पीली चिड़िया, हिरनी और वनमानुषी / संजीव ठाकुर

Gadya Kosh से
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अनाम पगडंडी पर धीमी चाल में चलता हुआ वह सोच रहा था। सोच रहा था कि इस पगडंडी का नाम आख़िर क्या हो सकता है? पाताल-पगडंडी? आकाश-पगडंडी? 'जैसी जिसकी सोच!' ...टी.वी.धारावाहिक 'तारक मेहता का उल्टा चश्मा' के एक पात्र बाघा के द्वारा बोला जाने वाला संवाद उसे याद आया। बाघा कि विचित्र हँसी उसे याद आई। वह मुस्कुरा पड़ा।

'तुम इतना जो मुस्कुरा रहे हो, क्या ग़म है जिसको छुपा रहे हो?'

पेड़ पर बैठी एक चिड़िया गा रही थी। चिड़िया के पंख फूल की पंखुरी की तरह खिले हुए थे। हरी पत्तियों के बीच वह पीली चिड़िया विश्वसुंदरी का खिताब पाने की हकदार लग रही थी। पीला रंग पहली बार उसे इतना अच्छा लग रहा था। 'क्या मैं इसी की तलाश में सदियों से सूनी पगडंडियों पर चलता चला आ रहा हूँ?' ...'क्या मेरी तलाश पूरो हो चुकी है?' ...'क्या मुझे यहीं रुक जाना चाहिए?' ...वह सोच रहा था।

आखिर उसके पाँव थम गए। पेड़ के नीचे खड़े होकर उसने पीली चिड़िया कि ओर देखा। वहाँ उसे हरी पत्तियों के अलावा कुछ दिखाई नहीं दिया।

'रेखाओं का खेल है मुकद्दर, रेखाओं से मात खा रहे हो!'

गाने की आवाज़ अभी भी आ रही थी।

"ओ! ग़ज़ल गाने वाली चिड़िया! कहाँ हो? ...आओ, आकर मेरी हथेली पर बैठ जाओ! मैं तुम्हें जी भर देखना चाहता हूँ। छूना चाहता हूँ।" कहते-कहते वह रोने लगा था।

'बन जाएँगे ज़हर पीते-पीते, ये अश्क जो पीते जा रहे हो!'

"अगर तुम चाहती हो कि मेरे अश्क ज़हर न बन जाएँ और मैं उन्हें पीता न चला जाऊँ, तो आओ! पीली चिड़िया आ–ओ!"

उसके कहते-कहते पीली चिड़िया हरी पत्तियों से निकलकर उसके सामने आ गई। उसने अपनी हथेली फैला दी। चिड़िया उसपर बैठ गई। उसे तृप्ति की अनुभूति हुई। वह पेड़ की टेक लेकर बैठ गया। पीली चिड़िया को गोद में बैठा लिया। बोला–"गाओ, चिड़िया! गाओ!" ...

" गाओ मल्हार गाओ

बरसात आ रही है

काली घटा गगन में

घुँघरू बजा रही है। "

घुँघरू की आवाज़ अचानक गड़गड़ाहट में बदल गई। प्रलय की आशंका सच्चाई में बदलने लगी थी। चिड़िया बोली—"चलो, मेरे घोंसले में चलो। वहाँ हम इस विपत्ति से ख़ुद को बचा लेंगे!"

दोनों घोंसले में घुस गए। हवा तेज चलने लगी थी। मेघ तेज बरसने लगा था। पेड़ डालियों सहित हिलने लगा था। घोंसला लगातार डोल रहा था। 'अब हमारा समय ख़त्म हो चला है। हमारे गीत अधूरे रह गए हैं।' उसके मन में आया और उसने अपना सिर चिड़िया कि गोद में रख दिया। चिड़िया अपने पंखों से उसे सहलाने लगी। तभी पेड़ के अरअरा कर गिरने की आवाज़ आने लगी। पेड़ के गिरने से लगे झटके से टूटकर घोंसला डाली से अलग हो गया। हवा के तूफानी वेग ने उसे उड़ा दिया। घोंसला चट्टान से टकराया। खाई में लुढ़का। लुढ़ककर तेज बह रहे पानी की धार में जा पहुँचा। घोंसले के अंदर मृत्यु की शांति छा गई।

