पाखंड पर चोट: चर्चित और विवादास्पद पुस्तक / ओशो
समीक्षा लेखक: जयराम "विप्लव",संपादक,जनोक्ति.कॉम
पिछली सदी के महान विचारक तथा आध्यात्मिक नेता श्री रजनीश ओशो ने प्रचलित धर्मों की व्याख्या की तथा प्यार, ध्यान और खुशी को जीवन के प्रमुख मूल्य बताया । दुनिया को एकदम नए विचारों से हिला देने वाले , बौद्धिक्जागत में तहलका मचा देने वाले भारतीय गुरु ओशो से पश्चिम की जानता इस कदर प्रभावित हुई कि भय से अमेरिकी सरकार ने उन्हें गिरफ्तार करवा दिया था |
ओशो ने सैकडों पुस्तकें लिखीं, हजारों प्रवचन दिये। उनके प्रवचन पुस्तकों, आडियो कैसेट तथा विडियो कैसेट के रूप में उपलब्ध हैं। अपने क्रान्तिकारी विचारों से उन्होने लाखों अनुयायी और शिष्य बनाये। अत्यधिक कुशल वक्ता होते हुए इनके प्रवचनों की करीब ६०० पुस्तकें हैं। लेकिन संभोग से समाधि की ओर इनकी सबसे चर्चित और विवादास्पद पुस्तक है। इस किताब को आज भी लोग पढ़ते हैं तो उनको सलाह दी जाती है कि पढो पर ऐसा मत करना ! दरअसल , यही ओशो के विचारों का डर है जो तब भी समाज में था और आज भी है ! काजल की कोठरी में रहते हुए काजल लग जाने का डर और ओशो मानव को उसी काजल की कोठरी से अंतर्मन को जगाने की बात करते हैं |
ओशो ने हर एक पाखंड पर चोट की। ओशो ने सम्यक सन्यास को पुनरुज्जीवित किया है। ओशो ने पुनः उसे बुद्ध का ध्यान, कृष्ण की बांसुरी, मीरा के घुंघरू और कबीर की मस्ती दी है। सन्यास पहले कभी भी इतना समृद्ध न था जितना आज ओशो के संस्पर्श से हुआ है। इसलिए यह नव-संन्यास है। उनकी नजर में सन्यासी वह है जो अपने घर-संसार, पत्नी और बच्चों के साथ रहकर पारिवारिक, सामाजिक जिम्मेदारियों को निभाते हुए ध्यान और सत्संग का जीवन जिए। उनकी दृष्टि में एक संन्यास है जो इस देश में हजारों वर्षों से प्रचलित है।
उसका अभिप्राय कुल इतना है कि आपने घर-परिवार छोड़ दिया, भगवे वस्त्र पहन लिए, चल पड़े जंगल की ओर। वह संन्यास तो त्याग का दूसरा नाम है, वह जीवन से भगोड़ापन है, पलायन है। और एक अर्थ में आसान भी है-अब है कि नहीं, लेकिन कभी अवश्य आसान था। वह सन्यास इसलिए भी आसान था कि आप संसार से भाग खड़े हुए तो संसार की सब समस्याओं से मुक्त हो गए। क्योंकि समस्याओं से कौन मुक्त नहीं होना चाहता? लेकिन जो लोग संसार से भागने की अथवा संसार को त्यागने की हिम्मत न जुटा सके, मोह में बंधे रहे, उन्हें त्याग का यह कृत्य बहुत महान लगने लगा,
वे ऐसे संन्यासी की पूजा और सेवा करते रहे और सन्यास के नाम पर परनिर्भरता का यह कार्य चलता रहा : सन्यासी अपनी जरूरतों के लिए संसार पर निर्भर रहा और तथाकथित त्यागी भी बना रहा। लेकिन ऐसा सन्यास आनंद न बन सका, मस्ती न बन सका। दीन-हीनता में कहीं कोई प्रफुल्लता होती है ?
