ सें खुशे होलोॅ छेलै........यहाँ ऐला के ठीक साले भरी बाद गाँव के पुरानोॅ दोस्त मंगलिया सें हमरा भेंट होलोॅ छेलै तेॅ वहीं बाते-बात में बतैलेॅ छेलै कि रमखेलिया केॅ है रँ लै आनला पर विसेसरां कहलेॅ छेलै--ठिक्के होलै, जे विपत्ति उठाय केॅ लै गेलै, अच्छा होतियै कि ओकरी मैय्यो केॅ उठाय लै जैतियै, जानोॅ के जंजाल छुटतियै । सारोॅ , आपनोॅ पेट तेॅ पालना मुश्किल, वहाँ पर ई मौगी लेॅ अन्न जुटैवोॅ कत्तेॅ मुश्किल छै, हम्मी जानै छियै । ऊ तेॅ जुआनी के तरंग में हम्में अन्हरोॅ बनी केॅ एकरा लै आनलियै । नै आनतियै तेॅ एक पेट साँढ़ नाँखि डकरतें पालतें रहतियैं.........
जोगबरिया मने-मन भुनभुनैलोॅ छेलै, ‘‘तेॅ खबर कैन्हें नी करवाय देलैं, तोरा लगोर जनानी उठाय के साहस, तेॅ हमरा नै । जों रमखेलिया माय आवै वक्ती जरियो टा आपना मोॅन देखैतियौ, तेॅ सब फैसला तखनिये होय जैतियौ । हम्में तेॅ यही सोची ओकरा सें कुछ नै कहलेॅ छेलियै कि की समझतै वैं--ई घरोॅ के लोग जनानी केॅ लोटा-थरिया समझै छै, जे चाहेॅ वही उठाय केॅ चली देॅ । तखनी ई बात जों हमरोॅ मनोॅ में नै ऐलोॅ होतियौ तेॅ विसेसर आय ऊ हमरा लुग होतियौ । दुकानी के पीछू तेॅ खाली पड़लोॅ जग्घोॅ छेवे करै, एकटा ढावा खसाय देतियै । वही में उमिर काटी लेतिय वैं । हों आबेॅ उमिरे तेॅ काटना छै । तोहें तेॅ ओकरा उमिरो नै काटै लेॅ देतें होवैं । ऊ जनानी के साँय होय के दावाहो करै छैं आरो पेटो नै पालै छैं........विसेसरा, जों ऊ यहाँ होतियै तेॅ पेट खातिर कोय मरद के पैर नै पकड़ै लेॅ पड़तियै, जानी ले । मंगलिया के एक बातोॅ सें हम्में जानी लेलेॅ छियौ कि तोहें ऊ बेबस जनानी सें की-की करवाय रहलोॅ छैं । की समझलेॅ छैं--सरंग में गहन लागै छै तेॅ खाली चांदे-सुरूज जानै छै--गहण तेॅ बाद में लागै छै, दुनिया पहिलें जानै छै आरो फेनू आग कांही लागौ, धुइयां तेॅ दूर तांय दिखाय पड़ै छै ।’’
ऊ दिन बाजार करतें हठाते लपटोलिया के डांेगी का मिली गेलोॅ छेलै, तेॅ जोगवारी केॅ गाँव के खिस्सा सुनैतेॅ हाँसी केॅ कहलेॅ छेलै ‘‘आबेॅ तोहरोॅ भाय तेॅ काफी मौज-मस्ती में छौ, खाय-पीयै के कोय कमी नै । कनियाँय केॅ महतो बाबू कन नौड़पनी के काम मिली गेलोॅ छै, फेनू कमी कथी के रहतै । आबेॅ तेॅ सुनै छियै, विसेसरौं डाँटना-फटकारना छोड़ी देलेॅ छै, महतो बाबू डाँटै-फटकारै सें मना करलेॅ छै । आबेॅ की जानौ, की बात छै..........’’ महतो बाबू के बात याद ऐत्हैं जोगबरिया बेचैन होय उठलै ।
जोगबरिया केॅ मालूम छै कि महतो बाबू इलाका भरी में कत्तेॅ दबंग आरो मातवर आदमी छेकै, हुनकोॅ इच्छा के विरुद्ध तेॅ पंचायतो नै खखसै छै । ओकरा याद पड़लै--यहेॅ महतो बाबू के घरोॅ सें दू सौ गज के दूरी पर सिकोरिया के बारात जाय रहलोॅ छेलै, सिकोरिया डोली पर बैठलोॅ छेलै । महतो बाबू के सामना सें भला सिकोरिया जेन्होॅ आदमी डोली पर बैठी केॅ बीहा करै लेॅ जाय, ई तेॅ एकदम अनक्टठोॅ बात भेलै । महतो बाबू नें आपनोॅ दू आदमी केॅ भेजी केॅ डोली लौटवैलेॅ छेलै आरो आपने घरोॅ के सामना वाला खजूरी गाछी सें सिकोरिया केॅ बाँधी केॅ की रँ पिटवैलेॅ छेलै, वहेॅ खजूरी गाछी के खजूरिये साटोॅ सें । कहलेॅ छेलै--हमरोॅ आँखी के सामना सें डोली पर चढ़ी केॅ जाय के गौरव के परिणाम की होय छै, जानी लेलेॅ नी ।........
