पिण्ड-दान / धनन्जय मिश्र

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वैदिक काल रोॅ ऋचाओं में धार्मिक क्रिया-कलापोॅ रूपी हौ अनुष्ठानों कॉ, भारतीय समाज में श्रुति आरोॅ स्मृति रोॅ एक विशिष्ट स्थान छै जेकरा विधि-विधान सें करला पर आदमी रोॅ मनोॅ में एक आत्मसंतुष्टि प्राप्त होय छै। आदमी आपनोॅ आत्म-चेतना लैकॉ ईश्वरीय स्वरूप कॉ प्राप्त करी कॉ सौसें संसार पर अधिकार करै सकै छै, मतरकि होकरोॅ सोच आरोॅ दिशा सकारात्मक हुएॅ। है भी सच छै कि विशिष्ट जन अनुभव लैके ही विशेष ज्ञान रोॅ साथ सौंसे संसार कॉ आपनोॅ चमत्कार से हतप्रस्थ करै सकै छै। धार्मिक पुराणों में, उपनिषदों में ऐन्हौ-ऐन्हौ कत्तेनी उदाहरण भरलोॅ पड़लोॅ छै, जेकरा सुनलैह से ही आदमी सभ्भे दैहिक बाधा से मुक्ति पावी जाय छै।

यही क्रम में हम्मे मनोॅ में संचित भावनाओं में डूबी पड़ी कॉ एक धार्मिक अनुष्ठान कॉ पूरा करै लेली हिन्हें-हुन्ने से सूचना लैकॉ कत्ते आपनोॅ से निराश होय कॉ एकला चलो रोॅ सिद्धान्त पर आपनोॅ पूर्वजोॅ कॉ गया जी में पिंड-दान लेली आपनोॅ धरमपत्नी किरण मिश्रा रोॅ साथे घरोॅ से निकली कॉ पुनसिया बस स्टैंड में बसोॅ पर चढ़ी कॉ भागलपुर रेलवे स्टेशन ऐलियै।

गया जी में पितृपक्ष मेला एक पखवारा तांय शुरू होय गेलोॅ छेलै। यहाँ हरेक वर्ष आसिन माह रोॅ प्रतिपदा सें लैके आसिन पक्ष रोॅ अमावस्या तॉय पितृपक्ष मेला लागतै छै। जेकरा पितृपक्ष या पितरौ रोॅ पक्ष मेला भी कहलो जाय छै। है मेला में देश आरोॅ विदेशों कॉ भी लाखों-लाख हिन्दू धर्मावलंबी भक्त आपनोॅ पूर्वजोॅ कॉ श्राद्ध, तर्पण, आरोॅ पिंडदान लेली यहाँ ऐतै रहै छै। ऐन्हो मान्यता छै कि है पुण्य क्षेत्र में आपनोॅ पूर्वजोॅ रोॅ श्राद्ध पिंडदान करी कॉ बेटा आपनोॅ पूर्वज ऋण से सभ्भे दिनों लेली मुक्त होय जाय छै आरोॅ हुनको भटकलोॅ आत्मा कॉ शान्ति मिलै छै जेकरा सें हौ आत्मा कॉ आरोॅ योनि में भटकैलॉ नै पड़ै छै आरोॅ कर्त्ता कॉ भी खुब्बे आत्म संतोष मिलै छै।

भागलपुर रेलवे स्टेशन से गया रामपुर हाट सवारी ट्रेन रोॅ टिकट लै केॅ हम्मे प्लेटफार्म नं॰ पाँच पर हय सोची कॉ ऐलो रहियै कि गाड़ी में भीड़ तॉ होवे करतै। मतरकि गाड़ीमें खुब्बे खाली सीट पावी कॉ मनो मेंहै संतोष होलै कि आवे नै कुच्छू तॉ हम्मे दोनों गया जी तॉ ज़रूरे पहुँची जैवै। कैन्हे कि कोनोॅ यात्र में यात्री कॉ आराम तॉ हुनको जन्मसिद्ध अधिकार छै। आरोॅ यहो सच छै कि यात्र में आराम मुश्किलै सें मिलै छै। यही पर हमरोएक दोहा है कहै छै-

