पानी / सुरेश सौरभ

Gadya Kosh से
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उसके बेटे अपने बाप का अंतिम संस्कार करके लौटे तो देखा, माँ अभी भी फूट-फूट कर रो रहीं थीं। बेटे माँ को संभालते हुए शांत कराने की कोशिश करने लगे तो माँ सुबकते हुए बोलीं-इतना सब बनाया। सब कुछ दिया तुमको और हमको, पर अंतिम समय में मैं उन्हें दो घूंट पानी न दे पाई. बेचारे पानी-पानी कहते हुए मर गए. "

बेटे बोले-माँ जब डॉक्टर ने ऑपरेशन के बाद पानी देने से मना किया था तब भला हम लोग कैसे उन्हें पानी देते। तब माँ बिलखते हुए बोली-मुझे यही बहुत दु: ख है, पर सबसे ज़्यादा दु: ख यह है कि उनकी अर्धांगिनी होते हुए भी उनके अंतिम समय में मैं उनको दो घूंट पानी भी न दे पाई.

अब उनके बेटे माँ को संभालते हुए शून्य में खोने लगे और उनकी आंखों का पानी भी बढ़ने लगा।

यह पानी भी कैसे-कैसे लोगों को रुलाता है। कैसे-कैसे जीवन के रंग दिखाता है। यह कोई नहीं जानता। अजब दास्तां है पानी की।