पाठ / पद्मजा शर्मा
यशु छठी कक्षा में प्रथम आया। कल रिपोर्ट कार्ड मिला। आज कह रहा है 'चाची, आपका भगवान चीटर है'।
'क्यों?' मेरे पलट कर प्रश्न करने पर कहता है-'मेरे साथ चीटिंग की है। एक दिन मैं मम्मा से मिलने अस्पताल गया था। मैंने पूछा आप घर कब आ रही है? तो उन्होंने कहा मैं घर कभी नहीं आऊँगी। भगवान के घर जाऊँगी। वे बहुत दयावान होते हैं। मुझे गोदी में लिया, बहुत रोई. कहने लगीं मैं क्लास में फस्र्ट आया तो वे मुझसे मिलने ज़रूर आएंगी। अब मम्मा भगवान के पास चली गई. मैं भगवान जी से कब से कह रहा हूँ मैं फस्र्ट आया हूँ। मेरी मम्मा को बताओ. वह सुन ही नहीं रहे। वे दयावान कहाँ हैं?'
'बेटा, भूल गए होंगे?'
'एक तो गलती करते हैं ऊपर से मानते भी नहीं, बस चुपचाप बैठे हैं।'
मुझे लगा बच्चे को समझाना बहुत ज़रूरी है। पर कैसे। छोटा बहुत है यह समझने के लिए कि भगवान से भी बड़ी-बड़ी गलतियाँ हो जाती हैं और वह चाहकर भी उनमें सुधार नहीं कर सकता। जीवन का पाठ एक बार जिस स्याही से लिख दिया जाता है, वह अमिट होती है। वह जैसे-जैसे बड़ा होगा सब समझ जाएगा। समय सब समझा देता है और इन्सान समझ भी लेता है। पर इस समय यशु को क्या कहकर समझाऊँ, कुछ समझ में नहीं आ रहा है।