दुनियाँ रोॅ हर मोड़ मै, जहियो करैले काम,

मतरकि घर नै भूलि हौ, मिलतौ वही अराम।


है गाड़ी रोॅ विषय में बेसी कहै सें अच्छा यहा रहतै कि यै में यात्रियों रोॅ मूलभूत ज़रूरी सुविधा कॉ प्रायः अभाव ही रहै छै। खैर गाड़ी भागलपुर स्टेशन सें दिन रोॅ पौने तीन बजे दोपहर में खुललै। शाम होते-होते है बातोॅ रोॅ पता भी चली गेलै कि हमरोॅ बोगी में रोशनी नै छै। गाड़ी सरकलोॅ-सरकलोॅ लगभग रात के आठ बजे क्यूल स्टेशन पहुँचलै। हम्मे दौड़ी कॉ स्टेशन मास्टर सें लाइट लेली हुनको कमरा में जाय कॉ गुहार करलियै। वै पर स्टेशन मास्टर सें है आश्वासन मिललै कि गाड़ी में जत्ते अंधकार वाला डिब्बा छै, सबरोॅ लाइट ठीक करलो जैतै, आपने धैर्य राखिए. मनोॅ में आशा जगलै कि चलोॅ थोड़े प्रयासों में ही है कठिनाई दूर होय जैतै मतरकि यहौ सच छै कि थोड़ोॅ माँगला पर बेसी रोॅ आश्वासन भी भ्रम पैदा करै छै काज रोॅ सफलता में। यहाँ यहा ही होलै। कत्ते नी निहोरा रोॅ बादोॅ भी जबेॅ काज नै होलै तबेॅ हारी-फारी कॉ हमरा दोनों आपनो बोगी बदली कॉ रोशनी रोॅ बोगी में चल्लो गेलियै। गया जी में रहै रोॅ व्यवस्था लेली वहाँ केरोॅ पंडा जी (गया पाल) कॉ हम्मे पहिनै ही फोन सें सूचित करी देने छेलियै कि हम्में दोनों गया रामपुर हाट पैसेंजर गाड़ी सें आवी रहलो छियै, जे रात केॅ लगभग बारह-एक बजे रोॅ करीब पहुँचतै। तोहें कृपा करी कॉ स्टेशन में मिलिहो। गाड़ी ठीक्के समय पर स्टेशन पर लागलै। पंडा जी सें भेंट होलै। पंडा जी रोॅ साथे ऐलोॅ एक युवक कॉ हुनी हमरो साथे लगाय कॉ एक रिर्जभ ऑटो रिक्सा पर बैठाय केॅ हमरा दोनों पंडा जी रोॅ वासा पर रात रोॅ लगभग एक बजे पहुँचलियै। हुनको प्रवेश द्वार पर है बोर्ड दिखलाय पड़लै जेकरा में लिखलो छेलै-

श्री गया धाम के पंडा जी

"इन्दु निवास" भागलपुरिया भवन

बब्लू कड़ी व हेमंत कड़ी

बब्लू कड़ी भागलपुरिया भवन, पूर्वी रामसागर रोड,

चाँद चौरा, गया धाम

भगलपुरिया भवन एक भव्य चौमंजिला छेलै जे एखनी निर्माण काल में ही दिखलाय पड़लै। आवेॅ हमरा दोनों भीतरी भाग में ऐलियै। वहाँ देखैलिए कत्ते सिनी तीर्थ यात्री रं अवस्था में आरामरत छेलै। हमरा दोनों कॉ एक बड़का हॉल में एक तरफें एक चौकी रोॅ साथ साफ-सुथरा बिछौना देलोॅ गेलै। आराम सें नीदोॅ रोॅ साथ भोर होलै। नित्य क्रिया रोॅ वाद पंडा जी (बबलू कड़ी पिता स्व॰ लक्ष्मण कड़ी) सें भेंट होलै। दुआ-सलाम रोॅ बाद पिंडदान रोॅ रूप-रेखा तय होलै। पिंडदान में कोनोॅ भी कार्यक्रमों रोॅ पहिने मुण्डन कर्म ज़रूरी होय छै। हम्में मुंडन करैलियै। आवेॅ पंडा जी (बबलू कड़ी) ने हमरा पिंड दान लेली एक पंडित जी जिनको नाम श्री नवल किशोर पांडेय ग्राम़पो॰ जमुआवा प्रखंड वजीरगंज, जिला-गया कॉ हमरो पास है कहीं केॅ सुपुर्द करलकै कि अगर आपने कॉ कोनोॅ आपत्ति नै हुए तोॅ आपनै साथै आपने इलाका पीरपैंती प्रखंड के ही हौ यात्री छेकै, जिनको नाम श्री सत्यनारायण पांडेय आपनोॅ बेटा साथै पिंडदान लेली ऐलोॅ छै। हुनयौं पिंडदान कर्म आपनै साथे करतै। यै में हमरा की आपत्ति छै। हम्मे तोॅ खुशे होलियै कि हम्में दू यात्री सें चार यात्री भै गेलियै। आवेॅ पंडित जी रोॅ द्वारा है कहलो गेलै कि फाल्गु नदी में अपर्याप्त आरोॅ प्रदूषित जोॅल मिलै छै। हौ जलोॅ में स्नान कष्टकारक होतै। यै लेली आपने सिनी याँही स्नान करी लियै।