हजारों मील बहने के बाद तार-तार हुआ वह घोंसला टूटी नाव की तरह सूखी रेत पर बिछ गया।

घोंसले से दो हाथ बाहर झांक रहे थे। कुछ कुत्ते उन्हें सूँघ रहे थे। एक दूसरे पर भौंक रहे थे। एक दूसरे को काटने को दौड़ रहे थे। यह कुत्तों की नगरी थी। कुत्ते ही यहाँ राजा थे, कुत्ते ही प्रजा! यहाँ किसी और का वास नहीं था।

अचानक घोंसले के अंदर हल्की हलचल हुई। बाहर निकले हाथ हिले। कुत्ते सहमे। फिर जब पूरी ताकत लगाकर घोंसले के अंदर से वह निकला, कुत्ते डर कर भाग गए। उसके जीवन की धड़कन वापस आ गई थी। लेकिन वह मासूम पीली चिड़िया अपनी धड़कन खोकर उसकी छाती से चिपकी हुई थी। दुख और नैराश्य से उसका हृदय फटने लगा। वह उठा। उसने चलना चाहा। लेकिन वह चलना भूल गया था। वह लड़खड़ाने लगा। लड़खड़ाते-लड़खड़ाते उसने जंगल की ओर जाने वाली एक पगडंडी पकड़ ली। पगडंडी ही उसकी नियति थी! यह पगडंडी उसे जंगल के अंदर बसी एक छोटी-सी बस्ती की ओर ले गई। वह काले वनमानुषों की बस्ती थी। उसे इस हाल में देखकर बस्ती के वनमानुषों को दया आई। उन्होंने उसे खिलाया-पिलाया। नहलाया। पहनने को कपड़े दिए। कपड़े पहनकर उसने पीली चिड़िया को जेब में रख लिया। उस मृत चिड़िया से बास आ रही थी। वनमानुषों ने उसे चिड़िया फेंक देने को कहा। यह सुनकर उसने अपनी जेब कसकर पकड़ ली। वनमानुषों के पूछने पर उसने कहा–-"नहीं, मुझे कोई बास नहीं आती।"

काले वनमानुषों ने उससे उसके घर-परिवार, देश-गाँव आदि के बारे में पूछा। वह कोई जवाब नहीं दे सका। काले वनमानुषों ने उससे कुछ पूछना छोड़ दिया और उसे एक खाली पड़ी झोंपड़ी में टिका दिया। झोंपड़ी में लेटे-लेटे वह पीली चिड़िया के मृत शरीर को सहलाता रहता। मृत चिड़िया कि गंध उसे ज़रा भी परेशान नहीं करती थी। लेकिन वह गंध पूरी कायनात को परेशान करने लगी थी। वनमानुषों ने विचार-विमर्श किया और जब वह झोंपड़ी से बाहर कहीं गया हुआ था, किसी ने जाकर उस पीली चिड़िया के मृत शरीर को उठा लिया, जाकर बहती हुई नदी में फेंक आया। नदी में आग लग गई।

झोंपड़ी में लौट कर आने के बाद जब उसने पीली चिड़िया को नहीं देखा, बाहर आकर उसे ढूँढ़ने लगा। वह एक पगडंडी पर चलता, फिर दूसरी पकड़ लेता। पीली चिड़िया तो उसे कहीं नहीं मिली, एक हिरनी ज़रूर मिली। हिरनी की सुंदरता पर वह मोहित हो गया। उसकी आँखें, उसकी चाल, उसकी मुलायम त्वचा ने जैसे उसपर जादू कर दिया।

"हिरना! समझ बूझ वन चरना!"