धीरे-धीरे सन्यास पूर्णतः सड़ गया। सन्यास से वे बांसुरी के गीत खो गए जो भगवान श्रीकृष्ण के समय कभी गूंजे होंगे-सन्यास के मौलिक रूप में। अथवा राजा जनक के समय सन्यास ने जो गहराई छुई थी, वह संसार में कमल की भांति खिल कर जीने वाला सन्यास नदारद हो गया।
नवभारत टाइम्स, फरवरी 28, 2010
प्रेम, एक ऐसा लफ्ज जो हमारे चारों ओर अक्सर सुनाई देता है, लेकिन विडंबना देखिए कि लोगों के मनों में जितना इसे खोजने जाएंगे, उतनी ही निराशा हाथ लगेगी। ऐसा क्यों है? ऐसा इसलिए है कि हमारे तथाकथित धर्म-गुरुओं और पथ-प्रदर्शकों ने उस चीज को पर्दे से बाहर ही नहीं आने दिया, जो प्रेम का प्राथमिक बिंदु है। हो सकता है, यह सुनकर ऐसे लोगों की भौंहें तन जाएं, लेकिन ओशो ने अपनी किताब 'संभोग से समाधि की ओर' के पहले भाग में बड़ी बेबाकी से इस तथ्य को स्थापित करने की कोशिश की है कि प्रेम का प्राथमिक बिंदु सेक्स ही है और जो लोग सेक्स को घृणा के नजरिए से देखते हैं, वे कभी प्रेम कर ही नहीं सकते। ओशो मानते हैं कि संभोग और समाधि के बीच एक सेतु है, एक यात्रा है, एक मार्ग है। समाधि जिसका अंतिम छोर है और संभोग उस सीढ़ी का पहला सोपान है, पहला पाया है।
युवक और योनि व क्रांति सूत्र, किताब के दूसरे अहम हिस्से हैं। जनसंख्या विस्फोट, युवक, विद्रोह, प्रेम विवाह जैसे मुद्दों पर विस्तार से चर्चा करने के बाद किताब के अंतिम हिस्से क्रांतिसूत्र में ओशो ने किसी भी तरह के वाद, पब्लिक ओपिनियन और दमन से मुक्ति की जोरदार वकालत की है। किताब में कई ऐसे दिलचस्प उद्धहरण हैं जो प्रैक्टिकल भले ही न हों, लेकिन प्रैक्टिकेबल जरूर मालूम देते हैं। मसलन कहीं ओशो अपोजिट सेक्स के बच्चों को ज्यादा-से-ज्यादा नग्न रखने की सलाह देते हैं, तो कहीं हर नगर में खजुराहो जैसी नग्न प्रतिमाओं के होने की वकालत करते हैं। कभी उन्हें मां और बेटे के बीच आध्यात्मिक सेक्स की मौजूदगी नजर आती है तो कभी वह प्रेम को उस तल पर ले जाने की बात करते हैं, जहां पति को पत्नी में मां नजर आने लगे और पत्नी को पति में बच्चा।
गौरतलब है कि यह किताब ओशो द्वारा लिखित नहीं है, बल्कि उनके प्रवचनों की रेकॉर्डिंग को ही किताब का रूप दे दिया गया है। सत्य की खोज से लेकर तमाम सामाजिक और राजनैतिक मुद्दों पर ओशो के क्रांतिकारी विचार उन्हें दूसरे तमाम विचारकों से अलग खड़ा करते हैं और ऐसा ही कुछ इस किताब में भी साफ नजर आता है। अपने इन्हीं तेवरों के चलते ओशो इस किताब में संभोग के उस मर्म को खुलकर बयां कर पाए जिसमें इंसान को समाधि की ओर ले जाने की ताकत है, मुक्ति की ओर ले जाने का जज्बा है और मोक्ष का अहसास करा पाने की क्षमता है।
किताब की कुछ खास बातें
- प्रेम की सारी यात्रा का प्राथमिक बिंदु काम है, सेक्स है। सेक्स की शक्ति ही प्रेम बनती है।
- सेक्स का विरोध नहीं है ब्रह्माचर्य, बल्कि सेक्स का ट्रांसफॉर्मेशन है। जो सेक्स का दुश्मन है, वह कभी ब्रह्माचर्य को उपलब्ध नहीं हो सकता।
- सेक्स ऊर्जा का अधोगमन है, नीचे की तरफ बह जाना है, ब्रह्माचर्य ऊर्जा का ऊर्ध्वगमन है, ऊपर की तरफ उठ जाना है।
- जिस दिन इस देश में सेक्स की सहज स्वीकृति हो जाएगी, उस दिन इतनी बड़ी ऊर्जा मुक्त होगी भारत में कि हम आइंस्टीन पैदा कर सकते हैं।
- परिवार नियोजन की बात धीरे-धीरे अनिवार्य हो जानी चाहिए। इसे किसी की स्वेच्छा पर नहीं छोड़ा जा सकता।
- वह युवक कैसा जिसके अंदर विद्रोह न हो? जो गलत के सामने झुक जाता है, उसे युवक कैसे कहें?
- भारत को एक युवा अध्यात्म चाहिए। बूढ़ा अध्यात्म हमारे पास बहुत है।
- बगावत क्रोध है, क्रांति विचार है। बगावत करना आसान है, क्रांति करना बहुत सोच-विचार और चिंतन की बात है।
- जागने की कोशिश ही धर्म की प्रक्रिया है, जागने का मार्ग ही योग है, जागने की विधि का नाम ही ध्यान है, जागना ही एकमात्र प्रार्थना है।
- पति अपनी पत्नी के पास ऐसे जाए जैसे कोई मंदिर के पास जाता है, पत्नी अपने पति के पास ऐसे जाए जैसे कोई परमात्मा के पास जाता है क्योंकि जब दो प्रेमी संभोग करते हैं, तो वास्तव में वे परमात्मा के मंदिर से ही गुजरते हैं।
- संभोग का इतना आकर्षण क्षणिक समाधि के लिए है। संभोग से आप उस दिन मुक्त होंगे, जिस दिन आपको समाधि बिना संभोग के हासिल होनी शुरू हो जाएगी।