आवे हमरा सिनी याँही स्नान, ध्यान करी कॉ ज़रूरी पिंडदान सामान लैकॉ नंगे पाँव आपनोॅ सहयोगी आरोॅ पंडित जी रोॅ साथे डेरा सें करीब आठ बजे सुबह निकल्लीयै। बाहरी रोडोॅ पर ऐलोॅ पर महातीर्थ यात्री रोॅ महासमुद्र दिखाय पड़लै। भीड़ फाल्गु नदी आरोॅ विष्णु पाद मंदिर रोॅ तरफ धीरेॅ-धीरेॅ रंेगी रहलों छेलै। रस्ता में पंडित जीरोॅ कहला पर पिंड बनाय लेली पात्र (पीतल रोॅ थाली आरोॅ लोटा) रोॅ खरीद होलै। फल्गु नदी में प्रवेश रोॅ पैहिने ही निर्धारित सब पूजा रोॅ समान लैकेॅ नदी में रोमांच रोॅ साथ प्रवेश करलियै। नदी रोॅ फैललोॅ बालूका राशि लगभग आधोॅ किलोमीटर ताँय तीर्थ यात्री से भरलोॅ-पड़लोॅ छेलै। सबरोॅ एक्के ही लक्ष्य छेलै-पूर्वजों रोॅ पिंडदान। नदी रोॅ बीचो-बीच पानी रोॅ एक छोटोॅ रं बहतेॅ एक पातरो धार सबके यही कही रहलो छेलै कि आपने सिनी केॅ पूर्वजों के उद्धार करतें-करतें हम्मे खुद ही कारोॅ आरोॅ प्रदूषित होय गेलो छियै। मतुर फेरू भी आपने सिनी रोॅ काज करतै रहवै।

यहां पर हम्मे देखलियै कि वही पातरोॅ धारोॅ में कत्ते सिनी लोग कुच्छू है सोची कॉ खोजी रहलो छेलै कि 'आग लगंती झोपड़ी जे निकसै से लाभ' वाली कहावत यहाँ दिखाय पड़ी रहलोॅ छेलै। खैर, है यहाँ करो सांस्कृतिक होय सकै छै, हेकरा से तीर्थयात्री कॉ की मतलब। मतुर सच तॉ यहाँ छै कि यहाँकरे की हर बड़ो-बड़ोॅ तीर्थ स्थलों पर यहा संस्कृति, यहा रिवाज पैलोॅ जाय छै कि ऐलो तीर्थयात्री से जत्ते होयलॉ सके ऐन-केन प्रकारेन, धर्म रोॅ नाम सें, आस्था रोॅ नाम सें निचोड़ी लेलोॅ जाय। यहा सिनी बात मनोॅ में उमड़ी रहलो छेलै कि ठीक वही वक्ती पंडित जी रोॅ है डाक होलै कि जजमान की सोची रहलो छौ, जल्दी सें जोॅल लानी कॉ काज शुरु करो नै तोॅ बढ़ी रहलो धूपो में परेशानी बढ़तौ। है सुनथे हमरा सिनी जोॅल पात्र में जोॅल लानी कॉ निर्धारित स्थानों पर बैठी कॉ पिंड बनावे लागैलिए. (यहाँ पर हम्मे पाठकगण कॉ है बताय दै छियै कि सबसे पहिने पिण्डदान रोॅ काज यहा नदी से ही शुरु होय छै। पिण्डदान रोॅ समान जौ रोॅ आटा आरोॅ कारोॅ तिल) यहाँ पर पंडित जी रोॅ द्वारा इक्कीस पिंड छोटोॅ-छोटोॅ रुपों में बनवैलकै। सभ्भे विधि-विधान सें आपनो पूर्वजोॅ रोॅ नाम, गोत्र रोॅ साथ पिंड दान करैलो गेलै। संकल्पों रोॅ साथ पंडित जी कॉ दक्षिणा देलो गेलै। यहाँ पर आरोॅ एक ज़रूरी बातोॅ रोॅ जिक्र करना अति आवश्यक है छै कि याँही से हर पिंड दान वक्ती आपनोॅ पाँच वंशोॅ रोॅ पाँच पीड़ियों रोॅ पिंडदान होय छै, जे निम्नलिखित है-

१. पितृपक्ष में पाँच पीढ़ी जेना-पिता, दादा, परदादा, छर दादा, लकड़दादा रोॅ नाम गोत्र साथे।

२. मातृपक्ष में पाँच पीढ़ी-माता, नाना, परनाना, छर नाना, लकड़नाना रोॅ नाम गोत्र साथे।

