पाठशाला जसपुर और छोटे दादा / कुसुम भट्ट

Gadya Kosh से
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गांव के अन्तिम छोर पर छोटे दादा का घर था। हमारे घर की दायीं बाजू में ऊंघता। मैं छोटी थी। घर वालों की नजरें बचा कर सीढ़ियाँ उतरती और रास्ते में एक टांग से उछलती कूदती पहुँच जाती छोटे दादा के घर, घर से दिखती थी नदी, दूर हिमालय की ऊँची पिघलती पहाड़ियों से आती और हमारी पहाड़ी के नीचे घाटी में थकान उतारती, नदी देखना और लगातार देखते रहना मुझे बहुत-बहुत अच्छा लगता। इसी तरह बहुत-बहुत अच्छा छोटी गिनी को देखना भी अच्छा लगता जो बिस्तर पर लेट कर छिपकली-सी हाथ पांव मारती। गिनी इतनी छोटी थी कि बिस्तर में ही कर देती। उसके गोरे गुल-गुल करते गाल काले घुंघराले बाल, गोल-गोल काली चमकीली आंखें हर पल कुछ कहती रहती। दादी कहती 'मरी कितनी तो खूबसूरत है, लड़का होती तो...' । दादी हम दोनों को एक साथ देखती तो गहरी सांस भरती "भलो-भलो ये बार भी होगा'बस इसी तरह बात पर मैं दादी से कुट्टी कर लेती और उसकी आँखों में एक मुठ्ठी धूल झोंक कर दौड़ पड़ती छोटे दादा के घर। उनकी दीवार पर टांगे झुलाती नदी के गीत सुनती, मुझे देखकर उनका चिड़िया कि चोंच जितना मुंह खुलता भीतर दुबकी हँसी ओट से झांकती जब तक मैं उस हंसी को ठीक से देख पाती वे चेहरा घुंमा कर घाटी की तरफ़ देखने लग जाते। छोटे दादा के आंगन के आगे खड़ीक का एक ऊंचा पेड़ था, दादा हमेशा उसके पास ही बैठते। मेरी तरह उन्हे भी नदी के गीत सुनना अच्छा लगता होगा। मैं सोचती, कभी मन करता छोटे दादा से पूंछूं पर पूछ नहीं सकती, क्या पता पूछने पर नदी गीत गाना बन्द कर दे और छोटे दादा चैंक कर दीवार पर बैठना, भौलाराम ताऊ बन्दूक वाले का घर सबसे ऊपर था। वह कहते गुड़िया तेरा दादा न जिन्दा मसाण है, तभी तो न गुड़िया, कोई नहीं बोलता उससे। तू देखना गुुड़िया, तेरे छोटे दादा के चेहरे पर पत्थर लगा है" मैं टुकर-टुकर उनका चेहरा देखती"वे फिर कहते" तूने पत्थर को बोलते सुना गुड़िया"मैं ना कहती वे कहते पत्थर किसी की आवाज़ भी सुनें तो चोट मारता है। इसीलिए तो वह अलग रहता है सबसे अलग। छोटे दादा से पति नहीं कोई क्यों नहीं बोलता था, छोटे दादा भी किसी से नहीं बोलते, पर मुझे पता था कि दादा बकरियों की मैं-मैं बैलों की भैं-भैं भेंस का रभांगना, कौओं का कांव-कांव बिल्ली की म्याऊँ-म्याऊँ, कुत्ते की भौं-भौं, चिड़िया कि चूं-चूं, सुनते तो वे किसी पर भी पत्थर न मारते। कक्षा-10 में पढ़ने वाले सुन्दर चाचा उन्हें शाम के धुधलके में अपने बर्मा में रह रहे भाई की अंग्रेज़ी में लिखी चिट्टठी पढ़ाने आते। पर छोटे दादा ने न ही कहा कि। अबे! लम्बू स्कूल में पत्थर उठाता है बे?" सुन्दर चाचा बाद में हँसते "गुड़िया का खूसट दादू कक्षा-2 पास अंग्रेजों ने डाली घास। माँ कहती' छोटे दादा से गाँव की कुट्टी हो गयी, उन्हें गाँव से फांटी (अलग) कर रखा है। तू वहाँ जायेगी तो तुझे भी कर देंगे फांटी" पर मैं माँ की एक न सुनती। मुझे तो छोटे दादा चाचा नेहरू लगते, हंस जैसे सफेद कुर्ता पाजामा सिर पर नेहरू टोपी, दुबली छरहरी देह। नेहरू चाचा से मेरी मुलाकात पिताजी ने कराई थी, देश से एक दिन ठक-ठक करते अंधेरी रात में आये थे। देख, गुड़िया ये हैं जवाहार लाल नेहरू बच्चों के चाचा नेहरू। देश के बडे नेता थे, इन्होंने देश बनाया था। देख इस किताब में लिखा है सब। मैंने लालटेन की रोशनी में पन्ने पलटे थे पर मेरे पल्ले कुछ न पड़ा उस समय मुझे आम, अनार और झटपट (स्कूल चल) देर मत कर इतना ही आता थाा। पिताजी कहते "हमारा देश यानी भारतवर्ष" मैं झट से अपना बस्ता आगे कर देती, पिताजी मेरी किताब में भारत में भारत माता है पिताजी! भारत माता कहाँ रहती है? पिताजी हंस कर मेरे गाल में हल्की से चपत मारी थी। "भारत माता तो यही रहती है तेरे पास" भारत माता नक़्शे पर खड़ी रहती, उनके बगल में बब्बर शेर खड़ा गुर्राता भारत माता कि ओर तिरछी आँख से देखा तो चबोड़ देंगा हूंऽऽ... दांत देखे मेरे ...हूंऽ", पिताजी कहते" बच्चों को थोड़े न कहा होगा, उनको कहा होगा जो बन्दूक थामे। कूदते हैं देश की सीमा में... तभी माँ ने रोटी की टोकरी रख दी थी झम्म! पिताजी भूल गए थे बताना आगे की बात! दादा जी कहते "बब्बर शेर छोटे बच्चों को लड्डू देता है साल भर में दो दिन, तुम्हारी पाठशाला में भी आयेगा बांटने। भारत माता के हाथ में तिरंगा होता, मास्टर जी कहते बोलो बच्चों भारत माता कि जय बच्चे गाल फाड़ कर चिल्लाते, भारत माता कि जय हो। पहाड़ भी चिल्लाता भारत माता कि जय हो। मैने छोटे दादा से पूछा आप भी कहते थे भारत माता कि जय, दादा के होठों पर वही हंसी थी" कहने से थोड़ी हो जाती है जय करने से होती है, जय तू करेगी गुड़िया भारत माता कि जय..." मेरी आंखे छोटे दादा के नेहरू चेहरे पर ठहर जाती, वह तो मैंने स्कूल में ही कर दी थी। छोटे दादा के पत्थर चेहरे में छिपी हँसी उछल कर बाहर आने को हुई, उन्होंने चेहरा दूसरी ओर घुमाया और हँसी और नीचे छुप गयी।

