पीढ़ियों का अन्तराल / मनीषा कुलश्रेष्ठ
“मम्मी आप तो एक ऑर्थोडॉक्स हाउजवाईफ रही हो जिन्दगी भर, हाउ कैन यू अण्डरस्टेण्ड अस? यू नो इट इज बेसिकली जेनरेशन गॅप! ”
जानती थी सुनना होगा एक दिन यही। शायद यही सही वक्त था,अपनी जिन्दगी खोल कर उनके सामने रख देने का। क्यों रही मैं महज एक हाउसवाईफ ? बस एक गर्व को जिन्दा रखने के लिये। हाँ गर्व ही तो दो बेटियों की माँ होने का गौरव, कहीं सर न झुकाने की जिद,ऐमीनोसिन्टेसिस न कराने की जिद, लडक़े की चाह में तीसरा बच्चा पैदा न करने की जिद। और मैं ऑर्थोडॉक्स !
मेरी बडी बेटी मानसी अपने पापा की बेटी रही है हमेशा से। उन्होंने उसे गढा और उसे आई ए एस बनने के लिये न केवल प्रेरित किया वरन उसे बना कर ही माने।
रूपसी मेरे निकट रही, अपने पिता जैसे गढन के बावजूद उसके अन्दर सारी असामानताएं मेरी हैं। गज़ब की तो जिद्दी है। विद्रोहिणी, तेज-तर्रार, डिबेट्स में हमेशा पहला ही स्थान पाती रही है।
और मैं मैंने तो बच्चों के बडे होने के साथ-साथ अपनी सारी सतहें साध ली थीं और एक माँ पत्नि होकर रह गई थी, यही थी कीमत बहुत जिद्दी होने की।
मानसी सैटल्ड है, आई ए एस है और अपने ही एक बैचमेट शाश्वत के साथ उसने जीवन बिताने का निर्णय ले लिया है। शाश्वत और उसके माता-पिता से मिलकर किसी को भी मानसी के इस निर्णय पर किसी को आपत्ति न थी बल्कि मैं तो निश्चिंत थी। चिराग लेकर ढूंढती तो भी कहाँ पाती अपनी मानसी के लिये इतना समझदार दूल्हा? मानसी में सदैव से ठहराव था, सही गलत चुनने की क्षमता थी। आजकल आई हुई है छुट्टियाँ लेकर दरअसल घबरा कर मैंने ही बुलाया था उसे।
रूपसी की वजह से। उसके निर्णय हमेशा मुझे ठीक नहीं लगते। एक तो मेरे और अनिरूध्द की इच्छा के विपरीत दिल्ली में एक मल्टीनेशनल में काम कर रही है और अकेले एक फ्लैट लेकर रहती है। अब एक प्रोजेक्ट पर चार साल के लिये यू एस ए जाने की जिद। कहती र्है -
“लडक़ा होता तो खुशी से भेज देती ना? जब पाला है सारे भेद भाव भुला कर तो अब क्यों डरती हो? “
मैं ने कहा था, “लडक़े की तरह पाला है तो अपनी जिम्मेदारी से क्यों भाग रही हो, हमें इस उम्र में अकेला छोड क़र। ”
“हाय मम्मा, बस अब तो मेरी ये भी मुश्किल आसान हो गई, मैं खुद कहना चाहती थी कि आप दोनों मेरे साथ चलो और अब फाईनल ! आप दोनों मेरे साथ चल रहे हो। या पापा के रिटायरमेण्ट तक के लिये रूकना बेकार है बस चलो आप लम्बी छुट्टी लेकर। ” निरूत्तर कर दिया उसने।
अनिकेत और मुझे कभी बडे शहर तक तो रास नहीं आए, हमारी नब्ज तो छोटे आरामदेह शहरों के साथ ही धडक़ती रही है। छोटे शहरों के बडे ख़ुले अहातों वाले सरकारी घर, फुलवारियाँ, साथ बिताने को पर्याप्त खाली समय, परिवार में होने का आनंद, यही तो हमारी प्राथमिकताएं थीं। अपना घर भी हमने एक मध्यम श्रेणी के शहर में, खुले से अहाते वाला बनवाया है। बस अब दो साल बाद अनिकेत रिटायर होने वाले हैं। अब फुरसतों के दिन आए हैं तो कैसे अजनबी देश जा बसें?
