पीटर का सपना / सुकेश साहनी

Gadya Kosh से
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धर्मपाल जी का ध्यान भंग हुआ। अगली पंक्ति में बैठे बच्चे बातें कर रहे थे।

"रमन!" उन्होंने टोका, "मैं पढ़ा रहा हूँ और तुम लोग आपस में बातें कर रहे हो।"

"श्रीमान जी," रमन ने खड़े होते हुए कहा, "मैं बातें नहीं कर रहा था। यह पीटर ही अपने सपने के बारे में बता रहा था।"

कक्षा में सभी बच्चे हँसने लगे।

धर्मपाल जी ने सबको चुप कराया। फिर स्नेह भर स्वर में बोले, "पीटर, तुम तो बहुत अच्छे लड़के हो। तुम्हारा मन पढ़ाई में क्यों नहीं लग रहा?" इस पर पीटर ने कुछ नहीं कहा। सिर झुकाए खड़ा रहा।

धर्मपाल जी निर्मेष दृष्टि से पीटर की ओर देखते रहे और फिर उसके निकट आकर बोेले, "रमन ने बताया कि तुम किसी सपने के बारे में बता रहे थे। हम लोग भी तुम्हारे सपने के बारे में जानना चाहते हैं। हमें नहीं बताओगे? डरो नहीं...पूरी कक्षा को अपने सपने के बारे में बताओ."

पीटर थोड़ी देर चुपचाप खड़ा रहा। फिर उसने धीरे-धीरे कहना शुरू किया, "मैं चटाई पर बैठा लिख रहा था, तभी बूढ़ा आदमी कमरे में आया। उसके कमरे में आते ही तेज रोशनी फैेेल गई. वह बहुत प्यार भरी नजरों से मेेरी ओर देख रहा था। इसीलिए मुझे डर भी लग रहा था।"

"पीटर माँगो जो चाहे माँगो..." उसने मुझसे कहा। मेरी समझ में नहीं आ रहा था। कि क्या माँगू।

"मैं खूब घूमना चाहता हूँ...दूर-दूर तक, पर्वतों के उस पार तक, समुद्र के छोर तक," मैंने उससे कहा।

बूढ़े ने अपनी उजली दाढ़ी पर हाथ फेरते हुए कहा, "यह कौन-सी बड़ी बात है...ये लो!" मुस्कुराते हुए उसने अपनी जादू की छड़ी मेरे चारों ओर घुमाई, "अब यह तुम्हारा कहना मानेगी। अब, जब चाहोगे आकाश में उड़ सकोगे।"

मैंने तुम्हारी चटाई पर जादू कर दिया है। जब तुम इसे आदेश दोगे, यह तुम्हें उड़ा ले जाएगी और जब नीचे आना चाहो तुम्हें नीचे ले आएगी, " इतना कहकर बूढ़ा आदमी गाायब हो गया।

उसके चले जाने के बाद मैंने डरते-डरते चटाई से कहा-"मेरी चटाई उड़ चल।" चटाई मुझे बिठाए आकाश में उड़ने लगी। मैं बहुत ऊपर पहुँच गया। नीचे देखने पर सब मकान, सड़कें, पेड़ खेेत-खलिहान खिलोैेनों जैसे छोटे-छोटेे लग रहे थे। मैं उड़ता ही गया। धुनी हुई रुई जैसे बादल मेेरी चटाई के आसपास तैेर रहे थे! ...मुझेे यह दृश्य बहुत मोहक लग रहा था। मैं उड़ते-उड़ते देश की सीमा के पास पहुँच गया। सीमा पर हमारे देश के सैनिक बड़ी मुस्तैदी से पहरा दे रहे थे। जगह-जगह तोपें और टैंक लगे हुए थे। मैंने चटाई को थोड़ा और नीचे उतरने का आदेश दिया। अब मेरे देश के सैनिक मेरी ओर देखकर हँस रहे थे और हाथ हिलाकर मेरा अभिवादन स्वीकार कर रहे थे।

एकाएक मेरी इच्छा अपने देश से बाहर जाने को हुई. मैंने चटाई कोे आदेश दिया और उड़ चली। मैंने देखा-विदेशी सैनिक मुझे देखते सतर्क हो गए थे। उन में भगदड़ मच गई. एक सैनिक ने निशाना साधकर मेरी ओर गोेली चला दी। गोेेेेली सनसनाती हुई मेरे पास से निकल गई. मैं बाल-बाल बचा। फिर और गोलियाँ भी मेरे पास से निकलती हुई चली गई. पहली बार मुझे डर लगा। मेरे देश के सैनिक मुझे बचाने के लिए पूरा जवाबी कार्यवाही करने लगे थे। तभी मेरी आंँख खुल गई. जागने पर पूरा का पूरा सपना मुझे याद था। मैं बहुत देर तक सपने के बारे मंे सोचता रहा। इसी तरह का सपना आज मुझे फिर दिखाई दिया। इसी के विषय मंे मैं रमन को बता रहा था। "

कक्षा में सन्नाटा छा गया। छात्र पीटर के सपने के प्रभाव से अभी तक मुक्त नहीं हो पाए थे। धर्मपाल जी के अधरों पर मुस्कान बिखरी थी।

"तुम्हें नींद टूटने पर कैसा लगा?" उन्हांेने पीटर से पूछा।

"श्रीमान जी, मुझे अच्छा लगा," सुनील ने झिझकते हुए कहा, "मेरे मन में आया-काश, यह सपना सच होेता!"

"बच्चों!" धर्मपाल जी ने सम्बोधित किया, "पीटर ने अपने सपने के बारे में हम सबको बहुत ही रोचक ढ़ग से बताया है। पीटर का यह कहना कि नींद टूटने पर उसे अच्छा नहीं लगा, हमें उसकी अभिरुचि के बारे में बताता है," फिर उन्होंने थोड़ा रुककर कहा, "सपने केवल सपने ही नहीं होते, उन्हें साकार भी किया जा सकता है। तुम्हारी रुचि वायु सेना में प्रतीत होती है। यदि तुम इस दिशा में प्रयास करोगे तो अवश्य सफलता मिलेगी।"

"बच्चों, आज का पाठ कैसा लगा?" धर्मपाल जी ने मुस्कराकर पूछा।

"बहुत अच्छा!" सभी छात्रों ने एक स्वर में कहा।

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