३. ससुराल पक्ष में पाँच पीढ़ी-ससुर आरोॅ सास रोॅ पाँच पीढ़ी रोॅ नाम गोत्र साथे।

४. बहन-बहनोई, पीसी-पीसा रोॅ पाँच पीढ़ी रोॅ नाम गोत्र रोॅ साथे।

५. नौकर-चाकर, ज्ञात-अज्ञात पक्ष रोॅ पाँच पीढ़ी रोॅ नाम गोत्र साथे।

नोट: एतना-एतना मृतात्मा रोॅ नाम आरोॅ गोत्र प्रायः हर तीर्थ यात्री कॉ लिखी कॉ लानैलॉ पड़ै छै तवेॅ ही हुनको पिंड दान सफल मानलोॅ जाय छै। मतुर जे तीर्थ यात्री कॉ अनजान सें है सब ब्यौरा उपलब्ध ने रहै छै, तॉ होकरोॅ लेली भी रसता पंडित जी रोॅ द्वारा बनैलोॅ गेलो है छै-अज्ञात गोत्र, यथा नाम कहकर पिंडदान होय जाय छै।

आवेॅ नदी में पिंड दान रोॅ बाद सभ्भे पिंड दान रोॅ कचरा कॉ जमा करी कॉ नदी में भसाय लेली पंडित जी रोॅ आदेश होतै होकरो पालन भी होलै। वहाँ एक सकारात्मक दृश्य देखैला है मिललै कि हजारोॅ हजार पिंडदानियों रोॅ पिंड कचरा नदी में नै भसाय केॅ हौ कचरा एक कचरा पात्र में जमा होय रहलो छेलै। है काज सरकारी छेलै या स्वयंसेवी संस्था रोॅ, मतुर जेकरोॅ भी है काज छेलै हौ प्रशंसनीय रहै जेकरा से नदी आरू प्रदूषित होय सें बची रहलो रहै। आवेॅ नदी में हाथ पैर आरोॅ पिंडदान पात्र कॉ धोय कॉ नदी रोॅ ऊपर स्थित विष्णुपाद मंदिर रोॅ विशाल प्रांगण में ऐलिये। आवेॅ दोसरोॅ चरण रोॅ पिंडदान कार्यक्रम लेली हमरा सिनी पिंडदान स्थल रोॅ खोज में छेलियै। कैन्हे कि वहाँ भी भारी भीड़ छेलै। कत्ते खोज करला पर काम चलाऊ एकटा आश्रय (जग्घो) मिललै। फेरु पूजा समानो केॅ खरीदी केॅ पिंडदान काज शुरु होलै। यहाँ भी इक्कैस (२१) पिण्डों रोॅ साथ पिंडदान काज पूरा होलै। फेरु है पिंडदान कचरा कॉ नदी में कचरा पात्र में भसैला रोॅ बाद हाथ-पैर धोय रोॅ वक्ती यहाँ मेला प्राधिकरण समिति या जिला प्रशासन रोॅ तरफ सें है व्यवस्था देखैला मिललै कि तीर्थ यात्रियों रोॅ मदती लेली नदी रोॅ किनारे आठ-दस रोॅ संख्या में पानी रोॅ झरना लागलोॅ छेलै, जेकरा से यात्री केॅ कॉफी सुविधा छेलै। मतलब प्रशासन यहाँ खाड़ोॅ छेलै। है सिनी काज करतें-करते, दिन रोॅ बारह बजी गेलो रहै। पंडित जी रोॅ साथें हमरा सिनी भी भूखो-प्यासोॅ से व्याकुल छेलियै। पंडित जी रोॅ द्वारा आवेॅ है घोषणा होलै कि आयको कार्यक्रम खतम होलै। आवेॅ आगु रोॅ पिंडदान काज काल भोरैय सें शुरु होते। फेरु हमरा सिनी मंदिर सें बाहर निकलै रोॅ रसता में एक-एक ग्लाश लस्सी-शर्बत पीवी को एक वैष्णव होटल में सभै नै भोजन करी कॉ वहा इन्दु निवास आवी कॉ आराम करै लागैलिए. वही क्रम में आगु रोॅ कार्यक्रम बनलै। तय है होलै कि कल पिंडदान रोॅ स्थान शहर सें दूर-दूर रहला रोॅ कारण एक गाड़ी रोॅ ज़रूरत छै, जेकरा सें हमरा सिनी कॉ कठिनाई नै हुवै। बातों ठीक्के छेलै। पंडित जी कॉ कहलो गेलै कि आपने काल भोरै ही यहाँ आवी जैभे हमरा सिनी एक गाड़ी रिजर्व करी लेवै।