जोगबरिया के सौंसे देह भौआय उठलै, जेना महतो बाबू के आदमी ओकरे देहोॅ पर वहेॅ खजूरी के साटोॅ बरसावेॅ लागलोॅ रहेॅ । देखत्हैं-देखत्हैं वैनें आपना केॅ सिकोरिया के जग्घा पर बाँधलोॅ पैलेॅ छेलै आरो सामन्हैं में महतो बाबू कुर्सी लगवाय केॅ बैठलोॅ होलोॅ गुर्राय रहलोॅ छेलै, ‘‘की रे जोगबरिया, पुस्त-दर-पुस्त तोरोॅ बाप-दादा हमरोॅ घरोॅ के जोगबारी करतें ऐलौ आरो वहीं सें घोॅ र भरी के पेट पोसैतें रहलौ....... से कत्तेॅ अन्नोॅ सें खून बढ़ी गेलौ कि हमर्है सें रार करै पर उतरी ऐलोॅ छैं......बिना हमरा पुछलैं, विसेसर के बेटा केॅ उठाय केॅ चली देलैं--सुनाफड़ में बनलोॅ मन्निर के देवता के सोनावाला आँख उखाड़ी लेलैं, आंय रे.....आँख की गाड़लेॅ होलेॅ छंै, आँख उठाय केॅ हिन्नें नी देख’’
आरो जोगबरिया केॅ लागलोॅ छेलै कि वैं नें जबेॅ आँख उठैलकै तेॅ देखलकै, वहाँ पर महतुए बाबू नैं, ओकरोॅ भाय विसेसरा भी खाड़ोॅ छेलै आरो विसेसरे के बगलोॅ में ओकरी कनियैन । ओकरा लागलै--महतो बाबू के फेनू आवाज उठलोॅ छेलै, ‘‘विसुनमा, जरा दैं तेॅ फेनू सें गिनी केॅ बीस साटोॅ एकरोॅ देहोॅ पर । बच्चा-चोरी के केस अभी एकरा मालूमे नै छै ।’’
जोगबरिया केॅ जना करेन्ट लागी गेलोॅ रहेॅ । ऊ एकदम तिलमिलाय केॅ उछली पड़लोॅ छेलै । डरलोॅ -डरलोॅ आँखी सें चारो दिश हेरलेॅ छेलै । कांही कुछ न छेलै । ओकरोॅ आपनोॅ स्वभाव पर गुस्सो ऐलोॅ छेलै, मतरकि है सोची केॅ कि कहीं है सब होयवाला घटना के पहिलकोॅ भास ही तेॅ नै छेकै । ओकरी माय कहै छेलै, कोय बहुत बड़ोॅ घटना होय वाला रहेॅ तेॅ मनें पहिलेॅ ओकरोॅ भास कराय दै छै । ई बात याद ऐत्हैं ऊ फेनू एकदम सें सिहरी उठलै । जांे विसेसरां महतो बाबू के बल्लोॅ पर एकरा मंगवाय लेलकै, तबेॅ की होतै । हमरोॅ दुनियां के की होतै । रमखेलिया आगू में खेलतेॅ -धूपतेॅ रहै छै तेॅ बेटे नै, खगड़िया वाली भी आँखी के सामना में घुरतें रहै छै । मरला सें की आदमी के यादो मरी जाय छै, फेनू हमरोॅ बिना तेॅ यहू मुरझाय केॅ रही जैतै । देखै नै छियै, घोॅ र जाय के नामे सें केन्होॅ मनझमान बनी जाय छैं..... आय सें पाँच साल पहिले एकरी माय ऐली छेलै, एकरा लै लेॅ ही । कत्तेॅ मनैला-कहला के बादो ई यहेॅ कहतेॅ रही गेलै, हम्में बाबू छोड़ी केॅ कहूँ नै जैबौं’’ ऊ क्षण केॅ याद करतें जोगबरिया के आँख लोराय गेलै आरो बोली उठलै, ‘‘आरो हम्मूं तोरा नै छोड़ेॅ पारौं बेटा, तोहें केकरोॅ लेॅ लगोर रहेॅ पारें, हमरोॅ लेॅ एकदम अपनसुत ।’’
