पिता-पुत्र रिश्तों पर कुछ विचार / जयप्रकाश चौकसे

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पिता-पुत्र रिश्तों पर कुछ विचार
प्रकाशन तिथि : 15 जून 2019


कल अंतरराष्ट्रीय पिता दिवस मनाया जाएगा। विगत कुछ वर्षों से माता दिवस, प्रेम दिवस, मित्र दिवस इत्यादि मनाए जाते हैं, जबकि सम्मान और स्नेह बारहमासी हैं। इन उत्सवों पर कार्ड्स का व्यापार लाभ कमाता है। अत: शंका है कि ये सब उनके द्वारा प्रायोजित है। बहरहाल पिता-पुत्र रिश्तों पर अनेक फिल्में बनी हैं। हाल ही में प्रदर्शित सलमान खान अभिनीत 'भारत' की प्रेरणा भी कोरिया की फिल्म 'ओड टू माई फादर' है। श्रवण गर्ग ने भी पिता नामक लंबी कविता लिखी है। भारत को स्वतंत्रता प्राप्त होने के समय ही रमेश सहगल की दिलीप कुमार अभिनीत 'शहीद' का प्रदर्शन हुआ था। पृष्ठभूमि स्वतंत्रता संग्राम का समय है। पिता अंग्रेज परस्त हैं और उन्हें 'सर' की उपाधि मिलने वाली है। पुत्र क्रांतिकारी है और स्वतंत्रता के लिए सशक्त क्रांति का हामी है। पुत्र गिरफ्तार हो जाता है और पिता सरकारी नौकरी तथा 'सर' के सम्मान को तज कर अपने पुत्र का मुकदमा लड़ता है। इसी फिल्म के मोहम्मद रफी द्वारा गाए गीत 'वतन की राह में वतन के नौजवान शहीद हों' से रफी को पार्श्व गायन में पहली बड़ी सफलता मिली थी। ज्ञातव्य है कि रमेश सहगल पृथ्वी थिएटर की लेखक टीम के सदस्य थे।

ख्वाजा अहमद अब्बास की लिखी राज कपूर की 'आवारा' भी पिता-पुत्र संघर्ष की कथा है। पृथ्वीराज कपूर पढ़े-लिखे क्रांतिकारी विचारों के व्यक्ति हैं। उन्होंने एक विधवा से विवाह किया है परंतु उनके अवचेतन में यह गलत धारणा गहरी पैठी हुई है कि अच्छे व्यक्ति का बेटा अच्छा और बुरे का बेटा बुरा ही होता है। उन्होंने जज रघुनाथ का पात्र अभिनीत किया है और उनके द्वारा एक डाकू के बेटे को डाकू करार दिए जाने और दंडित कराने के कारण ही वह व्यक्ति सजा काटने के बाद जज के बेटे को अपराध के रास्ते पर खींच लाता है। इसी फिल्म के कुछ संवाद थोड़े से परिवर्तन के साथ के. आसिफ की मुगल-ए-आजम में दोहराए गए हैं और यह फिल्म भी पिता-पुत्र संघर्ष की कथा है।