संध्या बेरा में हमरा सिनी विष्णुपाद मंदिर घुमै लेली निकल्लीयै। वहॉ जाय कॉ देखलियै कि है मंदिर कारो रं पत्थर रोॅ बनलोॅ एक विशाल मंदिर छेकै, जेकरो निर्माण महारानी अहल्या बाई ने सन् १७८ॉ ई॰ में करैने छेलै। हेकरो पहिलो रोॅ मंदिर ईंटो रोॅ बनलो छेलै। मंदिर रोॅ उपरला भाग गुंबजाकार छै, जे देखै में खुब्बे सुंदर लागै छै। मंदिर रोॅ भीतर भगवान विष्णु रोॅ चरणपाद रोॅ चिह्न छै। विष्णुपद मंदिर रोॅ कुच्छू दूरी पर पूरब तरफें फल्गु नदी रोॅ किनारे गदाधर भगवान रोॅ मंदिर छै जेकरा में गदाधर भगवान रोॅ चतुर्भुज मूर्ति छै। विष्णुपद मंदिर सें दक्षिण भाग में गया सिर स्थान छै। हुनको बरंदा में एक छोटोॅ कुंड छै। गया सिर से पछिये एक घेरा में गया कूप छै। यहाँ भी पिंडयात्री पिंड दान करै छै। लागै छै यहा गया सिर रोॅ नामों परगया शहर रोॅ नाम पड़लो होतै। शास्त्रो रोॅ अनुसार गया रोॅ समूचा भाग ही तीर्थ क्षेत्र छै। यहाँ सभ्भे तीर्थांे रोॅ सान्निध्य छै। ये लेली गया क्षेत्र सबसें उत्तम छै। यही बीचो में हमरा सिनी कालको लेली एकटा सुमो गाड़ी भी रिजर्व करलियै। है रं हमरा सिनी घूमते-घामते रात रोॅ ९ बजे खाना खाय का इन्दु निवास में आवी केॅ आराम करै लागैलिये।

भोरोॅ में नित्य क्रिया सें निवृत हौय का पंडित जी रोॅ इंतजार में रहियै। कुच्छू देरी रोॅ बाद पंडित जी ऐलै। हमरा सिनी भी तैयारे छेलियै। गाड़ी रोॅ आवै लेली है जानलियै कि खुब्बे भीड़ोॅ रोॅ लेली गाड़ी कुच्छू दूरी पर एक मोड़ रोॅ पास खाड़ो छै। हमरा सिनी पंडित जी रोॅ साथे पैदल चली केॅ गाड़ी में बैठलियै। यात्र भोर रोॅ करीब सात बजे शुरू होलै। रात्रि में यहाँ खुब्बे वर्षा रोॅ चलते रसता कीचड़ मय छेलै। मतुर मौसम खुशनुमा रहै। सभ्भै सें पहिनै हमरा सिनी शहरोॅ सें करीब सात-आठ किलोमीटर दूर 'प्रेतशिला' पहुँचलियै। जिला प्रशासन ने गाड़ी रोॅ च्ंतापदह क्षेत्र प्रेत शिला सें लगभग आधो किलोमीटर पहिने ही करने छेलै। हमरा सिनी गाड़ी से उतरी केॅ गाड़ी नं॰ आरो ड्राइवर रोॅ नाम, मोबाइल नं॰ रोॅ साथ नोट करी कॉ रसता में ज़रूरी पूजा-समान खरीदी केॅ प्रेतशिला स्थान ऐलियै। प्रेतशिला रोॅ बीच में पक्का सें बनलो एक ठो बड़का प्रेत सरोवर छै।

जेकरोॅ चारो ओर पिंडदान करैलो जाय छै। प्रेत सरोवर रोॅ बगलोॅ में एक प्रेत पर्वत छै जेकरा पर तीर्थ यात्री पिंडदान रोॅ बाद पिंड हाथो में लैके, वहा प्रेत पर्वत पर चढ़ी केॅ पिंड विसर्जित करै छै। प्रेत पर्वत रोॅ ऊपर एकठो शिव मंदिर दै। हौ आसपास रोॅ क्षेत्र कॉ लोग ब्रह्म-कुंड भीे कहै छै। है पहाड़ पर चढ़ै लेली सीढ़ी बनलो छै जेकरो कुल संख्या ६७६ छै। जे तीर्थ यात्री पर्वत पर नै चढ़ैला सकै छै, हुनको लेली पिंडदान रोॅ बाद नीचे ही पिंड विसर्जित करै लेली कुच्छू मुद्रा खर्च करी केेॅ काम बनी जाय छै। मतुर प्रेत-पर्वत पर वृद्ध, कमजोर आरोॅ लाचार तीर्थयात्री लेली कहार, खटोली रोॅ भी व्यवस्था छै। आपनोॅ आर्थिक हैसियत रोॅ बुत्ता पर हेकरोॅ उपयोग भी लोगें करै छै। प्रेत सरोवर रोॅ जोॅल काफी प्रदूषित छै, मतुर यही सरोवर रोॅ जलोॅ से ही तीर्थयात्री पिंड बनाय छै।

