पिंजरे / सुकेश साहनी

Gadya Kosh से
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उसके क़दमों की आहट से चौंक कर नीलू ने आँखें खोलीं, उसे पहचान कर धीरे से दुम हिलाई और फिर निश्चिन्त होकर आँखें बंद कर लीं। चारों पिल्ले एक दूसरे पर गिरते पड़ते माँ की छाती से दूध पी रहे थे। वह मंत्रमुग्ध-सा उन्हें देखता रहा।

नीलू के प्यारे-प्यारे पिल्लों के बारे में सोचते हुए वह सड़क पर आ गया। सड़क पर पड़ा टिन का खाली डिब्बा उसके जूते की ठोकर से खड़खड़ाता हुआ दूर जा गिरा । वह खिलखिलाकर हँसा। उसने इस क्रिया को दोहराया । तभी उसे पिछली रात माँ के द्वारा सुनाई गई कहानी याद आ गई जिसमें एक पेड़ एक धोबी से बोलता है, “धोबिया, वे धोबिया! आम ना तोड़...”

उसने सड़क के दोनों ओर शान से खड़े पेड़ों की ओर हैरानी से देखते हुए सोचा-- "पेड़ कैसे बोलते होंगे ? कितना अच्छा होता, अगर कोई पेड़ मुझ से भी बात करता !"

पेड़ पर बैठे एक बंदर ने उसकी ओर देखकर मुँह बनाया और फिर डाल पर उलटा लटक गया। यह देखकर वह ज़ोर-ज़ोर से हँसने लगा।

ख़ुद को स्कूल के सामने खड़ा पाकर वह चौंक पड़ा। घर से स्कूल तक का लम्बा रास्ता इतनी जल्दी तय हो गया, उसे हैरानी हुई । पहली बार उसे पीठ पर टँगे भारी बस्ते का ध्यान आया। उसे गहरी उदासी ने घेर लिया। तभी पेड़ पर कोयल कुहकी । उसने हसरत भरी नज़र कोयल पर डाली और फिर मरी-मरी चाल से अपनी कक्षा की ओर चल दिया।