पिंकी और पापा / बलराम अग्रवाल
पात्र -
पिंकी
मम्मी
पापा
परदा उठता है। मंच को पार्टिशन खड़ा करके दायें और बायें दो कमरों में बाँटा गया है। बायाँ कमरा पिंकी का पढ़ने और सोने का कमरा है और दायाँ कमरा मम्मी-पापा का है। मम्मी एक कुर्सी पर बैठकर सब्जी काटने जैसा कोई भी काम कर रही है। पापा एक कुर्सी पर बैठकर और दूसरी कुर्सी पर दोनों पाँवों को पसारकर अखबार पढ़ रहे हैं।
बायें कमरे में पिंकी का प्रवेश। वह अपनी पढ़ने की मेज के पास जैसे ही पहुँचती है, चौंक जाती है।
पिंकी (चौंककर)—अरे, मम्मी का मोबाइल मेरे कमरे में!! (कुछ सोचते हुए) मेरा कमरा ठीक करने आई होंगी और अपना मोबाइल यहाँ भूल गई होंगी। ...कोई बात नहीं। अब यह मिल ही गया है तो दादी-माँ बनकर पापा की खबर लेती हूँ।
पापा का नम्बर मिलाती है। दूसरी ओर पापा के मोबाइल की रिंगटोन बजती है। वो अपना मोबाइल उठाकर नम्बर देखते हैं।
पापा (चौंककर)—अरे अनु, तुम तो यहाँ बैठी हो, फिर तुम्हारे मोबाइल से यह कॉल कौन कर रहा है?
मम्मी (अपने आस-पास मोबाइल तलाश करती हुई)—अरे याद आया, पिंकी का कमरा ठीक करने गई थी तो वहीं उसकी मेज पर रखा छोड़ आई शायद। आप बात करो, पिंकी ही बोल रही होगी।
पापा (मोबाइल का कॉल बटन दबाकर) —हलो...ऽ...।
'पिंकी (कुछ मोटी आवाज़ बनाकर)—हलो बेटा, नमस्ते।
पापा (चौंककर) बेटा!! अरे मैं पापा बोल रहा हूँ पिंकी। अपने कमरे में बैठकर क्यों कॉल बरबाद कर रही हो?
पिंकी—अरे मैं पिंकी नहीं, तेरी माँ बोल रही हूँ मेरठ से।
पापा—मेरठ से माँ बोल रही है।
पापा का यह संवाद सुनकर मम्मी काम करते-करते रुक जाती है और मुस्कराकर पापा से कहती है—
मम्मी (धीमी आवाज में)—शरारत के मूड में लगती है।
पिंकी—हाँ। बहू किधर है?
पापा—बहू? बहू कौन?
पिंकी—अरे पिंकी की मम्मी और कौन?
पापा—वो तो यहीं बैठी है, मेरे बराबर में।
पिंकी—तब ठीक है। मोबाइल को लाउड स्पीकर पर लगा।
पापा—लाउड स्पीकर पर? क्यों?
पिंकी—जैसा कह रही हूँ वैसा कर।
पापा—ठीक है, लगा दिया।
पिंकी—तुझे मेरी आवाज सुनाई दे रही है बहू।
मम्मी (किसी प्रकार अपनी हँसी रोकते हुए) —आपकी आवाज मुझे साफ-साफ सुनाई दे रही है। पाँव छूती हूँ आपके।
पिंकी—जीती रहो, सुखी रहो। कितनी अच्छी है तू। इस पाजी ने तो राम-राम तक नहीं की मुझसे।
पापा—माफ कर दो अम्मा। पाँव छूता हूँ मैं भी।
पिंकी—अरे, कहने से छुए तो क्या छुए। खैर, आशीर्वाद देती हूँ। अब ध्यान से सुने मेरी बातें और जवाब दे।
पापा (व्यंग्यपूर्वक)—हाँ, बोल मेरी अम्मा।
पिंकी—पहले तो यह बता कि तेरा स्वास्थ्य कैसा है?
पापा—भला चंगा हूँ आपके आशीर्वाद से।
पिंकी—झूठ बोल रहा है?
पापा—झूठ क्यों बोलूँगा आपसे?
पिंकी—बहू तो बता रही थी कि वायरल फीवर होकर चुका है तुझे?
पापा—वो... हुआ था, लेकिन...।
पिंकी—दवाई ली?
पापा—हाँ, कुछ गोलियाँ ले आया था केमिस्ट से...
पिंकी—केमिस्ट से क्यों? डॉक्टर से क्यों नहीं?
पापा—वो...अम्मा...
पिंकी—कितनी बार समझाया है कि सेहत से खिलवाड़ करना अच्छी बात नहीं है।
पापा—आगे से ध्यान रखूँगा अम्मा।
पिंकी—हर बार यही कहकर बहकाता है। खाना टाइम पर खाना शुरू किया?
पापा—हाँ, यकीन न हो तो अपनी बहू से पूछ लो।
पिंकी—और सवेरे उठकर पार्क में घूमने जाना?
पापा—सवेरे जल्दी उठना मेरे लिए जरा मुश्किल है अम्मा।
पिंकी—क्यों? अरे, जल्दी सोओ, जल्दी उठो।
पापा—जल्दी सोना भी तो मुश्किल है।
पिंकी—तू आलसी और निकम्मा है बचपन से ही।
पापा—अब...अपनी बहू के सामने मेरी सारी पोल तो मत खोलो।
पिंकी—मन में ठान लो तो कोई काम मुश्किल नहीं है।
पापा—सो तो है...अच्छा अम्मा, पिंकी से बात कराऊँ आपकी?
यों कहते हुए पापा अपनी कुर्सी से उठते हैं और मम्मी को भी उठकर अपने पीछे आने का इशारा करते हैं। बातें करते-करते वे दोनों पिंकी के कमरे में प्रवेश करते हैं और उसके पीछे जा खड़े होते हैं।
पिंकी—पिंकी से और बहू से तो मेरी बातें होती ही रहती हैं। तू ही नालायक है बस।
पापा—आपका लाड़ला बेटा हूँ न।
पिंकी—चुप। मुझे नालायक बता रहा है बेवकूफ?
पापा—नहीं अम्मा। मैं ऐसी गुस्ताखी कैसे कर सकता हूँ भला।
यह संवाद पापा कुछ इस तरह बोलते हैं कि पिंकी उसे सुन ले। उनकी आवाज़ सुनते ही पिंकी गरदन घुमाकर पीछे देखती है।
पापा—तो आप मेरठ से नहीं, पिंकी के कमरे से बोल रही हैं अम्माजी।
पिंकी—हाँ जी। और जब तक तू सुधर नहीं जाता, वापस जाऊँगी भी नहीं यहाँ से।
पापा—जैसी आपकी इच्छा।
यों कहकर पापा पिंकी को गोद में उठाकर चूमते हैं।
पापा—पापा की खबर लेती है शैतान।
पिंकी—बड़े जब बच्चों की बात नहीं मानते तो उनकी ऐसे ही खबर लेनी पड़ती है।
मम्मी—ठीक कहा। तू इसी तरह इनकी खबर लेती रहना। मैं तेरे साथ हूँ।
पापा—तुम भी?
मम्मी—हाँ।
'इसी के साथ तीनों जोर से हँस पड़ते हैं।