पावर ऑफ कामन मैन / सुशील यादव

Gadya Kosh से
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उस दिन आम आदमी को बगीचे में टहलते हुए देखा। आश्चर्य हुआ। मैंने पूछा आप इधर? वो बोला हाँ, तफरी का मूड हुआ चला आया। आप और तफरी? दाल में जरूर कुछ काला है? उसने कहा हम लोग ज़रा सा मन बहलाने क्या निकलते हैं आप लोगों को मिर्ची लग जाती है? अब तफरी पर भी टैक्स लगाने का इरादा है, तो हद ही हो जायेगी।

मैं सहज पीछा छोडने वाला जीव नहीं हूँ। मामले की तह तक जाना,मैं पत्रकारिता का उसूल ही नहीं सामाजिक दायित्व भी समझता हूँ। सो उससे भिड गया। उसे छेडते हुए, जैसा कि आम पत्रकार भीतर की बात निकलवाने के लिए, करते हैं, उसे पहले चने की कमजोर सी ड़ाल पर चढाया, पूछा भाई आम आदमी, इश्क-मुश्क का मामला है क्या?

आदमी का बगीचे में पाया जाना, करीब-करीब इधर का इशारा करता है। वो बोला नइ भाई,इस उमर में इश्क ! चालीस पार किये बैठे हैं, आप तो लगता है पिटवाओगे? मैंने कहा, लो इसमें पिटने-पीटाने की क्या बात हुई? लोग तो सरे आम सत्तर-अस्सी वाले, संत से लेकर मंत्री सभी रसियाये हुए, एश कर रहे हैं। और तो और वे इश्क से ऊपर की चीज कर रहे हैं, और आप इसके नाम से तौबा पाल रहे हैं?

क्या कमी है आप में जो इश्क की छोटी-मोटी ख्वाहिश नहीं पाल सकते?

वो गालिबाना अंदाज में कहने लगा “और भी गम हैं, दुनिया में मुहब्बत के सिवा”...

मुझे उसकी शायरी को विराम देने के लिए चुप सा हो जाना पडा|

बहस जारी रखने में हम दोनों की दिलचस्पी थी। हम दोनों फुर्सद में थे। संवाद आगे बढाने की गरज से मैं मौसम में उतर आया, अब हवा में थोड़ी सी नमी आ गई है न?

अरे नमी-वमी कहाँ? आगे देखो गरमी ही गरमी है।

अपने स्टेट में हर पाचवे साल यूँ गरमाता है माहौल। अलगू चौधरी को टिकट दो तो जुम्मन शेख नाराज, जुम्मन मिया को दो तो मुखालफत, बहिस्कार?

टिकट देने वाले हलाकान हैं। शहरों को भिंड –मुरैना का बीहड़ बना दिया है बागियों ने। जिसे टिकट न दो वही बागी बनाने की धमकी दिए जा रहा है।

मैंने बीच में काटते हुए कहा, आपकी बात भी तो चल रही थी.क्या हुआ?

उसने मेरी तरफ खुफिया निगाह से फेकी , उसे लगा मैं इधर की उधर लगाने वालों में से हूँ।

मैंने आश्वश्त किया, कहा मेरे को बस, मन में ये ख्याल आया, कहीं पढ़ा था, आपका नाम उछल रहा है, सो जिज्ञासावश पूछ रहां हूँ, अगर नहीं बताना है तो कोई बात नहीं।

उसे कुछ भरोसा हुआ। वैसे आदमी भरोसे में सब उगल देता है। बड़े से बड़ा अपराधी भी पुलिसिया धमकी के बीच, एक-आध पुचकार पर भरोसा करके, कि उसे आगे कुछ नहीं होगा, सब बता देता है। दुनिया भरोसे पर टिकी है। वो मायूस सा गहरी सांस लेकर रह गया। अनुलोम-विलोम के दो-तीन अभ्यास के बाद कहा, हम आम आदमी को भला पूछता कौन है? किसी ने मजाक में हमारा नाम उछाल दिया था। पालिटिक्स में बड़े खेल होते हैं, किसी ने हमारे नाम के साथ खेल लिया। दरअसल दो दिग्गजो के बीच टसल चल रहा था,कोई पीछे हटने का नाम नहीं ले रहा था, टिकट बाटने वाले अपना सिक्का चलाना चाह रहे थे। उन्होंने हमारे नाम का बाईपास निकाला, दोनों धराशायी हुए।

हमारे नाम का गुणगान यूँ किया कि हम आम –आदमी हैं, राशन की लाइन में लगते हैं, भाजी के साथ भात खा लेते हैं, सच्चे हैं ईमानदार हैं, पार्टी को हम जैसे लोग ही आगे ले जा सकते हैं|हमारी जय-जयकार हुई, हमारे नाम के चर्चे हुए। मीडिया ने घेरा। दोनों दिग्गजों को आश्वाशन-ए-लालबत्ती मिला, वे दुबक गए।

पत्रकार जी, हम भले, आम आदमी हैं, मगर थोड़ा दिमाग भी खर्चते हैं। हमने मन में गणित बिठाया कि जिस टिकट के लिए चिल्ल-पो मची है, वो हमारे नाम खैरात में डालने की जो जुगत कर रहा है वो बहुत चालु चीज है। जो दिख रहा है, वैसा तो कदापि नहीं है। जरूर कुछ लोचा है। हमने अपने सर के हरेक जूँ को रेगने से मना कर दिया, जो जहाँ है वहीं रहे कोई हरकत की जरूरत नहीं। रात को पार्टी मुखिया लोग आये, कहने लगे, आपके पास राशन कार्ड है,मतदाता परिचय पत्र गुमाए तो नहीं बैठे, दिखाओ, अब तक आधार कार्ड बनवाया कि नहीं? सरकार से कर्जा-वर्जा लिया है क्या? चुनाव में खूब खर्चा होगा कर सकोगे? आजकल करोड़ों में निकल पाता है एक सीट। कुछ तो पार्टी लगा देती है,मगर नही-नही में बाटते –बाटते चुनाव हरने वाला सड़क पे आ जाता है, सोच लो।

हमे लगा ये पालिटिक्स वाले हमें सपना दिखा -दिखा के कर मार देंगे। हमने उनसे पीछा छुडा लिया या यूँ कहें उनके मन के मुताबिक़ उन लोगों ने अपनी चला ली।

आम आदमी को पूछ भी लिया और मख्खी की तरह लिकाल बाहर फ़ेंक दिया। वैसे हमे भी मानते हैं, चुनाव लड़ना आम आदमी के बस की बात नहीं। पैसे का बोल-बाला रहता है। पार्टी आपको हरवा कर भी कहीं-कहीं जीत जाती है, वो किसके हाथ आपको बेच दे कह नहीं सकते।

आम आदमी, एक दार्शनिक मुद्रा में मेरी तरफ देख के फिर आसमान ताकने लगा, मुझे लगा कि वो मानो कह रहा है, देखा पावर-लेस ‘मेन’ का पावर?