मानसी व्यस्त तो है, पर उसमें हमारे जीवन मूल्य धडक़ते हैं। रूपसी वक्त की रफ्तार को भी पीछे छोड देना चाहती है। अनिकेत चाह कर भी अपनी अनिच्छा रूपसी पर थोपना नहीं चाहते, यही बात मुझे अखर रही है, उनकी बात टालने का साहस दोनों में से किसी को नहीं है। पर वो कभी भी ऐसा करते ही नहीं।
मानसी का कहना है,
“मम्मी पापा अपनी जगह ठीक ही हैं। अब वो बच्ची तो नहीं। चौबीस साल की लडक़ी है। ”
ये भी किचन में मेरे और मानसी के पास आ खडे हुए।
“निम्मी, तुम्हें क्या हो गया है? रूपसी ठीक कहती है ऑर्थोडॉक्स हो गई हो। कभी तुम भी तो वुमन लिब की, आत्मनिर्णय, स्वतन्त्रता की बातें करती थीं। मुझसे भी बहस करती थीं। मंगलवार की पूजा के वक्त सुन्दर काण्ड का वह दोहा भी मेरे मुँह से सुनने पर आपत्ति करती थीं। ”
“ढोर गवाँर शूद्र पशु नारी... ”
तब का वक्त अलग था अनिकेत
“हर पुरानी पीढी यही तो दोहराती है निम्मी। ”
“हूँ ! मैं सोच में पड ग़ई थी। क्या पीढी क़े अन्तराल में आ फंसी हूँ मैं?
रात रूपसी और मानसी के कमरे में ही सोई मैं।
“हाय मम्मा, आपने हमारा कमरा जरा भी नहीं बदला? “मानसी चहकी। रूपसी मुस्कुरा दी।
“मानसी, बेटा”
“हाँ मम्मी? “
“तुम्हारा और शाश्वत का क्या प्लान है? “
“किस बारे में मम्मा ? “
“शादी के बारे में ईडियट, तुम दोनों देर करके मम्मा का ब्लडप्रेशर बढा रहे हो। ये रूपसी थी। ”
“शटअप रूप, मम्मी आप जब चाहें। ”
“जल्दी से ये फॉर्मेलिटी भी पूरी करो, ताकि मुझे जाते ही यू एस ए से वापस आना न पडे। और मम्मी-पापा भी फ्री होकर मेरे साथ जा सकें।”
“मम्मी रूप सच कह रही है? “ मानसी ने रूआँसू होकर पूछा।
“तू भी किसकी बातों में आगई , इसका खुदका जाना ही डाउटफुल है और हम कहीं नहीं जा रहे। ”
“मम्मी शाश्वत की ओर से देर नहीं है। बस हम एक ही कॅडर में आ जाएं इसकी कोशिश कर रहे हैं। चाहो तो दिसम्बर-जनवरी तक। उसके मम्मी पापा भी यही चाहते हैं। आप फोन पर बात कर लेना। ”
मानसी मेरे सिरहाने बैठी थी, रूपसी पेट के बल थोडा सा नाराज हो एक मैगजीन पलट रही थी। अरसे बाद हम तीनों यूँ साथ थे। अनिकेत जानबूझ कर हमारे बीच नहीं आए। वो जानते थे मैं रूप से बात करना चाहती हूँ। और मैं मानसी के बहाने भी अभी तक इस लडक़ी से बात करने की हिम्मत नहीं कर पा रही जानती हूँ बिफर जाऐगी। कैसे भेजदूँ, अनजान देश में, चार साल के लिये। शादी की उमर है, शादी करो फिर कहीं भी जाओ। मैं भी अपनी एक पीढी पुरानी माँ की तरह कबसे सोचने लगी?
