पावन मकर संक्रांति पर पतंगबाजी / जयप्रकाश चौकसे

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पावन मकर संक्रांति पर पतंगबाजी
प्रकाशन तिथि :13 जनवरी 2018


मकर संक्रांति के पावन अवसर पर गुजरात में पतंगबाजी की जाती है। कई दिन पूर्व से मांजा सूता जाता है और तिल के पकवान बनाए जाते हैं। संजय लीला भंसाली की फिल्म 'हम दिल दे चुके सनम' में पतंगबाजी का दृश्य है। सलमान खान अभिनीत 'सुल्तान' में भी नायक को पतंग लूटने का विशेषज्ञ बताया गया है। अपने जीवन में भी सलमान खान पतंगबाजी के शौकीन रहे हैं और उनकी कार की डिक्की में पतंग उड़ाने का सारा सामान रखा होता है। साथ ही लट्‌टू घुमाने का साजो सामान भी होता है। लट्‌टू को जमीन पर घूमने के पहले ही चलाने वाले उसे अपनी हथेली पर ले लेते हैं।

दशकों पूर्व खाकसार ने अमृतलाल नागर के उपन्यास 'मानस का हंस' का सार पूंजी निवेशक गुणवंतलाल शाह को सुनाया था और वे फिल्म बनाने को तैयार हो गए। उनका विचार था कि तुलसीदास बायोपिक के साथ केवल दिलीप कुमार ही न्याय कर सकते हैं। अत: पहले से तय दिन खाकसार दिलीप कुमार से मिलने गया। उस समय वे पतंगबाजी में व्यस्त थे और अपने सेवक को चाय लाने के लिए भेजा तथा उचका मेरे हाथों में थमा दिया। वे अपने पड़ोसी से एक बोतल बीयर की शर्त पर पतंग लड़ाते थे। पड़ोसी मित्र की पतंग काटने की खुशी से उनका चेहरा दमक रहा था। संजीदगी, समर्पण और काम को इबादत की तरह करना उनका स्वभाव था। उस दिन उन्होंने मांजा सूतने के मसाले और विधियां सविस्तार बताई। यह सिलसिला कई दिन चलता रहा परंतु गुणवंतलाल शाह की मात्र बयालीस की वय में मृत्यु के बाद उनके लिए तुलसीदास बायोपिक करना कठिन लगने लगा। हैरानी की बात है कि अमृतलाल नागर की सुपुत्री अचला मनोरंजन संसार में सक्रिय है परन्तु उन्होंने अभी तक इस दिशा में प्रयास नहीं किया। वैसे भी आज सहिष्णुता के पराभव के दिनों में किसी इस्लाम के मानने वाले अभिनेता को तुलसीदास की भूमिका में लेकर फिल्म नहीं बनाई जा सकती।

कुछ समय पूर्व सलमान खान के पड़ोसी व्यक्ति के कार का शो रूम अहमदाबाद में खुल रहा था। उसी अवसर पर सलमान खान ने भी नरेंद्र मोदी के साथ पतंग उड़ाई थी। उन्हें ज्ञात नहीं था कि यह योजनाबद्ध ढंग से किया गया था। कुछ भी अकस्मात नहीं था। वोट बैंक का मिथ कुछ भी करा सकता है। दो विपरीत राजनीतिक दलों में विश्वास करने वाले पड़ोसियों के बीच वार्तालाप का सार इस तरह है कि एक ने कहा, देखो आकाश सिंदूरी रंग का नजर आ रहा है। दूसरे ने कहा कि देखो धरती पर हरी घास उग आई है। हमारे ही एक प्रांतीय नेता ने हज दफ्तर को गेरुए रंग में रंग दिया और विरोध होने पर पुन: रंग बदला गया। कुछ मनुष्य गिरगिट की तरह रंग बदलने में प्रवीण होते हैं। इंद्रधनुष से भी पूछा जा सकता है कि उसका प्रिय रंग कौन-सा है? फिल्म गीतकार राजशेखर के 'तनु वेड्स मनु' के लिए लिखे गीत की पंक्ति है 'खाकर अफीम रंगरेज पूछे रंग का कारोबार क्या है, कौन से पानी में तूने कौन-सा रंग घोला...'।

वेदव्यास रचित महाभारत में भीष्म पितामह तीरों की शय्या पर कई दिन तक मकर संक्रांति का इंतजार करते हैं। उन्हें इच्छा-मृत्यु का वरदान प्राप्त था। वे पावन मकर संक्राति पर सूर्य के उत्तरायण होने पर ही देह त्याग करना चाहते थे। शपथ बद्ध होकर उन्होंने सिंहासन की रक्षा की परंतु जीवन मूल्य ध्वस्त होते रहे। अगर विदुर को सत्ता सौंपी जाती तो कुरुक्षेत्र में युद्ध नहीं होता परंतु उनके दासी पुत्र होने के कारण उन्हें वंचित किया गया, जबकि वे सबसे अधिक योग्य व्यक्ति थे। रानी ने कुरूप और वीभत्स दिखने वाले वेदव्यास के साथ नियोग संतान को जन्म देने से बचने के लिए अपनी जगह अपनी दासी मर्यादा को भेज दिया था। गौरतलब है कि दासी का नाम मर्यादा है। दासी के पुत्र विदुर का लालन पालन राज पुत्रों के साथ हुआ परंतु मर्यादा सारा जीवन महल में दासी की तरह ही रही। हमारे नैतिक मूल्यों के पतन की जड़ें कितने गहरे पैंठी हुई हैं। सीरत पर सूरत के भारी पड़ने के भयावह परिणाम होते हैं। ज्ञातव्य है कि नूतन के पति ने 'सूरत और सीरत' नामक फिल्म का निर्माण किया था। इसी तरह 'मेरी सूरत तेरी आंखें' में गीत था 'पूछो न कैसे मैंने रैन बिताई, एक पल जैसे एक युग बीता, युग बीते मोहे नींद न आई...'। यह सचिन देव बर्मन की रचना है और स्वयं उन्होंने स्वीकारा था कि उन्हें इसकी प्रेरणा काज़ी नज़रुल इस्लाम की रचना से मिली थी। इस फिल्म का नायक भी कुरूप व्यक्ति है। इसी तरह की प्रेम-कथा है 'हन्चबैक ऑफ नॉटरडम' जिससे प्रेेरित हिन्दुस्तानी फिल्म में उल्हास ने अभिनय किया था और शंकर-जयकिशन का संगीत था। संभवत: फिल्म का नाम 'बादशाह' था। 'बादशाह' भी कुरूप व्यक्ति की सुंदर स्त्री से प्रेम-कामना की फिल्म थी।

बहरहाल, क्या किसी पावन दिन देह त्याग करने से स्वर्ग में स्थान मिलता है? कर्म के बही-खाते पर पवित्र दिन भारी पड़ता है? मिथ रचते रचते हम स्वयं मिथ बनते जा रहे हैं। क्या इसीलिए विश्व का मौजूदा नेतृत्व हमारे सदियों से किए जा रहे सामूहिक अनैतिक कार्यों का परिणाम है? यह भी चिंता होती है कि आकाश में उड़ती पतंगें और उनके मांजे से वे आत्माएं आहत होती होंगी जो स्वर्ग जा रही हैं। यह भी चिंतनीय है कि भारतीय आकाश में चीन में बनी पतंगें उड़ रही हैं। हुक्मरान मदमस्त है और चीनी मांजे से भारतीय गरदन कट रही है।