पीड़ा की उम्र / एक्वेरियम / ममता व्यास
पीड़ा कितनी भी गहरी हो उसकी भी एक उम्र होती है। फिर एक दिन वह अपनी उम्र को पूरी कर शापमुक्त हो ही जाती है।
आखिर कोई कब तक दु: ख मनायेगा? कब तक आंसुओं से समन्दर बनाएगा। हिचकी और सिसकी भी कब तलक रुदन के साथ ताल मिलाएगी। कब तक सांसें गले में घुटेंगीं, कब तक दिल अहसासों के पहाड़ों के नीचे दबा हुआ कराहता रहेगा और कब तक सीना अपने हरे जख्मों के सूख जाने की दुआ मांगता फिरेगा? कब तक उम्मीद के दीये में अहसासों के तेल में डूबी बाती जलेगी, एक दिन उसे भी खत्म होना ही होता है। हर चीज एक दिन खत्म हो ही जाती है। सही कहा था तुमने उस दिन। उस वक्त बड़ा विरोध किया था मैंने तुम्हारी इस बात का, दु: ख भी मनाया था। उस वक्त लगता था जैसे...जैसे...जैसे सब कुछ हमारे हाथों में होता है, खत्म करना या बनाये रखना। लेकिन आज समझ आता है कि हर वह चीज जो शुरू होती है उसे एक दिन समाप्त होना ही होता है और देखो हो गयी न।