नदी के ऊपर पहाड़ी पर माचिस की डिब्बी जितनी मोटरें दौड़ती छोटे दादा कहते तेरे पिता के देश जा रही हंै, मोटरें वापस आती कहते तेरे चाचा के देश से आ रही हैं। उनकी बात झूठ निकली मोटरें पिताजी के देश से ही आ रही थी तभी तो पार्सल लाई। पिता जी ने भेजा था चाचा ने तो भेजा नहीं था। एक दिन एक मोटर नदी में गिर गई! रात को मोटर उल्टी पड़ी थी, नदी के किनारे बहुत से लोग मर गए थे। दादा ने ही देखे थे मक्खी जितने लोगों की भीड़ दस बीस सौ पचास इससे भी ज़्यादा गाँव के लोग खेतों की मुन्डेर पर खड़े होकर राम! राम जी! हे भगवान! च्च-च्च करते और नदी को कोसते "बार-बार मांगती है बलि यह कमबख्त नदी! छोटे दादा ने सुनी लोगों की बात, दादा बाले थे," डरेबर ने पी थी बहुत शराब लोगों का हो रहा है अब दिमाग़ खराब, नदी क्या करती! " बहरहाल नदी वैसी ही बहती रही। नदी में किश्तियाँ चलती। छोटी-छोटी किश्तियाँ, लोगों के सिर दिखाई देते, उनके चप्पू चलते हाथ भी। चप्पू चलाते नदी में लहरें उठती, मल्लाह गीत गाता नदी को कहता मेरा गीत सुनेगी नदी? नदी कहती सुना दे रे नाविक, मल्लाह हाथों में जोश भरने लगता होंठ थिरकने लगते।

हिररऽ रऽ रेऽ बगदी गाड

कनक्वै जाण आर-पार

चप्पू हवैगी ख्वींडू

ढलकणू च डूंडू...

हिररऽऽ रेऽ-रेऽ रऽ...

(हर हर बहती नदी, कैसे जाऊँ आर पार, चप्पू हो गया पत्थर! देखो लुढ़क रहा है जैसे लंगडा) नाव से उतर कर लोग जाने कहाँ गायब हो जाते। छोटे दादा कहते, अपनी मंज़िल तक जाते हैं वे... उन्हें डूबने का डर नहीं लगता। मैं अगला प्रश्न पूछती, डर क्यों? जो डर गया वह पार कहाँ गया रे, गुड़िया! डर कर तो आदमी मर ही जाता है जैसे भोला राम बन्दूक वाला"वह कैसे दादा," तू नहंी समझ सकती, छोटी है न अभी ... बन्दूक वही रखता है जो डरता है..."। कभी-कभी छोटे दादा कि बातें मेरे पल्ले बिल्कुल नहीं पड़ती छोटी दादी और दोनों चाची गर्मी की दोपहर नींद की एक झपकी लेकर देहरी उतरती और उन्हें कोई बुलाने आता। हमें देखकर आँखें कपाल पर चढ़ा देती। बाद में बड़ी चाची पूछती" गुड़िया! तुझसे गुन-गुन क्या बोलते रहते हैं तेरे छोटे दादा? घर में तो लेई चिपक जाती है उनके होठों पर।

