पीढ़ी-दर-पीढ़ी / अशोक भाटिया
Gadya Kosh से
उसके पिता ने उसे पढ़ाया नहीं था।
उसने सोचा—मैं अपने बच्चों को जरूर पढ़ाऊँगा।
उसने अपने बच्चे को स्कूल में प्रवेश दिलाया।
एक दिन बच्चे ने किताबों की माँग की।
दूसरे दिन बच्चे ने स्कूल-ड्रेस की माँग की।
तीसरे दिन बच्चे ने फ़ीस की माँग की।
वे फसल की कटाई के दिन थे। पिता ने कहा—बेटा, फसल मंडी में बिकेगी, तभी मजूरी मिल पाएगी। मज़बूर बेटा पिता का हाथ बँटाने लगा।
एक दिन पाठ याद न होने पर बच्चे को सज़ा मिली।
दूसरे दिन स्कूल-ड्रेस न होने पर बच्चे को घर भेज दिया गया।
तीसरे दिन फ़ीस न भरने पर उसका नाम काट दिया गया।
वह बच्चा फिर कभी स्कूल नहीं गया।
जब वह बड़ा हुआ, तो उसने सोचा—- मैं अपने बच्चों को ज़रूर पढ़ाऊँगा।