'यह पीली चिड़िया कहाँ से गा रही है?' उसने इधर-उधर देखा। पीली चिड़िया कहीं नहीं थी। निराश हो कर वह एक चट्टान पर बैठ गया। हिरनी धीरे-धीरे चलकर उसके पास आ गई। उसने हिरनी की पीठ पर हाथ रख दिया। उसका सारा नैराश्य जैसे दूर हो गया।

मगर सुख उसके नसीब में था ही नहीं। वह हिरनी के साथ कम वक़्त ही बिता पाया था कि खूँखार वनमानुषों की एक टोली उसकी तरफ़ आती दिखाई दी। सभी वनमानुषों ने काले रंग की पैंट, शर्ट पहन रखी थी। कमर में बेल्ट। पैरों में बूट। सिर पर टोपी। सभी के हाथों में आधुनिक हथियार थे। उनमें से एक हिरनी पर निशाना लगाए आगे बढ़ रहा था। हिरनी को खतरे में देख वह हिरनी के आगे आकर खड़ा हो गया। वनमानुषों की टोली उसके पास आकर रुक गई। एक ने उससे कहा–"सामने से हट जाओ! हम इस हिरनी को ले जाएँगे।"

"क्यों भला? यह हिरनी तो मेरी है!" उसने सवाल किया।

"मैं तुम्हारे सवाल का जवाब देने के लिए पैदा नहीं हुआ हूँ! सामने से हट जाओ। सबसे आगे वाले वनमानुष ने कहा–" नहीं तो हिरनी के साथ हम तुम्हें भी पकड़ कर ले जाएँगे और ज़िंदगी भर जेल के तहखाने में सड़ा देंगे। तुम हमें नहीं जानते हो। हम कानून के रक्षक हैं। तुमने 'वन्य जीव संरक्षण कानून' का उल्लंघन किया है। हम तुम्हें हिरनी के बलात्कार और अप्राकृतिक मैथुन के जुर्म में भी फँसा सकते हैं। सरकारी कर्मचारी के काम में दखल देने का जुर्म भी अलग से कर रहे हो तुम। इसलिए बेहतर होगा, सामने से हट जाओ और हिरनी को ले जाने दो। "

वह फिर भी नहीं हटा।

"मरना चाहता है क्या बे?" एक दूसरे वनमानुष ने कहा। "एक गोली में तुम्हारा और तुम्हारी इस हिरनी का काम तमाम कर दूँगा।"

इस पर भी जब वह टस से मस नहीं हुआ तब उस वनमानुष ने आगे बढ़कर उसे ज़ोर का धक्का दिया और हिरनी को कब्जे में ले लिया। वह गौरवान्वित होकर बोला–"आज तो साहब बहुत खुश होंगे। ज़िंदा हिरन को पकाकर उसकी बोटी खाने में उन्हें कितना आनंद आएगा? वह हमें शाबासी देंगे। तरक्क़ी देंगे।"

तीसरे वनमानुष ने बंदूक के कुंदे से उस पर प्रहार किया। उसे कराहता छोड़ सभी वहाँ से चल पड़े। एक तो हिरनी का वियोग, दूसरे चोट का दर्द! हिरनी की परछाईं ढूँढता वह वहीं कराहता रह गया।

कुछ देर बाद वनमानुषों की दूसरी टोली वहाँ पहुँची। इस टोली के पास भी आधुनिक हथियार थे लेकिन पोशाक के मामले में यह टोली उस टोली का कोई गरीब संस्करण लग रही थी। इस टोली में एक वनमानुषी भी थी। टोली के एक वनमानुष ने उससे पूछा–-"कौन हो? यहाँ क्या कर रहे हो?"

'कौन' , 'क्या' का जवाब तो वह नहीं दे सका लेकिन उसने अपनी हिरनी को पकड़कर ले जाने की बात विस्तार से बता दी।

"हाँ, हमारी ख़बर पक्की है।" उस टोली के सरदार ने सबको कहा–"आज 'साहब' आने वाला था। उसी के मजे के लिए हिरनी को पकड़कर ले जाया गया है।"

बाकी वनमानुषों ने सिर हिलाकर सहमति दी। सरदार बोला–-"चलो! वन विभाग का ऐशगाह हमारी प्रतीक्षा कर रहा है।" ..."ओ! भलेमानस, तुम भी चलो। तुम्हें दिखा दूँ कि तुम्हारी हिरनी को कहाँ ले गए हैं सुसरे?"