हमारे गाँव के नीचे प्राइमरी पाठशाला बन रही थी। लोग उसमें श्रमदान करने जाते। माँ भी जाती, छोटे दादा का परिवार फांटी था। दोनों चाची अपने काम में लगी रहती। भोलाराम बन्दूक वाले ताऊ ने ठेकेदार को उनको बोलने से मना कर दिया था। हमारे पहाड़ में दूर-दूर तक पाठशाला नहीं थी! बहुत दूर-दूसरे न तीसरे न पांचवे पहाड़ पर एक बड़ी पाठशाला थी, जिसमें पिताजी पढ़ाने जाते थे। मैंने उसे देखा ही न था, बुआ ने भी कहाँ देखा था। बुआ वहाँ जाती तो बाघ उठाकर ले जाता उसे! ... तो मेरी अच्छी से बुआ "झट-पट उठ पाठशाला चल, सो मत काम कर उठ-उठ नहीं सीख सकी अब शादी के बाद वह देश में" , देर रात तक अक्षर-अक्षर पढ़ना सीख रही थी। दादी कहती पिताजी को बाघ उठाकर नहीं ले जा सकता, बाघ सिर्फ़ लडकियों को ले जाता है। दादाजी कहते अब तो पाठशाला पास में हो गयी, वहाँ बाघ नहीं आ सकता, बाघ आयेगा तो बन्दूक वाले भोलूराम है न। मेरा नाम पाठशाला में लिखने दादाजी गए थे। मास्टर जी ने पूछा-बच्ची का नाम? दादाजी ने कहा गुड़िया। मास्टर जी ने पूछा कितने वर्ष की है-दादाजी ने कहा चार वर्ष की, मास्टर जी ने रजिस्टर बन्द कर दिया और मुंह बनाकर बोले थे तो फिर इसका दाखिला नहीं हो सकता"! मैं रोने लगी थी स्कूल दादा मुझे अच्छे-अच्छे लगते! सफेद निकर और गेरूए रंग की बूर्शट में अकड़ कर खड़े! टीन की टोपी दूर से चमकती! मुझे रोता देखकर दादा जी भी रोने लगे। इसको भरती कर लो मास्टर जी वरना ये मर जायेगी। मास्टर जी से दादाजी का रोना नहीं देखा गया, सिर्फ़ उनकी आवाज़ देखी जो उनके पांवों गिर रही थी। मास्टर जी ने अपनी चोटी पकड़ी जिसके नीचे ज्ञान का अकूत ंभंडार था। कुछ सोचा..." आप दो माणी (किलो) घी कर देंगे चाचाजी? दादाजी बोले हाँ जी हाँ कर देंगे जी"मास्टर ने रजिस्टर खोला" उम्र बढ़ानी पड़ेगी एक साल मंजूर? दादा जी ने सिर झुकाया "मंजूर।" मैंने स्कूल की छत पर उतरते सूरज को देखा-मंजूर है न? "उसने हंसते हुए हाथ हिलाया, घर आकर दादी ने कहा" हो गयी भरती भगवती थी हंसते-हंसते हुए उसने गुड़ की भेली फोड़ी और टुकड़े-टुकड़े गाँव में बांटे। मेरी कक्षा में जसपुर का लक्षमण पढ़ता था शैतान का नाना, वह कहता स्कूल हमारा है। में कहती स्कूल हमारा भी, वह कहता देख यह खेत हमारा है मेेरे चाचा ने दिया है दान। मैं कहती जाऽ... जाऽ तेरे चाचा राजा थोड़े न हैं जो दान देंगे स्कूल बनाया मेरी माँ ने समझा, तसला-तसला मिट्टी सिर पर ढोयी है मेरी माँ ने समझा। उन दिनों हमारी भैंस सूखी घास देख दूध देना बन्द कर देती थी क्योंकि माँ जंगल नहीं जा सकती थी और मुझे सेम की सब्जी के साथ रोटी खानी पड़ती थी। सब्जी में शीऽ... शीऽ... इतनी मिर्च थी! उसने गुस्से में आकर मेरी नई किताब के पन्ने फाड़ दिये-ये रहा तेरा स्कूल जाऽ..."। मैं रोने लगी।

ए! गुड़िया स्कूल का नाम क्या है पता भी तुझे कुछ...? मैंने रोते-रोते कहा "क्या हे रे ऽ भीम?" उसने अकड़ कर कहा "देख क्या लिखा प्राइमरी पाठशाला जसपुर समझी् उसने मेरी पंेंसिल आकाश में उछाली, मुझे गुस्से के साथ रोना भी आया। आँसू में भीगता चेहरा लेकर घर जा रही थी ऊपर से मैंने उसे गाली दी-जुपली का बेटा! दादी ने कहा था एक दिन, एकदम याद आ गया मुझे। वह नीचे खड़ा था पत्थर उठाकर, मैं बहुत ऊपर थी इतनी ऊँची जगह जहाँ पत्थर पहुँच नहीं सकता था। उसने खीझ कर पत्थर नदी की ओर फेंका और ज़ोर से चिल्लाया-इन्दरा गांधी की नातीण। हम अपना स्कूल वापस ले लेंगे जाऽ। घर आकर मैं दादी की गोद में मुँह छिपाकर रो पड़ी। दादी के चेहरे की झुर्रियाँ कांपने लगी एकाएक धुँए का बादल उठा दादी गरजने लगी ' जंगल की शेरनी!" शेरनी तत्काल हाज़िर हुई! दादी बैठी उसकी पीठ पर, मैं दादी की पीठ पर उसकी कमर पकड़े बैठ गयी। दादी ने पुकारा "गुड़िया के दादा! दादाजी बैलों की सींगों पर तेल मल रहे थे दादी बोली" तुम दाल भात पका कर रखना में जुपली के घर से योंऽ लोटी"। दादाजी ने मुस्कुरा कर हामी भरी बैलों ने भी मुस्करा कर हामी भरी! एक बैल जिसका एक सींग कुछ ज़्यादा ही लम्बा और नुकीला था उसने कहा-" मेरा सींग भी साथ ले जा दादी। " रास्ते में एक बटोही बकरी की रस्सी पकड़ कर जा रहा था रास्ता संकरा था पगडंडी जैसा, बकरी ने देखा जंगल की रानी बकरी बोली मैंऽ-मैंऽ वह रास्ता छोड़ना चाहती थी। बटोही उसकी गर्दन रस्सी से कस रहा था। शेरनी की गुर्राहट उसने सुनी देखा रानी पंचुर की शेरनी पर सवार उसके गले से बकरी स्वर फूटने लगा! मेरा मन ख़ुशी से किलक उठा, अब आयेगा मज़ा बेटा अर्जुन... अर्जुन की माँ बड़ा-सा कद्दू लेकर घर के आगे पत्थर के चैंतरे पर बैठी हिल रही थी, उसने सुनी शेरनी की गुर्राहट! वह भी रानी जसपुर थी-पर उसके गले से बकरी मिमियाने लगी! अर्जुन बकरी की सवारी कर रहा था। बकरी उसकी लौकी जैसे टांगों के बीच फिसल रही थी, अर्जुन उसे घोड़ा समझ उसकी सवारी का मज़ा ले रहा था।

