पारवती के लिए / शोभना 'श्याम'
मैं पूजा कि थाली लेकर घर से निकल ही रही थी कि पारवती को देखकर मेरी बांछे खिल गयी।
चार दिन से घर का सारा काम करते मेरी हालत खराब थी। प्रकट में मैने इतना ही कहा, " चार दिन से कहाँ गायब थी पारवती? बड़ी कमजोर भी लग रही है?
पारवती मायूस-सी बोली " भाभी बुखार था अभी लौं बदन में बहोत दरद है आज भी बस आपकी परेसानी सोच करके आ गयी हूँ।
"तुझे बार-बार बुखार हो जाता है ऐसे कैसे चलेगा, एक बार ठीक से इलाज क्यों नहीं करा लेती" मेरा स्वर कड़वा हो रहा था परन्तु फिर, ये अभी काम छोड़कर वापस न चली जाए ये सोच कर बोली में थोड़ी मिठास और नरमाई लाते हुए मैने कहा, "देख पारवती अगर ऐसे बार-बार बीमार पड़ेगी तो कोई भी परेशान हो जायेगा, क्या मेरे अलावा तुझे कोई नहीं कहता कि इतनी छुट्टियाँ क्यों कर रही है देख सच बताना।"
पारवती की मायूसी और भी गाढ़ी हो गयी, "भाभी बीमार कौन रहना चाहवे, इलाज तो बरोबर चल रहा है पर डाक्टर कहरा दवा के संग अच्छी खुराक अर दूध पिएका पड़ी पर तुम जानो भाभी हम गरीब मानुस ये सब कहाँ से लाएँ"।
"अच्छा चल तू काम कर, मैं मंदिर जा रही हूँ"। उसकी मायूसी को नज़रअंदाज़ करते हुए मैने कहा। फिर थोड़ी उदारता का प्रदर्शन करते हुए कहा "देख बस अंदर की सफाई कर ले, बालकनी और सीढियाँ छोड़ देना। मैं अभी मंदिर होकर आती हूँ।"
शिवरात्रि होने कारण मंदिर में आज बहुत भीड़ थी। शिवलिंग तक पहुँचने के लिए लगभग धक्का मुक्की-सी हो रही थी। शिवलिंग पर लगातार बेलपत्र, फल, फूल, धतुरे चढ़ रहे थे, तिस पर दूध की धाराएँ इन सब पर से होती हुई जलहरी में समां रही थी और एक मोटी धारा में परिवर्तित होकर निकासी से बाहर आ रही थी। एक भक्त रोली चन्दन से लेकर फूल, फल, पत्र, धतूरा आदि पूरी तरह चढ़ा भी नहीं पाता कि दूसरे भक्त के द्वारा किये जा रहे अभिषेक के जल और दूध की धार उसे शिवलिंग से अपदस्थ कर देती।
आखिर काफी जद्दोजहद के बाद मेरी बारी आ ही गयी। मैने लोटे का दूध चढ़ाना आरम्भ किया ही था
कि कुछ बूंदे चढ़ाते ही मेरे हाथ रुक गए। मैने मन ही मन शिवजी से माफ़ी मांगते हुए कहा, "बस प्रभु आपके लिए इतना ही, बाकि का दूध पारवती के लिए।"