“रूपमनु कभी मेरे बारे में जानना चाहोगे? मैं कैसी थी, मेरा केशौर्य,मेरी युवावस्था और महत्वाकांक्षाएं? ”
“हाँ जानते हैं आप एक इमोशनल लडक़ी थीं, आपके मम्मी पापा ने शादी तय की पापा से आपने एक दूसरे को लैटर्स लिखे। आप प्रेम कविता लिखती थीं वो भी हिन्दी में। शादी के बाद हम हुए तो वात्सल्य पर लिखने लगीं। ”
“नहीं रूप किसी स्त्री की बस इतनी सी जिंदगी नहीं हो सकती। सुन तो मम्मी कुछ बताना चाहती हैं हमें। ”
“रूप मैं खाली एक बेवकूफ इमोशनल लडक़ी जरा भी नहीं थी। बहुत जागरूक थी। शादी करना बहुत समय तक मुझे भी बेवकूफी लगता था, पर मैंने बाद में जाना कि यही एक बेस्ट चॉइस थी। जिस स्वतन्त्रता और फाईनेन्शियल इनडिपेन्डेन्स की बात तुम कर रही हो,वो मेरी माँ ने मुझे विरासत में दी थी, अच्छी शिक्षा और स्वतन्त्रता देकर। वो एजुकेशन डिपार्टमेण्ट में डाईरेक्ट्रेस थीं। उन्हें शादी के बाद मेरा घर में खाली बैठना पसंद नहीं था, वे चाहती थीं मैं कुछ न कुछ करूं। उस जमाने में भी मेरी मम्मी ही नहीं ताई, चाची, बहनें सभी ग्रेड वन जॉब्स में थीं, कोई एडमिनिस्ट्रेटिव ऑफिसर, डॉक्टर, लैक्चरर। पूरा माहौल था, आजादी थी मनचाहा कैरियर बनाने की, खूब पढने की। ”
“ट्वैल्थ के बाद से ही हॉस्टल में रही, हम तीनों भाई बहन अपने-अपने आत्म निर्णयों के साथ, अपनी पूरी आत्मचेतनता के साथ बाहर पढते थे। छुट्टियों में साथ रहते। मैं पढने में ठीक ही थी लेकिन पढाई के साथ-साथ सारी गतिविधियाँ, अच्छा साहित्य पढना, स्वयं लिखना,शास्त्रीय नृत्य सीखना साथ साथ चलता था। पर मम्मी ने एक दिन कह दिया कि इन सबसे कैरियर नहीं बनता, सो दीदी के पदचिन्हों पर चलकर साईन्स ली, बी एस सी किया, पी एम टी भी दिया। सलेक्शन नहीं हुआ। फिर शुरू हुई विद्रोह की कहानी, एम एस सी की जगह मैंने हिन्दी साहित्य में एम ए में एडमिशन लिया, जर्नलिज्म के साथ। तब मीडीया सबसे आकर्षक कैरियर लगता था। रेडियो, दूरदर्शन, साहित्य जगत बहुत कम उम्र में अपनी एक पहचान बना ली थी मैं ने। तब जीन्स पहनना छोटे शहरों में टेबू था, मैं पहनती और अकेले यात्राएं करती थी। ”
“झूठ! मैं नहीं मानती , नानी के यहाँ तक तो पापा छोडते या मामा लेने आते थे, हमारे बडे होने के बाद तक। ”
“नहीं रूप झूठ नहीं एक बार पुरूष के कन्धे पर झुक जाओ तो सहारे की आदत सी पड ज़ाती है। उस पर तुम दोनों के साथ मैं कभी रिस्क नहीं लेना चाहती थी। ”
“सच कितने ही अवार्ड मिलते मैं अकेली ही जाती रही, शहर दर शहर। पर बेटा स्त्री की बोल्डनेस को पुरूष ने हमेशा गलत समझा है। पुरूषों के साथ काम करती अपनी जिस माँ की तू कल्पना तक नहीं कर पाती,उसे उसकी जीवन्तता और मजबूती ने बार बार हराया। मीडीया ऐसा क्षेत्र था जहाँ उपर जाने के कई गुप्त रास्ते थे जो मुझे कभी दिखाई नहीं दिये। दो एक बार ऐसे दुष्प्रयास हुए भी, जिन्हें मैंने उपेक्षित किया।”
