पिछवाड़े बुढ्ढा खांसता / सुशील यादव

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बुढ्ढे को जिंदगी भर कभी बीमार नहीं देखा। हट्टा-कट्टा,चलता-फिरता, दौडता-भागता मस्त तंदरुस्त रहा। कभी छीक, सर्दी-जुकाम, निमोनिया-खासी का मरीज नहीं रहा।

अभी भी वो सत्तरवे बसंत की ओर पैदल चल रहा है। उसकी सेहत का राज है कि वो, घर की सुखी दाल-रोटी में मगन रहता है। दो बच्चे थे, शादियाँ हो गई। इस शादी के बाद पत्नी की सीख पर कि बहु–बेटियों का घर है, समधन पसरी रहती हैं, आते –जाते खांस तो लिया करो।

इस प्रायोजित खांसी की प्रेक्टिस करते –करते उन्हें लगा कि ‘ग्लाइकोडीन’ का ब्रांड एम्बेसडर बनना ज्यादा आसान था, कारण कि टू बी..एच. के. वाले मकान में जहाँ पिचावाडा ही नहीं होता, आदमी कहाँ जा के खासे?

हमारे पडौस में दो दमे के बुजुर्ग मरीज रहते हैं, उनके परिवार वाले बाकायदा उनको पिछवाड़ा अलाट कर रखे हैं जब चाहो इत्मीनान से रात भर खांसते रहो।

एक हमारे चिलमची दादा भी हुआ करते थे, एक दिन इतनी नानस्टाप, दमदार,खासने की प्रैक्टिस की कि पांच-दस ओव्हर पहले खांसते-खासते, उनकी पारी सिमट गई, वे अस्सी पार न कर सके।

आजकल हमारे चेलारामानी को पालिटिकली खांसने का शौक चर्राया है।

वे लोग लोकल पालिटिकल फील्ड में हंगामेदार माने जाते हैं, जो समय पे ‘खासने’ का तजुर्बा रखते हैं मसलन, सामने वाले ने प्रस्ताव रखा महापौर को घेरने का सही वक्त यही है वे कहेंगे नहीं अभी थोड़ी गलती और कर लेने दो, वे खांस कर वीटो कर देते हैं उनकी उस समय,मन मार के, सुन ली जाती है।

आप कैसा भी प्रस्ताव, कहीं भी, चार लोगों की बैठक में ले आओ वे विरोध किए बिना रह ही नहीं सकते।

लोग अगर कह रहे हैं कि देखिये, हम लोग मोहल्ले में पानी की कमी के बाबत मेयर से मिल के समस्या से अवगत करावे। वे खांस दिए मतलब उन्हें इस विषय में कहना है। जोर से खांसी हुई तो मतलब उनकी बात तत्काल सुनी जावे। वे सुझाव देने वाले पर पलटवार करके पूछते हैं। आपके घर में पानी कब से नहीं आ रहा? घर के कितने लोग हैं, हमारे घर में चौदह लोग रहते हैं .सफिसियेंट पानी आता है। इतना आता है कि नालियां ओव्हर फ्लो हो रहती हैं। मेयेर से हमारी तरफ नाली बनवाने का रिक्वेस्ट किया जावे। अभी गरमी आने में तो काफी वक्त है आपकी समस्या तब देख ली जावेगी। मीटिंग उनके एक लगातार खासने से, अपने अंत की तरफ चली जाती है, न पानी और न ही नाली की बात, मेयर तक पहुच पाती है।

हम मोहल्ले वाले चेलारमानी के ‘न्यूसेंस-वेल्यु’ को भुनाने के चक्कर में उनको एक बार मोहल्ला सुधार समिति का अध्यक्ष बना दिए। उनने साल भर का एजेंडा यूँ बनाया। भादों में सार्वजनिक गणेश उत्सव, कलोनी वालों से चन्दा, फिर नवरात्रि में कविसम्मेलन का भव्य आयोजन, चंदा। मोहल्ला सुधार समिति की तरफ से विधायक –मन्त्री का स्वागत, जिसमे मोहल्ले के विकास के लिए राशि की मांग, सड़क –नाली सुधार पर ध्यानाकर्षण। हरेक माह समिति के सदस्यों की बैठक।

वे बैठक में एकमेव वक्ता होते, आए दिन, चंदा उगाही में, मुस्तैदी के चलते मोहल्ले वाले तंग आ गए। किसी भी दरवाजे पर खटखटाने की बजाय वे केवल खास दिया करते तो लोग समझ जाते चेलारमानी आ गए। एक सौ, चंदे की चपत लग गई समझो। आदमी सौ तो बर्दास्त कर लेता, मगर बिना चाय के न टलने की आदत को बर्दाश्त न कर पाते।

जिस गरमी से उसे चुना गया था उसी मुस्तैदी से उसे हटाने का अभियान चलाना पड़ा। लोग चंदा दे-दे के हलाकान हो गए थे।

चेलारमानी के सब्सीट्युट, ताकतवर खासने वाले की तलाश मोहल्ले में जारी है।

अगर आपके पिछवाड़े में कोई बुढ्ढा खांसता हुआ मिले तो इस मुहल्ले में भिजवा दे।