अर्जुन की माँ का चेहरा उल्टे पतीले जैसा था और शरीर हाथी का, उससे उठा न गया उसने कहा-गुड़िया, अर्जुन ने तुझे क्या कहा? क्यों तुम्हारा झगड़ा हुआ? मैंने शेरनी की पूंछ पकड़ी इसने बोला था "इन्दरा कि नतीण!"

अर्जुन चिल्लाया-"चल झूठी!" उसने माँ की ओर घुमाई बटन-सी आंखे-देख माँ देख कितनी झूठी है मैंने कहा था इन्दिरा गांधी की नातीण उसने गर्दन झटकायी तो बकरी भाग गयी, अर्जुन बकरी को पकड़ने दौड़ा उसकी माँ उठी सीढ़ियाँ उतरी बाड से सोंटी तोड़ी लपर झपर उसके पीछे दौड़ी 'अब बता गुड़िया ने तुझै क्या कहा था' अर्जुन की ही-ही निकलने लगी "इसने कहा था जुपली का बेटा!" माँ ने सोटी को हवा में उछाल दिया ' बस बात खतम! "वह ऊपर आई टांड पर दरी निकाली दादी के आगे फेंकी," झम्म! शेरनी पलक झपकते ही गायब! अर्जुन की माँ ने आवाज़ दी-परकास की ब्वारी! गुड़िया कि दादी के लिए चा बना "परकास की बहु एक गुफा से निकली दादी के पांव छुये और दूसरी गुफा में घुस गयी जहाँ से धुंआ निकल रहा था, तो अर्जुन की माँ बोली" दूध में ही पत्ती डालना। आते समय अर्जुन की माँ ने पेड़ से तोड़ कर हमें नारंगी भी दी। मैंने छोटे दादा से कहा सब। दादा बोले अरेऽ रेऽ वह जुपली का शैतान बेटा! उसने तो हमारी बकरी की टांग ही तोड़ डाली! उसके हाथ में तो पत्थर ही रहता है। बेचारी बकरी लंगड़ा कर चलती है। "

छोटे दादा खडीक के पेड़ के नीचे ही बैठते लाल पत्थर पर, पेड़ पर कौवों का घोसला था, वे अपने घर में ख़ूब झगड़ते मोटा कौआ घर में रोटी नहीं लाता तो पतली कौवी कांय-कांय करती फिर कौवा उसे चोंच मारता फिर बच्चे भी कांव-कांव करके उड़ने लगते-हम नहीं रहेंगे इस घर में... लेकिन फिर आधे रास्ते से लौट आते और फिर कांव-कांव करते कौवों की कांव-कांव से चिड़िया राह बदल कर आम के पेड़ पर जा बैठती और चीं-चीं चूं चूं करके सारी कौआ कथा सुनती। दादा कहते-"कितनी तो हुशियार है चिड़िया काक झमेले में कभी नहीं पड़ती"।

