पागल / कविता वर्मा
हाथ में पत्थर उठाये वह पगली अचानक गाड़ी के सामने आ गयी तो डर के मारे मेरी चीख निकल गयी. बिखरे बाल, फटे कपडे, आँखों में एक अजीब सी क्रूरता पत्थर लिए हाथ ऊपर ही रह गया. लेकिन जाने क्यों वह ठिठक गयी पत्थर फेंका नहीं उसने . गाड़ी जब उसके बगल से गुजरी खिड़की के बहुत पास से उसके चेहरे को देखा. अब वहाँ एक अजीब सा सूनापन था.
कार के दूसरी ओर से एक ट्रक निकल गया. वह कार के पीछे की ओर भागी और ट्रक पर पत्थर फेंक दिया. आसपास दुकानों पर खड़े लड़के हंस रहे थे. वह पगली थी घोषित पगली. ना जाने किस ट्रक या ट्रक वाले ने उसके साथ कुछ बुरा किया था कि वह हर ट्रक को अपना निशाना बनाती थी. लेकिन उसकी नफरत पर नियंत्रण था . ट्रक के सामने आ खडी हुई कार को उसने कोई नुकसान नहीं पहुँचाया था.
युवाओं की भीड़ शहर की मुख्य सड़क पर जूलूस की शक्ल में चली जा रही है। मँहगाई के विरोध में आज भारत बंद का आव्हान है. रास्ते में खुली मिली हर दुकान में ये युवा तोड़ फोड़ लूटपाट करते चले जा रहे हैं . सच तो ये है कि इनका आक्रोश किसके विरुद्ध है ये नहीं जानते ना इन्हें अपना लक्ष्य पता है ना ही इस आक्रोश पर कोई नियंत्रण है. रास्ते में आने वाला हर व्यक्ति, दुकान , सामान इनका निशाना बन रहे हैं. पता नहीं पागल कौन है?