“मम्मी , इन गंदगियों से तो कोई भी विभाग अछूता नहीं। ये तो आप पर निर्भर करता है कि बचकर निकलो या उसमें लिप्त होकर। मानसी ने कहा। ”
“हाँ बेटे सही कहा तुमने। ”
“रूप थोडा स्तब्ध थी। उसने पूछा तब भी मम्मी ये सब था? “
“हाँ रूप तू जिस तरह खुलकर अपनी मम्मी को अपने ऑफिस की इस तरह की बातें फोन पर बता देती है, वो गुंजाईश मेरे और मेरी व्यस्त वर्किंग मम्मी के बीच कम ही थी। और मैं उन्हें वो सब बता कर अपने पैरों पर कुल्हाडी नहीं मारना चाहती थी। सीधे घर बुलातीं, बी एड करवा कर टीचर बनवा देतीं। तब मुझे टीचर बनने से ठीक वैसी ही चिढ होती थी जैसी तुम्हें कोई ए ग्रेड सरकारी नौकरी की सीमित तनख्वाह से है।”
“क्यों भई रूप ? “ मानसी ने पूछा ।
“हाँ और क्या जितना तुम और शाश्वत कमाते हो उतना मैं अकेले कमा रही हूँ। और महज ग्रेजुएशन और एम बी ए के बाद। इतना पढा भी नहीं मैंने। ”
“हम तेरी तरह सुबह आठ से रात आठ तक काम नहीं करते। जिंदगी को इन्सान बनकर जीते हैं मशीन बनकर नहीं। ”
“अरे यहाँ तो डिबेट शुरू हो गया, मेरी कहानी कौन सुनेगा? “
“हाँ तो मैं बता रही थी मीडिया मेरा स्वप्निल संसार था, और जब उसके असली रंग सामने आए... ”
रूप अब तकिया छोड सीधी बैठ गई आलथी-पालथी मार कर, उसके चेहरे पर उत्सुकता का वही बचपन वाला पारदर्शी भाव था, मैं आज नदी के सहज प्रवाह सी बही जा रही थी, अपनी तमाम पारदर्शिता के साथ ताकि मेरी बच्चियाँ अपने प्रतिबिम्ब उसमें ढूंढ सकें और अपने जीवन प्रवाह सही दिशा में मोड सकें।
“फिर मम्मी दोनों साथ बोल पडे। ”
“सही-सही बताओ ऐसा क्या हुआ कि आप ने अपना मनपसंद कैरियर छोड क़र शादी कर ली। ”
“हाँ एक बार रेडियो पर मेरी नाईट डयूटी थी, रात का आखिरी रिले था मैं सामान समेट रही थी। न्यूज रिले हो रही थी दिल्ली से। तभी एक सीनीयर इन्जीनियर स्टूडियो में आ गया और बातों बातों में हाथ पकडने की कोशिश करने लगा । मैं डर तो गई पर हिम्मत करके कहा, देखिये सर अगर मैं ने माईक ऑन करके चीखना शुरू किया तो पूरा शहर सुनेगा। फिर मेरी तो एक साल पुरानी नौकरी जाऐगी, आपकी तो पंद्रह-बीस साल की नौकरी और रेपुटेशन चली जाऐगी। वो दुम दबा कर भाग गया। ”
एक बार हमारे रेडियो के ही म्यूजिक़ विभाग के प्रोडयुसर आकर बोले -
“तुम्हारी आवाज में बडी क़शिश है, गाती हो? अरे सीखो भई। मैं ने कुछ गजलें कम्पोज की हैं, तुम्हें सिखा कर एक प्रोग्राम रेकॉर्ड करते हैं। मैंने भी रुचि लेकर हाँमी भर दी। तो वो बोला, आ जाओ कल से घर पर। मैंने पता-वता ले लिया। और अगले दिन खुशी-खुशी अपने कलीग्स को बताया कि मैं गज़ल सीखने जा रही हूँ, पुरी सर से। ”