पाठशाला जाते समय सब बच्चे हाथ में एक लकड़ी ले जाते मास्टर जी का हुक्म था, प्रार्थना में कहते-देखो मेरे प्यारे बच्चों गांधी जी की शिक्षा पर चलना, उनके हाथ में देखी है लकड़ी? बच्चे एक स्वर में कहते-देखी है मास्टर जी'मैं पाठशाला जाते समय पीठ पर बस्ता हाथ में छोटी-सी पाटी ले जाती थी कुछ दिनों तक दादी मुझे गोद में ले जाती रही, सब बच्चे मेरा मज़ाक उड़ाते तो मैं दादी की गोद से उतर जाती थी, पर दादी मुझे लकड़ी नहीं देती थी, कहती इतनी छोटी-सी बच्ची बस्ता ले जायेगी की पाटी की लकड़ी, मैं एक दिन पूरी ढेर ही डाल दूंगी तेरे मास्टर के चूल्हे पर! फूंकता रहेगा उम्र भर। पाटी में लिखने के लिए कमेड़े (सफेद चिकनी मिट्टी) की दवात बनानी पड़ती। दादी गाड़ पार सफेद पहाड़ से मिट्टी लाती। दादी को क़लम बनानी आती नहीं थी। दादा जी पेड़ से कच्ची टहनी तोड़ते उसे चाकू से छीलते कभी जंगल से वांज की डन्डी लाते, बाद में मास्टर जी ने हमें खड़िया दे दी थी सफेद खड़िया से हम स्कूल की दीवार में मां, दादी, चाची, छोटे दादा, कौवा, चिड़िया बनाते। मास्टर जी कहते-"करो दीवारें गन्दी करो तुम्हारे बाप की है न" मास्टर जी बाहर जाते तो अर्जुन कहता "मेरे चाचा कि तो है ना"। एक दिन कुछ बच्चे लकड़े ले जाना भूल गए, मास्टर जी ने सबकी हथेली पर बेंत मारी। मेरी हथेली लाल हो गयी हलकी-सी खरोंच भी आई। दादी ने देखा उसके तो उसके गोरे गुलगुले गालों की झुर्रियाँ हल्के-हल्के कांपने लगी और आँखों से धुंआ उठने लगा, दादी ने कहा जंगल की शेरनी हाज़िर हो! फिर दादी शेरनी पर बैठी, मैं दादी के पीछे, शेरनी मास्टर जी के सामने ज्यों गुर्राई! मास्टरी जी कांपने लगे थर-थर थर! उनके मुंह से लड़खड़ाती आवाज़ शेरनी के पांवों में गिरी "माफ करना माफ़ ताई करना मुझे पता नहीं था कि गुड़िया आपकी नातिन है..." मास्टर जी की बात पर खच्च शेरनी के दांत खुबे-ए मास्टर! स्कूल से बड़ा ढेर लगा दूंगी लकड़ियों का समझे! मेरी गुड़िया को फूल की छड़ी से भी मारा तो ...' फिर दादी ने कहा चिड़िया हाज़िर हो ... एक नन्ही चिडिया पंखों को झुलाती खड़ी हो गयी-चीं चीं पंख चाहिए? चिड़िया ने दोनों पंख दादी को दे दिए दादी फुर्र उड़ी पहाड़ी पर और लकड़ी का पहाड़-सा गट्ठर मास्टर जी के मुँह पर दे मारा। दादी के अदृश्य होते ही मास्टर जी की आवाज़ कोमल हो गयी-बच्चों किताब निकालो पर पहले बूझो तो इस मुहावरे का अर्थ जिसकी लाठी उसकी भैंस। बच्चों ने सोचा... एक दूसरे की आंखों से पूछा "नहीं आता मास्टर जी... मास्टर जी जंगल के राजा को सहला रहे थे वह दहाड़ा-अपनी माँ के खसमों! इतना भी नहीं आता। ' मेज पर मारने लगे बेंत-चलो खड़े हो जाओ रमेश, शिब्बू, अर्जुन, उषा, नीला, रमा, नाम लेते बच्चे उठकर हथेली टकी-टकी बेंत खाते कर दी थी। बच्चे मुझे देखते" गुड़िया तू राजकुमारी हम दास दासी" उनका चेहरा करूणा में भरते देख मैं कहना चाहती थी-मुझे भी बेंत मारों मास्टर जी, लेकिन गला भर आया था, जाने क्यूं मुझे मार न पड़ने का दुख सताने लगा।

अब मास्टर जी रोज़ कहने लगे थे गुड़िया तो फ्री है! गुड़िया को कभी न मारेंगे, वह पढ़े या न पढ़े, सवाल सही करे या गलत। अर्जुन मुझे और चिढ़ाने लगता-' आजाद लड़की जाऽ...जाऽ... मिट्टी में खेलकूद, फूलों को तोड़, तितली को मार, बटोही को पत्थर मार तुझे थोड़े न कहेंगे मास्टर जी"मेरे भीतर धुंआ भरने लगा था मैंने घर जाकर दादी से ख़ूब झगड़ा किया। दादी हैरान थी मास्टर मारते थे तो शिकायत करती थी मास्टर नहंी मारते तो शिकायत करती है पता नहीं यह कैसी तो लड़की है। माँ के पास लोहे का बक्सा था, जिस पर छोटा-सा गोल ताला झूलता मैं उस पर चढ़कर अलमारी की चीजें निकालती वह और झूलता-" मेरे अन्दर खजाना है-खुल जा सिमसिम खजाना... आ खोल मुझे देख जादू की दुनिया"माँ जब भी बक्सा खोलती, किनारे के बक्से की चमकीली चीजें झांकती लाल, पीले, हरे रंग इशारे से बुलाते मैं उन्हें पकड़ने को लपकती, माँ बक्से का ढक्कन बन्द कर देती-" हट तेरे मतलब की चीज थोड़े ही है"माँ नई हरी धोती निकालती जिस पर तितलियाँ फड़फड़ाती रहती। माँ तो शायद ही कभी तितली पकड़ने दी हो कहती तेरे मिट्टी से सने हाथ हैं गुड़िया धोती गन्दी हो जायेगी। माँ हरी धोती मन्दिर जाते समय पहनती या दुकान में जाते समय, घटवार जाते समय वह मोटी धानी रंग की धोती पहनती उस दिन माँ जाने कैसे ताला लगाना भूल गयी थी और गिनी रोई होगी, उसे दूध पिलाते हुए नीता कि माँ ने ऊपर से आवाज़ लगाई होगी-गुड़िया कि मां! जल्दी चल शिवजी को जल चढ़ाना है वरना शिवजी नाराज हो जायेंगे, शिवजी को गुस्सा भी तो कितना आता है पता है न दक्ष को कैसे मारा था ।" माँ शिवजी से डर गयी थी और शिवजी ने मेरी बात मान ली, मैंने कलेन्डर में ठहरे हुए शिवजी से जिसमें वह बड़ा त्रिशूल और डमरू लेकर मुझे देख रहे थे कहा था " बक्सा खोल दो शिवजी भगवान।