एक क्षण लेली लागलै कि ऊ एकदम मजगूत होय उठलोॅ छै । काहीं सें कोय डोॅ र नै कि तखनिये एक शंका ओकरा मनझमान करी देलकै--मानी लै छियै विसेसरा के कहला पर महतो बाबू कुछ नहियो ध्यान देॅ , मतरकि रमखेलियैं माय जो विससेर के बातोॅ में आवी केॅ महतो बाबू सें कहै, तबेॅ की होतै ?...कोय ठिकानोॅ नै, आखिर कत्तोॅ मरद मारेॅ -चुरेॅ , दुल्हा-कनियैन एक समय एक्के होय जाय छै ।’’ जोगबरिया नें मनोॅ के शंका केॅ बल देतें मने मन कहलेॅ छेलै, ‘‘कोन ठिकानोॅ , विसेसरा के बातोॅ में आवी केॅ रमखेलिया माय महतो बाबू सें कहलेॅ रहेॅ कि हमरा हमरोॅ लड़का मंगवाय देॅ , हमरोॅ सहारौ होतै आरो बचलोॅ समय में मालिकोॅ के कामो करी देतै । हुएॅ-न-हुएॅ, महतोॅ बाबू ई सोचलेॅ रहेॅ कि रमखेलिया तेॅ आबेॅ खेत-बारी करै लायक होय्ये गेलोॅ होतै, कैन्हें नी ओकरा बुलवाय लेलोॅ जाय........मतरकि ज्यादा तेॅ यहेॅ बात सच लागै छै कि है चाल विसेसरा के ही छेकै । ओकरा मालूम होय गेलोॅ छै कि रमखेलिया एकदम चालू-पुरजा होय गेलोॅ छै । गाँव में चाय-पान के दुकान खोली देभैं तेॅ हमरोॅ बुढ़ारी तक के व्यवस्था होय जैतै आरो ई बात वैं रमखेलियो माय लुग रखलेॅ होतै, शैत यहू कहलेॅ होतै कि वैं जाय केॅ महतो बाबू केॅ कहेॅ --हुनी जेना भी हुएॅ रमखेलिया केॅ गाँव बुलवाय देॅ । ........मतरकि है हुऐ नै पारेॅ ’’ वैनें आपनोॅ शंका केॅ एकदम निर्मूल करतें हएॅ आपना केॅ समझैलेॅ छेलै, ‘‘जो हेने बात होतियै, तेॅ रमखेलिया केॅ गोद में तखनी देतें ई कहतियै--आय सें तोहीं एकरोॅ बाप । ई तोर्हे छाया, तोर्हे लाठी--वैनें विसेसरा के बात एकदम सें टाली देलेॅ होतै--मारो-लात खाय केॅ नै मानलेॅ होतै, आखिर वहूँ तेॅ जानै छै कि कोनी विपदा के घड़ी में हम्में ई लगोरोॅ केॅ बचैनें छियै......’’ ऊ ओकरोॅ दिश सें निचिन्त होय केॅ फेनू विसेसरा बारे में सोचलेॅ छेलै, ‘‘जे हुएॅ, जों विसेसरा यहाँ ऐलोॅ छेलै तेॅ आरो कुछ व्यवस्था वें जरूरे करलेॅ होतै । हुएॅ सकै छै कि दू-चार आदमी केॅ आरो हिन्नें-हुन्नें बैठलेॅ रहेॅ , आरो समझैलेॅ रहेॅ कि--सुनाफड़ देखत्हैं रमखेलिया केॅ उठाय लेना छै । आरो जों मानी लेॅ , विसेसरा रमखेलिया केॅ गायब करवाय में सफल होय जाय छै तेॅ हम्में की ओकरा पावौं पारवै ? नै कभियो नै, रोजे तेॅ बच्चा गायब करै के बात सुनै छियै, आरो फेनू महीनो-महीनो सुनतें रहै छियै कि हो बच्चा नै मिललै--आखिर मिललै तेॅ फलां जंगल में टुकड़ा-टुकड़ा करलोॅ ......’’