उस दिन अच्छा खासा बारिश का दिन था। चाय का दौर चल रहा था,वहीं हमसे थोडे सीनियर एक प्रोग्राम एक्जीक्यूटिव राजेश बैठे थे। उन्होंने चौंक कर मुझे देखा, बाकि लोग मुस्कुराने लगे। मैं कुछ समझी ही नहीं। राजेश उठ कर अपने ऑफिस में चले गए। मैं स्क्रिप्ट चैक करने लगी। इतने में इन्टरकॉम बजा मेरे लिये था। राजेश ने बुलाया था। मैं गई तो वे तमतमाए बैठे थे।
“हाँ ! अब बताओ क्या कह रही थीं? “
“किस बारे में सर... ”
“उस ईडियट पुरी के बारे में मैं चुप! ”
“यू डेम इट... अक्कल है कि नहीं! गज़ल सीखोगी उस अधेड, अकेले आदमी से? वो भी उसके घर जाकर, उसके संदिग्ध चरित्र के बारे में कभी सुना नहीं। ”
“नहीं सर... ”
“अजीब हो तुम्हें किसी ने नहीं बताया कि यहाँ आँख, कान खुले रखने होतै हैं। इन्होंने तो अक्ल तक के दरवाजे बंद कर रखे हैं। ”
गुस्सा बहुत आ रहा था राजेश पर कि किसने इसे अधिकार दिया डाँटने का। पर भले के लिये ही तो डाँट रहा था सो चुपचाप खा ली।
“उठाओ फोन मना करो अभी... ”
मैंने फोन पर कहा कि, सर हमारे वर्किंग वुमन्स हॉस्टल से परमिशन नहीं है, डयूटी आवर्स के बाद कहीं जाने की। फिर डाँट पडी।
“क्यों सीधे से मना नहीं कर सकती थी कि यू ब्लडी ओल्ड मेन आई एम नॉट कमिंग देखना हॉस्टल पहुँच के परमिशन लेने आ जाएगा वो परवर्ट। ”
और रूप-मनु वो बदमाश सच में आ गया। वार्डन से बात भी कर ली,तब मैंने वार्डन को अलग ले जाकर असलियत बताई तो उन्होंने उसे चलता किया।
“मम्मी और वो राजेश.... ” ये रूप ही हो सकती थी।
“मेरा दिल काँप गया, यह बचपन से मेरे हर उतरते-चढते भाव कोभाँप लेती थी। ”
“आप तो उनकी शुक्रगुजार हो गई होंगी। बहुत खयाल रखते थे आपका? आप उन्हें मानने लगी होंगी। रूप पीछे ही पड ग़ई, मानसी भी मंद मुस्कान से मुझे देख रही थी उत्सुक होकर। ”
“अँ... बडे आदर्शवादी किस्म के व्यक्ति थे।”
“हाँ ”
“सच्ची बोलो न ममी....मैं होती तो उन्हें पसंद करती । ”
“पागल वो मैरिड थे, बट ही वाज माई फर्स्ट क्रश! ”
बस फिर क्या था हमारा कमरा टीन एज गर्ल्स की सी चीखों से गूँजगया।
“मॉम आप तो बडी छुपी रूस्तम थीं। ”
“मैं ने शादी करने को कभी सीरियसली नहीं लिया। तभी मेरा प्रमोशन दिल्ली हो गया और मुझे मीडिया की ही एक हस्ती अनामा दीदी का फ्लैट शेयर करना पडा और मुझे शादी की महत्ता समझ आ गई। अनामा दीदी एक बडी उम्र की सफल व्यक्ति थीं मगर स्पिन्स्टर। बहुत प्रभावशाली, बहुत सीनियर और सफल।”
“पहले दिन ही उनका फ्रस्ट्रेशन झलक आया। ”
“देखो निमिषा, मुझे लगा मुझे तुम्हारी हेल्प करनी चाहिये इसलिये तुम्हें ऑफर किया, मुझे कोई किराया नहीं बस प्राईवेसी चाहिये। मुझे किसी की दखलंदाजी नहीं पसंद। मैं बाहर ही खाती हूँ, तुम अफोर्ड नहीं कर सकोगी सो यू यूज क़िचन। अपने बेडरूम से किचन बस मेरे हिस्से में मेरे बुलाने पर ही आना। कोई जरूरत हो तो सुबह ब्रेकफास्ट के वक्त बात करेंगे। ”