आज बक्से पर ताला नहीं था। मुझे मिल गयी थी सारे जहाँ की खुशियाँ । धड़कते दिल से बक्सा खोला अलीबाबा का खजाना! लाल सुर्ख चांदी की गोटी लगा दुशाला मखमल का कुर्ता सरसों के फूल रंग की धोती नई नकोर मुलायम दूसरी लाल साड़ी मेरी फ्राकें, गिनी की स्वेटर एक डिब्बे में बन्द सोने का गुलबन्द, नथली, बिसार, पौंछी, पाजेब मैंने हथेली में लिया उछाला नाक पर झुलाया, पाजेब पांवों पर झूलाई फिर डर गयी माँ मारेगी तो... डिब्बे में रखी चीजें बन्द कर दिया ढक्कन, एक फोटो माँ और पिताजी का। माँ साड़ी ब्लाउज में पिताजी सूट टाई में मैं माँ के पेट में, मैंने बारी-बारी से तीनों चुम्मी ली, मेरी नज़र एक पोटली पर पड़ी खोल कर देखा सिक्के 25, 20, 20, 10 पैसे के सिक्के रूपये-रूपये 2-5-10-20 बाबा रे! माँ के पास इत्ते रूपये। मुझे तो देती नहीं एक पैसा भी, जब भी दुकान से सौदा लेने जाती दादा 50 पैसे देते गुड़िया के लिये चीज ले आना बहू, सोचा कुछ पैसे ले लूँ-लेकिन दुकान तो बहुत-बहुत दूर है, रास्ते में जंगल है जंगल में बाघ है! बाघ ने पूछा गुड़िया कहाँ जा रही हैं तो...? बाघ ने मुझे खा लिया तो...? मैंने पैसे वापस रख दिये अचानक मेरी नज़र एक गुब्बारे के पैकेट पर पड़ी उसे देख कर मेरा मन ख़ुशी से किलक उठा मैंने चुपके से अपने बस्ते में छुपा दिये-कहीं चूहा न देख ले, कहीं चिड़िया न देख ले बक्सा खोलने से पहले चिड़िया खिड़की में फुदक-फुदक कर दाना टीप रही थी, दादी घर में नहीं थी पता नहीं कहाँ गई थी, पानी लेने धारे पर या हरी सब्जी तोड़ने सेरे पर। मैंने हाथ मुँह धोये और बस्ता उठाकर पहाड़ी उतरने लगी। दादी ने दूर से देखा वहीं से चिल्लाने लगी "मैं आऊँगी तुझे छोड़ने ठहर जा गुड़िया ठहर जा..." मैं जैसे अलीबाबा का खजाना लूट कर जा रही थी। मेरे क़दम तेजी से बढ़ने लगे थे प्रार्थना के बाद मास्टर जी ने हाजिरी ली और ब्लैक बोर्ड पर लिखा "उठो लाल अब आँखे खोलो पानी लाई मुँह तो धोलो" कविता लिखकर मास्टर जी बाहर बैठे उनका सिर रजिस्टर पर झुक गया। मैंने खिड़की से देखा मास्टर जी की चोटी पर पीपल की टहनी पर झूल रहा था कौवा चोंच मारने उतर रहा था, मैंने अर्जुन को पुकारा "अर्जुन! मेरे पास एक चीज है" वह अपने स्थान से उठकर आया "दिखा क्या है?" उसके साथ रमा नीला शिब्बू भी।

सब गोल घेरा बनाकर बैठ गये "हमें भी दिखा ना गुडिया" अर्जुन फुसफुसाया "जल्दी बता वरना दुँगा एक लापड़!" उसने हाथ उठा लिया।

पर मैं डरी नहीं-पहले बता मेरे साथ झगड़ा करेगा? मारेगा मुझे? "

"माँ की क़सम नहीं करूँगा" वह बोला।

" चिढ़ायेगा मुझे?

"विद्या माता कसम! कब्बी नहीं!" उसने किताब पर हाथ रखा ' अब दिखा...

मैंने अर्जुन की हथेली में रखा गुब्बारा, उसने मुझे अजीब नजरों से घूरा और चिहुँक कर बोला-ओऽ बुद्धू ये गुब्बारे थोड़े न है बदतमीज चीज है "मैं औचक उसको देखने लगी, प्रत्येक बार वह बन्दर मुझे धक्का देता है और मैं लड़खड़ा कर गिर जाती हूँ तत्काल मुझे एक उपाय सूझा" तुझे कैसे पता? वह अकड़ कर बोला "मैं जानता हूँ सिर्फ़ ... मेरी भाभी ने बताया था बदतमीज लड़की!" वह फिर झगडने लगा हम सबने पहाड़ी के नीचे फैंक दिये थे अपने-अपने गुब्बारे! पर मेरे कानों में बजने लगा था बदतमीज लड़की! मैं सोचने लगी माँ बदतमीज चीज को बक्से में छुपाकर रखती है क्यांे? छोटे दादा से पूछूँगी पर उन्होंने भी कह दिया बदतमीज, तो ...? "इसी उहापोह में घर गई किसी को पता हो न हो छोटे दादा को सब पता होता है छोटे दादा घर पर नहीं थे नहाने गये थे धारे पर। चिड़िया आम की टहनी पर झूल रही थी मैंने पूछा-चिड़िया! चिड़िया! माँ बदतमीज है? चिड़िया बोली-माँ तो अच्छी है तू बदतमीज! मैंने गिनी से पूछा गिनी तू बता गुड़िया बदतमीज है?" माँ गिनी को दूध पिला रही थी उसने मेरी पीठ पर चपत मारी" तेरे मास्टर यही सिखाते हैं? मैं रोने लगी तो माँ ने अपने से चिपका लिया-तू अच्छी है गुड़िया बहुत-बहुत अच्छी!

