पीला गुलाब / भाग 7 / प्रतिभा सक्सेना
'बिट्टू आ रहा है। कोई टेस्ट देना है उसे।’
दादा के नाम आया, चाचा का पोस्टकार्ड शिब्बू के हाथ में है।
'अच्छा वोह, बिट्टू! हमारी शादी में आया था। हमारी बहन से बातें कर रहा था।’
'तुम्हारी कौन सी बहन है भाभी?’
'वही विनीता। हमारे मामा की लड़की।’
'हाँ, समझ गये। दादा के जूते उसी ने छिपाये थे, बड़ी तेज़ लड़की है भाई। हमे उससे और बात करनी थी, पर भाग गई। कहे - हम नहीं रुकते यहाँ पे अम्माँ बकेंगी।।।’
बकेंगी! सब हँसने लगे।
भाभी ने स्पष्ट किया, ‘हाँ , वो सबसे बोलने पहुँच जाती है। मामी गुस्सा होती हैं।’
‘तुमसे तकरार हो गई थी न! मामी कह रही थी इसी से ब्याह देंगे विनीता को।’
‘फिर काहे नाहीं की?’
'उसे क्लर्क नहीं अफ़ीसर चाहिये था।बैंक में अच्छे ओहदे पर है उसका दूल्हा।'
'जाने दो हमें तो उससे अच्छी मिल गई। कदर करनेवाले भी मिल जाते हैं, आदमी में अपने गुन होने चाहिये। क्लर्क हैं, तो क्या।।।।”
इतवार को आ पहुँचा बिट्टू, शिब्बू की शादी में नहीं आ पाया था। कहीं बाहर पढ़ रहा था। अब तो खूब लंबा हो गया है।
दादा अख़बार पढ़ रहे थे, चाय चल रही थी।।
नई भाभी को देखा तो चौंक गया।
'अरे, शिब्बू दा की दुल्हन ये हैं।’
'हाँ, क्यों?’
'हम इनकी पहली बरात में गये थे। मुन्ना दादा, तुम्हें याद है न? हाँ।यही तो थीं ?’।
शिब्बू तौलिया बाँधे उधर ही चले आये थे, बोले
'हाँ, हाँ, यही थीं। अब देखो आ गईं इसी घर में। तुमने क्या देखा था इन्हें?’
उस दिन दादा ने कहलाया था - जा के कह दो एक बार लड़की हमसे आकर बात कर लें,। । वह मना कर देगी तो हम चुपचाप लौट जायेंगे।’
तब हम भी चच्चा के साथ चले गये थे। इनके घर के लोग मार गुस्साये जा रहे थे।
जब चच्चा ने कहा, वो लोग हैरान! एक दूसरे का मुँह देखें, और ये चट्टसानी उठ के खड़ी हो गईं। चल भी दीं थीं हमारे संग आने के लिये। पर इनके मामा ने और लोगों ने नहीं आने दिया।एकदमै मना कर दिया कि वो शराब पिये हैं। तुम्हें अब सामना करने की कोई जरूरत नहीं। हम लोग हैं न।’
बिट्टू ने पूरा दृष्य सामने ला दिया।
सब ताज्जुब से सुने जा रहे हैं।
'ये भाभी होतीं न हमारी, सो इच्छा हो रही थी, सबको हटा के हाथ पकड़ के आपके सामने ला के खड़ा कर दें। दादा, सच्ची में हमें लग रहा था ये।।’कहते-कहते वह एकदम चुप हो गया।
अभिमन्यु रुचि की ओर देख रहे हैं सिर झुकाये बैठी है वह।
'लो, हमें पता ही नहीं।’बिट्टू, तुमने आ के हमें नहीं बताया?’
'वहाँ तो कोहराम मचा था। आप को बताने से कोई फ़ायदा नहीं था।’
तो अब बताने से क्या फ़ायदा!
क्या कहें अभिमन्यु, चुप रह गये।
चार साल पहले अपनी नई-नई नौकरी छोड़ने को नोटिस दिया था रुचि ने। पर लौट कर तुरंत वापस ले लिया था।
अब शादी हो जाने पर सब को लगा रिज़ाइन कर देगी। पर इस बार उसी ने साफ़ कर दिया’खाली नहीं बैठा जायेगा मुझसे।
और वह लड़कियों को पढ़ाती रही।
नौकरी छोड़ देती तो करती क्या। शिब्बू तो कहीं टिक कर काम करते नहीं। दो बार लगी-लगाई छोड़ चुके हैं। स्कूल की क्लर्की रास नहीं आई थी आये दिन झगड़े। सो छोड़कर बैठ गये। वो तो ये कहो किस्मत अच्छी जो शादी होते ही म्युनिसिपेलटी के दफ़्तर में क्लर्क लग गये।
ऊपर से, बीवी कमाऊ मिली, फिर यहीं तबादला करा लिया। अब तो मौज से कट जायेगी।
आज हाफ़ सी।एल। लेकर घर आ गई है रुचि, बिलकुल अकेली रहने का मन है। कुछ भी नहीं करेगी, बस खूब देर लेटी रहेगी यों ही चुपचाप। जब मन होगा उठेगी चाय बना कर खुले में बैठ कर पिेयेगी। कोई मन की किताब पढ़ेगी, और जो मन में आएगा सोचती रहेती,
आकर कपड़े बदले, दो-चार शक्करपारे निकाल कर खाने लगी कि घंटी बजी।
‘ये इस समय कौन आ गया?’
दरवाज़ा खोला,
'अरे, तुम कैसे घर चले आए?’
'तुम आ गईं थीं न।’
'तुम्हें कैसे पता?'
'फ़ोन किया था तुम्हारे यहाँ, पता लगा आधी सी।एल। लेकर चली गई हो। तो हमने भी सोचा घर चलें, आज मौज रहेगी। क्या सिर में दर्द है?’
'नहीं।'
'फिर ठीक है, पहले एक-एक कप चाय हो जाय। तुम क्या करने जा रहीं थीं।’
'चाय पीने।'
'बस, तो फिर गरमा-गरम पकौड़ों के साथ।’
'आज शाम को कुछ ज्यादा मत करना भरवां करेले के साथ पराँठे काफ़ी हैं।’
बनाते खाते रात के ग्यारह बज गए।
दिन बीतते जा रहे हैं।