जोगबरिया एकदम घामेॅ घमजोर होय उठलै । ओकरा लागलै कि ओकरोॅ गोड़ थरथरावेॅ लागलोॅ छै । जेना आपना पर ओकरा कोय अधिकारे नै रही गेलोॅ रहेॅ । नै जानेॅ कैन्हें ओकरा लागेॅ लगलोॅ छेलै कि विसेसरा के आदमी सिनी हिन्नें-हुन्नें काँही छिपलोॅ बैठलोॅ छै । जबेॅ कि वैं जानै छेलै--ई सब ओकरोॅ भरम छेकै, यहाँ तेॅ रातो भर कचहरी जागले रहै छै, दुए बजें चुल्हा में आग पड़ी जाय छै आरो चार बजे भोर सें हाॅटलोॅ में खाना बनाना शुरू होय जाय छै, एक होटल के बात थोड़े छेकै, दस-दस हाॅटल में सवो सौ नौकर-चाकर जमले रहै छै । एक हाँक देतै, तेॅ पूरा कचहरी गनगनाय उठतै । तहियो नै जानौ, आय जोगबरिया केॅ ई सब बातोॅ पर कोय विश्वास नै होय रहलोॅ छेलै । ओकरा लागी रहलोॅ छेलै, सब कोय ऊँघी रहलोॅ छै । भय में ओकरोॅ आँख वकील तरूण बाबू आरो मुंशी अशोकी बाबू के बैठकी दिश गेलै, जहाँ पर हुनका दोनों के उठत्हंै कोय-न-कोय बैठले रहै छेलै, आय वहू पर कोय नै छेलै । जोगबरिया के हृदय अनहोनी होय के आशंका सें भौआय उठलै, ‘‘की सचमुचे में तेॅ कोय अनहोनी नै होय वाला छै !’’ मतरकि वैं जानै छै, पिटपिटिया के बात अलग छै, एकरा सें अलग ऊ पांचो आदमी केॅ अकेल्ले देखेॅ सकै छै, यहूँ उमिरोॅ मेें एतना ताकत तेॅ छेवे करै । वैनें सरंग दिश देखलकै--आभियो फरचोॅ होय के दूर-दूर तक ठिकानोॅ नै छेलै, जबकि बोॅ र गाछी पर बैठली चिड़िया सिनी एक दाफी हाँक पारी चुकलोॅ छेलै ।
पहिलोॅ दाफी ओकरा लागलोॅ छेलै कि ऊ आय तक मुर्दघट्टी केॅ जोगी रहलोॅ छै, जहाँ लोग आवै छै, आपनोॅ संबंध-विच्छेद करै लेॅ । आरो बड़ी थकचुरुवोॅ होय केॅ सोचलेॅ छेलै ‘‘फेनू हैनोॅ जग्घोॅ केॅ जोगिये केॅ की होतै । तभियो रात तेॅ काटनै छै ।’’
जोगबरिया नें आपनोॅ तीनो ठो बंची केॅ रमखेलिया के बेंची सें सटाय देलकै आरो वही पर गोड़ बिथारी केॅ बैठी गेलै । फेनू सिरहाना दिश एत्तेॅ खिसकी ऐलै कि ओकरोॅ आरो रमखेलिया के तरबा एक सीधी में आवी जाय । वैनें आपनोॅ गल्ला सें लिपटलोॅ गमछी केॅ उतारलकै आरो आहिस्ता-आहिस्ता ओकरा आपनोॅ साथें रमखेलिया के एड़िया के नीचें सें पार करी देलकै । ओकरोॅ दोनों छोर केॅ एक करतें आहिस्ता-आहिस्ता गाँठ लगैलकै । एक गाँठ नै, तीन-तीन गाँठ--कस्सी केॅ , हौले-हौले कि रमखेलिया के नीन नै टुटेॅ । जोगबरिया एक दाफी फेनू ओकरा देखलकै, ऊ आभियो निभोर सुती रहलोॅ छेलै । दोनों केहुनिया के सहारा लेतें वहू वाहीं पर चित्त लेटी गेलै--ई तीनडेरिया पर आँख गड़ैनें ।