एक दिन हमारी पाठशाला में दो सिपाही आये उनकी बाजू में काली बन्दूक झूल रही थी, उन्होंने कहा सरकार का आदेश है हम बहनों को बन्दूक चलाना सिखाने आये हैं। सभी औरतें सीखने लगी बन्दूक चलाना धांय! धांय! माँ भी सीखने लगी, " मैं भी माँ के साथ जाती, फिर एक दिन माँ ने कहा आज परीक्षा का दिन है, सभी औरतंें हमारे खेत की दीवार पर मारने लगी थी धांय! धांय! इस परीक्षा में माँ को सबसे अधिक अंक मिले और सार्टीफिकेट के साथ पुरस्कार भी! माँ लेकर आई थी चमकीली गोटे वाली लाल रंग की शाल उसे ओढ़ कर माँ भारत माता जैसी दिखने लगी थी...!

रात को मैं दादी के पेट से चिपक कर लेट गई मेरी बन्द आँखों में रेगबिरंगे तारे चमकने लगे। मैंने देखा माँ हिमालय की सबसे ऊँची चोटी पर खड़ी है उसकी हरी धोती का पल्ला लहरा रहा है जैसे तिरंगा, माँ मेरी किताब की भारत माता बन गई है, माँ के पीछे नीचे से पहाड़ी पर चढ़ती दोनों चाची हैं माँ गा रही है-" हिन्द की हम नारियाँ जलती चिंगारियाँ समझे न कोई हमें फूलों की क्यारियाँ लेफ्ट! राइट! लेफ्ट! राइट! बांये मुड़ दांये मुड़! 'ठक ठक' माँऽ... माँऽ... मैंने आवाज़ दी-माँ मुझे भी ले जा हिमालय की चोटी पर खींच मेरा हाथ।

मैं चिल्ला रही थी लेकिन माँ तक मेरी आवाज़ न पहुँची माँ दूर और दूर हो गई, मेरी आँख खुल गई।

आज अर्जुन ने देर से आने के लिये चिढ़ाया तो मैंने कहा मेरी माँ भारत माता है तुझे मार देगी बन्दूक से अर्जुन की ही-ही ही निकलने लगी "इसकी माँ भारत माता! ही-ही ही अरे बुद्धू भारत माने हमारा देश भारत वर्ष"। अर्जुन को सब पता रहता, कक्षा में सबसे अधिक अंक लाता! मास्टर जी कहते "लड़कियों, तुम्हारी बुद्धि घास चरने गई है।" अंधेरी रात में जब तारा आसमान पर चमक रहा था मैंने कहा "तारे! मेरे प्यारे! बडोनी मास्टर जी को हमारी पाठशाला से दूर भेज दो" तारा सरपट दौड़ा कहा " ऐसे ... मैंने कहा जैसे भी पर भेज दो... बस्स...

अगले दिन मैं छोटे दादा कि दीवार पर टांगे झुलाती नदी देख रही थी लेकिन नदी थी कि अदृश्य हुई जा रही थी उसके नीले-नीले टुकड़े खण्ड-खण्ड होकर बिखरे पड़े थे। बीच-बीच में लकड़ी के बड़े-बड़े टुकड़े अकड़ कर बैठे थे। छोटे दादा दोपहर का खाना खाकर नीचे उतरे बड़बड़ा रहे थे-नदी मर रही है नदी को मार रहे हैं-शैतान! मछलियाँ भी मर जायेंगी... घाटी में पत्थर रह जायेंगे नदी को अब सपने में देखेंगे लोग! "मेरी नन्हीं-सी जान काँप् उठी थी। फिर मुझे कौन गीत सुनायेगा मरी हुई मछलियाँ मेरी किश्ती कैसे बनेंगी। किसी को हो न हो... पानी और मछली पर मुझे अपार विश्वास था। एक मछली सीधी एक तिरछी एक सीधी, एक...बीच में एक मोटी मछली मैं और नेहरू चेहरे वाले दादा कि मछली नाव चलेगी" हयाऽ... हयाऽ..."हम समुद्र से मिलने जायेंगे। दादा बताते समुद्र से बादल बनता है और हमारे गाँव में पानी बरसाता है झम-झम झम बूंदें गिरती हैं पत्थर की छतों पर, वर्षों से फसलों को जीवन मिलता है और हमें अन्न। छोटे दादा सब जानते हैं। लोग कहते हैं मसाण है खूसट है पत्थर हैं" वे लोग क्यों कहते हैं? लोग पागल है? दादा किसी से बातें नहीं करते अच्छा ही करते हैं। भोलूराम बन्दूक वाले ताऊ कहते हैं तेरे छोटे दादा के पास बहुत पैसे हैं बोरी भरी है। जब घर में कोई नहीं होता वे मन्दरे (चटाई) में सुखाते हैं रूपये। कभी कहते-उसके पास ज़मीन भी ज़्यादा है वे बन्दूक साफ़ करके निशाना साधते-धांय! धांय! "छोटे दादा कि छाती में उतारते सारी गोलियाँ'देख... मार दिया न तेरे दादा को मैं रोने को होती तो कहते' अरेऽ कहाँ मारा है गुडिया देख दादा तो है ही नहीं दादा के भूत को मारा है, अब तो खुश? 'ताऊ मुझे प्यार भी ख़ूब करते जब उनके घर जाती उनके तम्बाकूू के पतबीड़े से चेहरे पर धूप उगने लगती। ताऊ, जंगल-जंगल खेलते और गोधूलि के वक़्त खून टपकाते जानवरों, पंछियों को कान्धे पर लटकाये घर आते! एक दिन उनके कंधे पर बच्चा खरगोश था। उस दिन ताइ बहुत खुश हुई उसने कहा खरगोश का मांस गाँव में थोड़ा-थोड़ा बाटेेंगे। उनकी लड़की थी विनती काली कलूटी उसके पाँव गोबर से लिथड़े रहते, वह गाँव में मांस के टुकड़े बाँट रही थी। मैंने विनती को लंगड़ी टांग मारी! विनती धड़ाम गिरी माँस मिट्टी में गिर गया! गिनी के पास गई गिनी ने आँखों से कुछ कहा मैं समझ गई गिनी को भी भोलाराम ताऊ विनती और दादी से शिकायत है, दादी क्यों खाना चाहती है बच्चा खरगोश? मैं गिनी से बोली हम बाघ को बोलेंगे वह भोलूराम ताऊ को खा लेगा और कोई खरगोश और पक्षियों को मार नहीं पायेगा। गिनी बोली हम क्या कर सकते हैं। इतने तो छोटे हैं हम! माँ आई-क्या बात हो रही थी दोनों बहनों में? मैंने कहा माँ मुझे अपना दूध पिला दे एक घूँट सच माँ मुझे प्यास लगी है, माँ के दूध की प्यास' , माँ गिनी को दूध पिलाने बैठी उसके मछली जैसे मुँह में माँ ने स्तन रखा, मैंने माँ का स्तन खींच अपना मुँह लगा कर घूँट भरा" बहुत-बहुत मीठा माँ का दूध! भैंस के दूध से कितना अच्छा! "माँ हँसी उसके मोतियों से दांत चमके-उजाला फैलने लगा माँ बोली ' मेरी दूध की लाज रखेगी गुड़िया? मैं चुप दूध की लाज जाने कैसी तो होती होगी, माँ कहने लगी दूध की लाज माने अच्छे-अच्छे काम करेगी तू...? मैंने हामी भरी हाँ मुझे बन्दूक मिल गयी तो उसे मार दूंगी जिसने मेरी नदी को मारा मेरी मछलियों को मारा जिसने मेरे पेड़ों को मारा अब पंछी आसमान में घर बनायेंगे माँ उनके अन्डे फूट गये तो ...? माँ मुझे वही बन्दूक चाहिए जिसे लेकर तू हिमालय की चोटी पर खड़ी थी। खिल-खिल माँ हंसी अरी बुद्धू दूध की लाज माने जब तू बड़ी होगी तेरी शादी होगी सास ससुर की सेवा करेगी... अच्छा घर बनायेगी" जाने मुझे क्या हुआ मैंने गिनी के गाल पर झपट कर कोंच लिया गिनी रोने लगी माँ आवाक फिर माँ ने मुझे भी थप्पड़ मारा मैं ज़ोर जोर से रोने लगी... "मेरी शादी नहीं होगी मुझे भारत माता बनना है। मुझे बन्दूक चाहिए। मुझे हिमालय की चोटी पर जाना है..." माँ मेरी बात समझने में असमर्थ थी।