वह सबके साथ चलने लगा। ऐशगाह से थोड़ी दूर पहले सभी झाड़ियों की ओट में खड़े हो गए। सरदार ने टोली की एकमात्र वनमानुषी से कहा–"तुम इसे लेकर अड्डे पर जाओ। हम काम तमाम करके आते हैं। आज से यह भी हमारी टोली का सदस्य है। तुम इसकी गुरु हुईं। इसे ले जाकर मंत्र दो।"

सभी वनमानुष झाड़ियों की ओट में ओझल हो गए और वह उस वनमानुषी के साथ दूसरी पगडंडी पकड़कर जाने लगा। घने जंगलों के बीच जाकर वनमानुषी बोली–"हमारा अड्डा तो यहाँ से दूर है। हम थोड़ी देर यहाँ बैठते हैं, फिर जैसा होगा देखा जाएगा।"

दोनों एक पेड़ के नीचे पत्थरों पर बैठ गए।

वनमानुषी ने कहना शुरू किया–"मैं जानती हूँ, तुम इस लोक के प्राणी नहीं हो। कहीं और से आए हो। हिरनी के प्रेम में डूबा हुआ कोई इस लोक का तो हो ही नहीं सकता। निश्चय ही तुम हमारे बारे में कुछ नहीं जानते हो। न ही उनके बारे में जो तुम्हारी हिरनी को पकड़कर ले गए हैं। सुनो! हम दोनों ही वनमानुष हैं। दोनों ही हथियारबंद। मगर हम दोनों में अंतर है। वह कानून का हथियार लेकर आम लोगों का शोषण करते हैं, हम गैरकानूनी ढंग से आम आदमी की लड़ाई लड़ते हैं। वह सरकारी टुकड़ों पर पलते हैं, हम जनता कि मेहनत से कमाई रोटी पर। वह ऐशो-आराम में रहते हैं, हम दर-बदर होकर जंगल की ख़ाक छानते हैं।"

"लो! पानी पियो!" बोतल उसकी ओर बढ़ाते हुए वनमानुषी ने फिर कहना शुरू किया–-"सरदार ने तो कह दिया कि तुम हमारे साथ ही रहोगे, लेकिन मैं जानती हूँ, तुम इस तरह का जीवन नहीं जी पाओगे। हालाँकि मैं यह भी जानती हूँ कि तुम्हें अगर बता दिया जाए कि किसने तुम्हारी हिरनी के साथ क्या किया है और तुम्हारे हाथ एक बंदूक दे दी जाए तो तुम भी वही करोगे जो हमलोग करते हैं! लेकिन नहीं, तुम इस रास्ते पर क़दम नहीं रखो। इसलिए इससे पहले कि वह खतरनाक वनमानुष लौट आएँ, तुम यहाँ से निकल जाओ। तुम नहीं जानते हो, यहाँ रहकर तुम क्या-क्या गँवा सकते हो? ये वनमानुष इतने भूखे-प्यासे हैं कि भक्ष-अभक्ष किसी का भेद नहीं जानते। क्या नर, क्या मादा ...ये सभी का भक्षण कर सकते हैं। मेरा भक्षण तो ये रोज़ करते ही हैं, तुम्हारा करने में भी इन्हें समय नहीं लगेगा।"

"तुम सोच रहे होगे कि मैं तुम्हें यहाँ से चले जाने को कह रही हूँ, ख़ुद क्यों नहीं चली जाती? ...तो सुनो! मैं अब यहाँ से कभी नहीं जा सकती। मेरी लाश यहाँ से निकल जाए, यही गनीमत! इस जंगल के चारों ओर इनके प्रहरी हैं। बंदर, भालू, गिद्ध, कौए ...सबको इन्होंने वश में कर रखा है। मैं यहाँ से नहीं निकल सकती। तुम्हें कोई पहचानता नहीं इसलिए तुम यहाँ से जा सकते हो। ये देखो पगडंडी। थोड़ी खतरनाक है। इसी पर चलते जाना, तुम शहर पहुँच जाओगे। वहाँ जाकर अपना ठिकाना ढूँढना।"

वनमानुषी खड़ी हो गई। वह भी खड़ा हो गया। उसने वनमानुषी को गले लगा लिया–जैसे वह उसकी चिड़िया हो, हिरनी हो! और आँसू भरी आँखों से उसकी बताई पगडंडी पर चलना शुरू कर दिया। रास्ते में कहीं बंदर ने उसे डराने की कोशिश की, कहीं भालू ने। कहीं गिद्ध ने उस पर पंख प्रहार किए तो कहीं कौए ने उसके सिर पर चोंच मारी। लेकिन वह उस वनमानुषी को याद कर रास्ते पर चलता रहा, चलता रहा...