हमरा सिनी आवे एक स्थान पर बैठी कॉ पिंडदान लेली तैयार होलियै। प्रेत सरोवर सें वहा प्रदूषित जोॅल लैके पिंड बनैलियै आरो पंडित जी ने विधि-विधान से पिंडदान करैलकै। यहाँ पिण्डो रो संख्या इक्कीस (२१) छेलै। चूंकि हमरा सिनी पिंड दाता तीन ही छेलियै, यै लेली पंडित जी खुब्बे विधि-विधान सें कर्म कराय रहलो छेलै। मतुर बगल में एक्के पंडितो द्वारा पच्चीस-तीस तीर्थ यात्रियों से लैके अस्सी-नब्बे तांय कॉ पिंडदान करैते देखलियै। हेकरा सें पंडित जी रोॅ आमदनी ते बढ़ी जाय छै मतरकि पिंडदान रोॅ विधि-विधान पीछू छूटी जाय छै। खैर है तॉ आपनोॅ-आपनोॅ सोच छेकै। पिंडदान रोॅबाद फोटो खीचै वाला से फोटो भी अतीत लेली खिचवैलिये। आवेॅ पिंड कचरा कॉ विसर्जित लेली पंडित जी सें दिशा निर्देश पूछलियै। यै पर पंडित जी साफ-साफ बोललै-"प्रेत-पर्वत पर चढ़ना या नै चढ़ना आपने का शारीरिक मजबूती, हौंसला आरो आपने का आर्थिक शक्ति पर निर्भर करै छै। आपने अगर सभ्भे सीढ़ी नै चढ़ै ला पारै छियै तेॅ 'जत्ते शक्ति वेत्ते भक्ति' राह अपनाय कै दस-बीस सीढ़ी चढ़ी केॅ ही प्रेत-पर्वत कॉ प्रणाम करी केॅ हौ पिंड कचरा कॉ विसर्जित करै सकै छियै।" यहाँ यहा ही होलै।

आवे हमरा सिनी प्रेत-पर्वत से निकली केॅ राम शिला पर ऐलियै। हर ओर च्ंतापदह रोॅ व्यवस्था नीको नै छेलै। प्रेत शिला से राम शिला रोॅ दूरी (वापसी पर) लगभग तीन चार किलोमीटर छै। किंवदंती छै कि भगवान राम जी रोॅ द्वारा आपनो पूर्वजोॅ केॅ पिंडदान रोॅ लेली ही है जगह रोॅ नाम रामशिला पड़लै। है शिला यानी पहाड़ोॅ रोॅ क्षेत्र विस्तृत भागोॅ में फैलले छै। यहाँ भी भक्त पक्की सीढ़ी से हौ पहाड़ी पर चढ़ै छै। है रामशिला पहाड़ी पर सीढ़ी रोॅ संख्या ४८४ (चार सौ चौरासी) छै। रामशिला पहाड़ी रोॅ नीचू रामकुंड नामक एक सरोवर छै। हेकरो भी जोॅल प्रदूषित छै मतुर वहा जोॅल से ही पिंड बनैलो जाय छै। सरोवर रोॅ दक्षिण एक ठो शिव मंदिर छै। राम शिला में सड़क सें लगभग बीस पक्की सीढ़ी ऊपर एक राम मंदिर छै। मंदिर प्रांगण रोॅ चारों ओर पिंड दान रोॅ कर्म पूरा होय छै। पंडित जी रोॅ कहला पर एक-दो विस्तृत पीपल रोॅ आंशिक छावो में पिंडदान काज शुरू होलै। सरोवर रोॅ जलोॅ से पिंड बनैलो गेलै। यहाँ पर पिण्डो रोॅ संख्या ३ॉ तीस छेलै। यहाँ भी संकल्पों रोॅ साथ सभ्भे पिण्डोॅ केॅ विधि-विधान से पिंडदान संपन्न होलै। पिंडदान रोॅ बाद पिंड कचरा कॉ विसर्जित करी कॉ हाथ-पैर धोय कॉ आवे रामशिला सें लगभग दू सौ गज दख्खिने एक ठो घेरा रोॅ निकट एक बड़ो वटवृक्ष रोॅ गाछ छै। है स्थान काकबलि कहलाय छै। काक बलि रोॅ घेरा में यम बलि आरोॅ श्वान बलि रोॅ स्थान छै। यहाँ पर भी पिंडदान काज होय छै।

आवे हमरा सिनी पंडित जी रोॅ साथे काक बलि मंडप में ऐलियै। समूचा मंडप स्थल धुँवा आरोॅ पिंडदान कचरा से भरलो छेलै। झाड़ू लगाय वाला मजदूर रोॅ खोज होय रहलो छेलै। मंडप में हर जगह अफरा-तफरी रोॅ माहौल छेलै। हमरा सिनी एक स्थान कॉ साफ कराय कॉ पिंडदान लेली बैठलियै। पिंडदान पात्र में पिंड समान लैके पिंड तैयार करलियै। यहाँ पर पिण्डोॅ रोॅ संख्या बियालिस छेलै। फेरु विधि-विधान सें पिंडदान काज संपन्न होलै। पिंडदान काज पूरा करी कॉ सब पिंडदान कचरा का वाही एक विसर्जित कुण्ड में मूल्य रोॅ साथ विसर्जित करलियै।