“वो देर रात तक ड्रिंक करती...गज़लें सुनती....सिगरेट पीतीं। मुझे घुटन होती। पता चला किसी विवाहित पुरूष के साथ उनका भावनात्मक जुडाव है। मैं सोचती जब आखिरकार पुरूष से ही जुडना हुआ, उसके हाथों मजबूर होना हुआ तो उसके अस्तित्व को नकारने से क्या मिला? “
“एक दिन मैंने अपने हाथों से खाना बना कर उन्हें बाहर जाने और ड्रिंक करने से रोक लिया। बस उस दिन की अंतरंगता में उन्होंने अपने बारे में बताया कि कैसे उनके सभी भाई बहन अपने में मस्त हैं और वो कैरियर की महत्वाकांक्षा में यहाँ तक आ गईं और अचानक लगा कि वो अकेली हैं। ऐसे में जो भी मिला पुरूष या महिला मित्र सबके अपने परिवार और उससे जुडी व्यस्तताएं थीं।”
“निमिषा वक्त रहते शादी कर लेना। कैरियर के पीछे भागने से आजादी तो मिलती है, पैसा भी कि इन दोनों की अधिकता से आप चिढने लगते हो क्योंकि इसे भोगने के लिये आपके साथ कोई नहीं होता। शादी के साथ संभव हो तो कैरियर की सोचो। ”
“और जब मैं छुट्टी लेकर घर आई तो पहली बात मम्मी से यही कही कि मेरी शादी कर दो। और पहला रिश्ता तुम्हारे पापा का ही था, उन्हें मैं पहली नजर में पसंद आ गई। ”
“आती ही, मेरी मम्मी जो इतनी खूबसूरत हैं।” मानसी ने लाड से कहा।
“पापा भी कहाँ कम हैण्डसम हैं... ”
“अरे भई मेड फॉर ईच अदर हैं। मैं इनकी मेड हूँ ये मेरी मेड हैं। ” अनिकेत से आखिर रहा नहीं गया। सब के तनाव घुल गए थे। रूपसी ने अपना पक्ष रखा, हमने अपना कि पैसा और कैरियर परिवार की प्राथमिकता के बाद आता है।
“सच बात तो यह है रूप जितना तुम्हारे और मम्मी के बीच मतभेद है उससे कहीं प्यार है। ये तुम्हारा इतने दिनों के लिये जाना सहन नहीं कर पाएगी। अभी थोडा और वक्त दो अपने यू एस ए जाने के विषय को... ”
“पापा पहले ही बहुत से मेरे सीनियर कलीग्स इस प्रोजेक्ट के पीछे हैं,मेरी दुविधा जानते ही वे हथिया लेंगे। ”
“तुम्हारे पास पूरा जीवन है बेटा। हथियाने दो, तब तक तुम और अनुभव ले लो। और बहुत मन है यू एस ए जाने का तो मेरे पास मेरे एक बेहद अजीज मित्र के बेटे का प्रस्ताव है, वह वहाँ कम्प्यूटर इन्जीनियर है, उनका बहुत मन था कि मेरी एक बेटी से अपने बेटे का विवाह करें। ”
“अनिकेत तुमने मुझे नहीं बताया मैं ने आश्चर्य से कहा। ”
“पापा? “
“मैं ने कभी इस विषय पर सोचा नहीं था। मैंने सोचा बच्चों की अपनी पसंद ही सही। आज लगा कि समस्या का एक हल यह भी तो हो सकता है। उसके मम्मी पापा इसी शहर में हैं। वह हर साल यहाँ आता है। ”
“तो बस बात पक्की कर दीजिये ना! ” मानसी ने कहा।
“पहले रूप से तो पूछो... ”
“मम्मी मैं उसे देखे बिना, जाने बिना कैसे कह दूँ? “
“वह आ रहा है दीवाली पर.... ”
“ठीक है पसंद आया तो रूप मान जाऐगी मुझे यकीन नहीं हो रहा था।”
अनिकेत बोले ” भई फिर दोनों की साथ शादी कर हम दोनों वर्ल्ड टूर पर निकल जाएंगे। ”
“पापा उसे मैं और मानसी स्पॉन्सर करेंगे आपकी रिटायरमेण्ट गिफ्ट।”
मेरा घर ईश्वर की बरसती अनुकम्पाओं से छलक रहा था।