पाठशाला में मास्टर जी ने कहा चित्र बनाओ लडकियों घर का चित्र बनायें लड़के सिपाही का... "

मैंने बनाया घर के पास नदी, घर के पास पेड़-पेड़ पर चिड़िया घर में गिनी, छोटे दादा। मास्टर जी ने मुझे अन्डा दिया बड़ा-सा अन्डा। मैं रोने लगी और रोते-रोते घर आई। दादी ने कहा मास्टर को बताऊँगी तू यहाँ पर बना घर मैंने चूल्हे से कोयला लिया दीवार पर बनाने लगी घर, दादी पानी लेकर आई उसके चेहरे पर पानी की बूदें टपक रही थी उसने गागर कोने पर रखी मैंने कहा-"दादी देख मेरा घर ये गिनी के छोटे दादा, ये नदी, नदी में मछली और ये पेड़, पेड़ पर चिड़िया" , दादी धोती से पल्लू पोंछती हुई दीवार पर देखने लगी... "और मैं कहाँ हूँ ...?"

तू कहीं नहंी है दादी... शेरनी से डर लगता है हम को...

दादी ने भात जगह झंगोरा परोसा मैंने उलट दी थाली, दादी ने मेरी पीठ पर झाड़ू मारी-"पहाड़ में पैदा क्यों हुई! तू राजा के घर में होती..." मैं रोते-रोते सो गयी और फिर सोते-सोते ही मैंने सुना हमारे गाँव के आसमान में अचानक बादलों में घमासान युद्ध हुआ मेरी आँख खुल गयी देखते ही देखते अँधेरा छा गया जानवरों पंछियों में चीख पुकार मचने लगी, हवा पहाड़ी से सिर टकरा कर रोने लगी हूऽ... हूऽ भयावह आवाजों से दिल दहल उठा बादल ने समुद्र का सारा पानी हमारे पहाड़ पर बरसा दिया पर बादल ने नदी से कहा नदी रास्ता छोड़ इस पानी को भी जगह दे नदी कहाँ जाती डबक... डबक ऊपर आने लगी। छोटे दादा खिड़की से देख रहे थे। नदी में बाढ़ आ गयी! " मैं कहता था मत उजाड़ो जंगल, पेड़ मत काटो, जंगल के जंगल काट कर नदी में डाल दिए.! तब मुझे-मुझे मारने के लिए लपक रहे थे अब बच सकोगे नदी के कोप से ...?

लोग चिल्ला रहे थे-बाढ़ आ गयी...! बाढ़ आ गयी ...! कुछ देर बाद तूफान का वेग कम हुआ, पता नहीं कब आँख लगी, सुबह आँख खुली तो देखा नदी अपनी मछलियों को छोड़कर वापस लौट गयी थी। हमारी पाठशाला के नीचे पहाड़ की ढलान पर खेतों में लोग मछलियाँ बटोर रहे थे...

मरी हुई मछलियाँ!