आवे पिंडदान रोॅ अगला कार्यक्रम अक्षय वट मंदिर छै। हमरा सिनी वही गाड़ी सें अक्षयवट प्रांगण ऐलियै। वहाँ पंडित जी रोॅ द्वारा मालूम होलै कि है स्थानों पर खोआ (खुआ) रोॅ ही पिंडदान होय छै। याँही पर खोआ रोॅ दोकान से खुवा रोॅ खरीद होलै। अक्षय वट मंदिर में भी भारी भीड़ जमा छेलै। जेकरा चलतें खाली जग्घा खोजै में खुब्बे परेशानी होलै। मतुर एकटा खाली जग्घा मिललै। हो जग्घा केॅ साफ-सुथरा बनाय केॅ बैठे योग्य करलो गेलै।

अक्षयवट रोॅ लेली शास्त्रा में वर्णन छै कि है स्थान सौंसे विश्व में अलौकिक छै। यहाँ पितरो कॉ पिंडदान देला पर पितर रोॅ आत्मा एतना तृप्त होय छै कि पितर रोॅ अनुकंपा सें पिंडदानियों कॉ सुख-ऐश्वर्य रोॅ प्राप्ति होय छै। अक्षयवट रोॅ एकटा आरोॅ है विशेषता बतलैलो गेलै कि पिंडदान रोॅ बाद एकटा लाल कपड़ा सें बनलो एक फीतानुमाँ आकृति कॉ अक्षयवट (पीपल रोॅ विशाल वृक्ष) रोॅ डारी में शुद्ध मोॅन से बाँधला सें कोनों भी इच्छा कॉ स्मरण करला सेॅ हौ इच्छा ज़रूरे पूरा होय छै, एन्हो विश्वास छै। आवे हौ खुवा रोॅ बियालिस पिंड बनाय कॉ हर पिंड रोॅ विधि-विधान सें पूजा पिंडदान रोॅ करैलो गेलै। यही क्रम में हमरा सबसे भी लाल फीता कॉ अक्षयवट रोॅ डारी सें बँध वैलके. पिंडदान रोॅ बाद हौ सब पिंड कचरा कॉ वॉही पिंडदान कुण्ड में विसर्जित करतें-करतें दोपहर रोॅ तीन बजी गेलो रहै। भूख आरोॅ धूपोॅ रोॅ ताप सें मोॅन व्याकुल छेलै। आवे हमरा सिनी एक टा वैष्णव होटल में खाना खैलियै। यहाँ एक बात रोॅ जिक्र करना सामयिक ही हौते कि पिंडदान काल में कत्ते सिनी तीर्थ यात्री स्वेच्छा से अरबा भोजन भी खाय छै।

आवे हमरा सिनी बोध गया में बोधि मंदिर भगवान बुद्ध (गौतम बुद्ध) रोॅ दर्शन लेली चललियै। गया सें बोध गया रोॅ दूरी लगभग सात-आठ किलोमीटर छै। यॉही भगवान बुद्ध रोॅ विशाल विश्व प्रसिद्ध मंदिर छै। है मंदिर में एक विशाल बुद्ध रोॅ प्रतिमा छै। मंदिर रोॅ पीछू पत्थर रोॅ एक चबूतरा छै जेकरा बौद्ध सिंहासन कहै छै। यही सिंहासन पर भगवान बुद्ध बैठी केॅ घोर तपस्या करने छेलै, जेकरा सें यही बोधि वृक्ष रोॅ नीचू हुनका आत्मज्ञान मिललो छेलै। हौ बोधि वृक्ष तॉ आवे नै छै मतरकि वॉही पर एक टा नया पीपल रोॅ विशाल वृक्ष लगैलो गेलो छै जेकरोॅ विशाल प्रांगण में हौ वृक्षों रोॅ नीचु आइयो भी कत्ते नी बौद्ध भिक्षुक ध्यानों में मोक्ष लेली आरोॅ विश्व कल्याण रोॅ आशा में प्रार्थनारत छै। वास्तव में है प्रांगण में शान्ति आरोॅ विश्वास रोॅ अकूत खजाना बिखरलो पड़लो छै। पिण्डदान यात्री भी वहाँ गेला पर ध्यान लगाय केॅ हौ शान्ति कॉ महसूस करैला सकै छै। हमरा सिनी भी वहाँ कुच्छू देर ही सही बैठी कॉ जीवन रोॅ यादगार पोेॅल जीने छियै। यहाँ एक बात रोॅ जिक्र करना खुब्बे ज़रूरी है छै कि कुच्छू महिना पहिने कुच्छू आताताइयों रोॅ द्वारा श्रृंखलित बम विस्फोट रोॅ लेली हेकरो प्रवेश द्वारी पर सुरक्षा रोॅ व्यापक सरनजाम करलो गेलो छै, जेकरा सें तीर्थ यात्री का कुच्छू परेशानियों रोॅ सामना करैला पडै़ छै। खास करी कॉ समानों रोॅ साथे मोबाइल कॉ जमा करी कॉ फेरु प्राप्त करै में समुचित सरल प्रबंध नै छै। खैर कोनो भी महान दर्शन में परेशानी तेॅ धु्रव सत्य छै।

