पालनहार / अशोक भाटिया
वह अभी कुछ ही महीनों का था। उसे डबल निमोनिया हो गया था। वह तो माँ थी, जो सारा घर छोड़कर पास के डॉक्टर के पास भागी गई। । डॉक्टर ने बच्चे को टीका लगाकर कहा था–बच्चे को एक घंटा और न लाते, तो यह नहीं बचता...
...वह पहली क्लास में दाखिल हुआ। क्लास के लड़के बड़े शरारती थे। उन्होंने उसकी किताब और स्लेट-बत्ती मास्टरजी के लकड़ी के बक्से के नीचे छिपा दी थी। वह खाली थैला लेकर डरता-डरता घर पहुँचा। माँ ने दादी से कहा कि इसे साथ वाले स्कूल में डाल आए। दादी मना करके निकल गई। वह तो माँ थी कि अगले दिन घर का काम बीच में छोड़ उसे नए स्कूल में बिठवा आई ...
...वह मोहल्ले में रात के अँधेरे में खेल रहा था। उसके पैर में लम्बी कील घुस गई। शोर सुन माँ उसे उठाकर ले गई। हल्दी और प्याज़ को तेल में गर्म कर पैर पर बाँध दिया। रात को बाकी घर सो गया, लेकिन वह रात को बार-बार दर्द से बेहाल हो उठता। उसका दिल मानो पैरों में आकर टिक-टिक कर रहा था। वह तो माँ थी, जो दिन भर की थकान से चूर होकर भी रात-भर उसके सर पर हाथ रखकर बैठी रही...
...इस कथा का कोई अंत नहीं...