के. भाग्यराज की अमिताभ बच्चन और श्रीदेवी अभिनीत फिल्म 'आखिरी रास्ता' में पुत्र पुलिस अफसर है और पिता कातिल है। पुत्र यह नहीं जानता कि उसकी मां के साथ बलात्कार हुआ था और उसका पिता चार दोषियों को एक के बाद एक मार रहा है। इस फिल्म में पुत्र और पिता के कुछ दृश्य अविस्मरणीय है। मसलन मां की पुण्यतिथि पर पिता उसकी कब्र पर फूल चढ़ाने आया है। पुत्र भी वहां पहुंचता है। दोनों मिलकर मृतात्मा के लिए प्रार्थना करते हैं। वह क्रिश्चियन पात्र हैं। अमिताभ बच्चन ने इस फिल्म में पिता-पुत्र को दोहरी भूमिकाएं अभिनीत की हैं और उनके श्रेष्ठ अभिनय में शुमार है। ज्ञातव्य है कि अमिताभ अपने पिता हरिवंश की पूजा करते रहे हैं। सलीम जावेद की लिखी पहली फिल्म में अपने पिता की हत्या का बदला लेता है पुत्र और आखिरी फिल्म 'शक्ति' में पिता पुलिस अफसर है और बेटा अपराधी। बचपन में पुत्र को अपराधियों ने अगवा किया था और वह पिता पर दबाव डाल रहे थे कि उनके गिरफ्तार साथियों को छोड़ दें अन्यथा वे उसके पुत्र को मार देंगे। कर्तव्यनिष्ठ पिता जवाब देता है कि वह अपराधियों को नहीं छोड़ेगा। यह बात अपहरण किया गया बेटा जान जाता है और उसी क्षण से अपने पिता से घृणा करते हुए अपराध के रास्ते पर चल पड़ता है। अंतिम दृश्य में अपने ही पिता की गोली से जख्मी होता है और पिता उसे अपनी गोद में लिए कहते हैं कि वे हमेशा उससे प्यार करते थे तथा अपहरणकर्ता का ठिकाना जान चुके थे। इस छोटी सी गलतफहमी के कारण पुत्र पिता से नफरत करता रहा। फिल्म उद्योग में राज कपूर अपनी सारी फिल्मों द्वारा अपने पिता को प्रभावित करने की चेष्टा करते रहे। उन्होंने अपने पिता के सामने कभी शराब नहीं पी। नरगिस से अलगाव के बाद वे शराब पीते रहे और सारा कामकाज भी बंद कर दिया।

पृथ्वीराज उन्हें मिलने गए और उनके एक वाक्य ने राज कपूर को गम की गहरी खाईं से बाहर निकालकर फिल्में बनाते रहने की प्रेरणा दी। वह वाक्य था 'बड़ा भाग्यवान होता है वह पिता जो बेटों के कंधों पर जाता है और सबसे अभागा है वह पिता जिसे अपने पुत्र की अर्थी उठाना होती है। सलीम खान के तीनों पुत्र उनका सम्मान करते हैं और आज भी अपनी सारी आय उन्हें सौंपते हैं। आज भी वे जेब खर्च अपने पिता से ही लेते हैं। जावेद अख्तर को उनका पुत्र फरहान अख्तर सम्मान देता है परंतु सलीम खान के पुत्रों की तरह अपने पिता के सामने बिछ नहीं जाता। जहां सलीम खान और उनके पुत्रों के रिश्ते में पारंपरिकता है, वहीं जावेद और फरहान के रिश्ते में आधुनिकता है। डेविड धवन का सितारा पुत्र भी अपने पिता का सम्मान करता है। इतना ही नहीं वह अपने ताऊ अनिल धवन के परिवार का उत्तर दायित्व भी वहन करता है। रूसी लेखक इवान तुर्गनेव ने भी पिता-पुत्र कथा लिखी है। मध्य युग में आर्थिक अभाव के कारण जापान में पुत्र वृद्ध पिता को अपनी पीठ पर लादकर पहाड़ पर मरने के लिए छोड़ देता था। इस विषय पर जापान में फिल्म बनी है। श्रवण गर्ग की कविता 'वह जो पहाड़ खड़ा किया था तुमने पत्थर के टुकड़ों को अपनी लगातार जख्मी होती पीठ पर ढो-ढो कर, आज भी वैसा ही खड़ा है। ऐसा होता ही है हर युग में, हर पुत्र ढूंढता रहता पिता को अपने जीवन भर और पाता है अंत में अपने पत्र में' उपनिषद में लिखा है कि पिता-पुत्र का रिश्ता जैसे तीर कमान का रिश्ता। पिता रूपी कमान पर पुत्र रूपी तीर सही तनाव होने पर ही जीवन के निशाने पर लगता है।