आवे बौद्ध गया रोॅ दर्शन सें लौटी कॉ बाजारोॅ सें घरोॅ लेली प्रसाद किनी कॉ आपनोॅ इन्दु निवास पर शाम होते-होते आवी गेलियै। आवे घरोॅ रोॅ वापसी में यहाँ से रात मेंकोनों गाड़ी नै छेलै, आरो अगला दिन बारह बजे दोपहर में गया-हावड़ा एक्सप्रेस जानी कॉ रात वॉही रहै रोॅ कार्यक्रम बनलै। भोरोॅ में नित्य क्रिया सें निवृत होय केॅ पंडा जी सें विदाई रोॅ वक्ती हुनको आशीर्वाद रोॅ साथ प्रसाद लैके पंडा जी रोॅ आग्रह पर कुच्छू मात्र में अन्नदान (चावल) रोॅ वादा करी कॉ हुनका से मुक्ति पैलां। कुच्छू देरी रोॅ बाद भोजन करी कॉ एक टा ऑटो रिक्शा रिजर्व लै कॉ हमरा सिनी स्टेशन ऐलियै। वापसी में हमरा सिनी रोॅ जत्था कुच्छू बढ़ी गेलो रहै। फेरु टिकट कटाय कॉ गाड़ी रोॅ इंतजार करेॅ लागलियै। गाड़ी सही समय पर ऐलै। हमरा सभ्भै के सबके साथ आराम से सीटोॅ भी मिली गेलै। हमरा साथे इलाका केॅ ही कत्ते सह यात्री रहै, जेकरा से सफर में कोनोॅ बोरियत रोॅ एहसास नै होलै। हमरा साथे श्री जनार्दन उपाध्याय, श्रीनगर पीरपैंती, श्री राम इकबाल दूबे (हिन्दु-मुसलिम एकता प्रतीक) , साहेबगंज तलबन्ना, श्री सत्यनारायण पांडेय जगदीशपुर, भागलपुर आदि छेलै। खास करी कॉ श्री दूबे जी बेसी वाकपटु छेलै। हुनी आपनोॅ जीवन रोॅ कत्ते नी घटना रोॅ जीवंत वर्णन करी कॉ वापसी यात्र कॉ यादगार बनाय देलकै। गया जी जावै वक्ती हम्मे जत्ते एकाकी छेलियै, वापसी में उतनै समूह पूर्ण छेलियै। ट्रेन शाम सात बजे भागलपुर जंक्शन में पहुँचलै। सभ्भे सह यात्री सें विदाई लैके भरलो मनोॅ से गाड़ी से उतरलियै। चूंकि हम्मे एक नया घोॅर यॉही अलीगंज, शैलबाग मोहल्ला में बनैने छियै, जहाँ हौ घरोॅ में एखनी हमरोॅ पोता नवनीत निशांत (सन्नी) आपनोॅ गाँव ओड़हारा बाँका रोॅ ही दू दोस्त श्री अमन कुमार मिश्र आरोॅ श्री राहुल कुमार मिश्र (प्रिंस) रोॅ साथे पढ़ी रहलो छै। हम्मे दोनों वाही जाय केॅ रात बितैलियै। भोरों में गंगा नहाय के दिन रोॅ एक बजे तक गाड़ी सें आपनो गाँव पहुँची गेलियै।

मतुर एखनी तॉय यात्र रोॅ एकटा खास काज बचले छेलै। हौ काज है छेलै कि घोॅर वापसी रोॅ कुच्छू दिनोॅ रोॅ अंदर ही भंडारा करै ला लागै छै। कैन्हे कि है पिंडदान रोॅ बाद यात्री विधि-विधान सें श्री सत्यनारायण भगवान रोॅ पूजा-अर्चना रोॅ बाद आपनो हैसियत सें ब्राह्मण भोजन कराय छै। पंडित जी केॅ विधिवत दक्षिणा रोॅ बाद आरोॅ गया जी रोॅ प्रसाद वितरण करलॉ पर ही यात्र पूरा मानलोॅ जाय छै। यहाँ भी यहॉ होलै। ई तरह सें पिंडदान यात्र खट्टा-मीठोॅ अनुभवो से पूरा होलै। पिंडदान लेली कम से दू दिन आरोॅ बेसी सें बेसी आपनोॅ हैसियत से चार-पाँच दिन भी लागै पारे छै।