" याद पिया कि आए,

हाय राम!

ये दुख सहा न जाए, राम...! "

पीली चिड़िया कि आवाज़ अभी भी उसके कानों में गूँज रही थी!

अपने पैरों से जंगल की पगडंडी को जैसे ही उसने नापा, सामने काली सड़क नागिन की तरह बलखाती दिखाई दी। वह सड़क पर उतर गया और एक दिशा में बढ़ गया। सड़क के दोनों किनारों पर उसे बड़े-बड़े होर्डिंग दिखाई दिए। किसी पर बिकनी और ब्रा पहने कोई सुंदर वनमानुषी दिखाई दे रही थी तो किसी पर घोड़े पर सवार कोई सुदर्शन वनमानुष! किसी पर सफ़ेद धोती-कुर्ता पहने, हाथ जोड़े कोई वनमानुष चढ़ा हुआ था तो किसी पर मसालों के डिब्बों के साथ कोई मृतप्राय वनमानुष! कहीं कोई वनमानुष बाबा का वेश बनाकर आशीर्वाद की मुद्रा में खड़ा था तो कहीं ध्यान की मुद्रा में कोई वनमानुषी 'बाबी' ! इस 'बाबी' का रूप-शृंगार कुछ ऐसा था कि इसे देखकर भक्ति को कोसों दूर भगाकर काम फुफकारने लगता था!

ऐसे ही दृश्यों को देखकर आनंद उठाता वह सड़क पर बढ़ता जा रहा था। लेकिन धीरे-धीरे थकान उस पर असर डालने लगी थी। उसने कहीं रुककर आराम करने की बात सोची। आगे उसे एक घना-छायादार पेड़ दिखाई दिया। वह पेड़ के नीचे बैठ गया। बैठे-बैठे उसे नींद आने लगी। वह पेड़ से पीठ टिका कर सो गया। वह कितनी देर सोया, पता नहीं, लेकिन एक वनमानुषी के जगाने पर वह जगा। वनमानुषी अपूर्व सुंदरी थी। वह सड़क के पार एक खूबसूरत बँगले में रहती थी। थोड़ी ही देर पहले उसने टी. वी. पर महान ज्योतिष वनमानुषाचार्य का राशिफल-विमर्श सुना था। आज मीन राशि की वनमानुषियों को उन्होंने काले कुत्ते को खीर-पूरी खिलाने पर कृपा बरसने की बात की थी। सुंदर वनमानुषी उसी के तहत पत्तल पर खीर-पूरी लेकर काले कुत्ते को ढूँढने को निकली थी। काले कुत्ते की जगह उसकी नज़र पेड़ के नीचे सो रहे उस पर चली गई। पता नहीं उसमें ऐसा क्या दिखा कि वह उसी क्षण उस पर मुग्ध हो गई। उसने कुत्ते को खिलाने वाली खीर-पूरी सड़क के किनारे रख दी और जाकर उसे जगा दिया। जग कर उसने अपने सामने एक अपूर्व सुंदरी वनमानुषी को देखा। इससे पहले उसने ऐसी सुंदरता नहीं देखी थी। पीली चिड़िया और हिरनी उसके रूप के आगे पानी भरती थीं। इसलिए जब उस वनमानुषी ने उसे अपने साथ चलने को कहा तो वह उसके सम्मोहन में बंधा उसके साथ-साथ चल पड़ा। अपने अहाते में घुस कर वनमानुषी ने उसे पत्थर की बनी कुर्सी पर बैठा दिया। उससे कुछ औपचारिक से सवाल पूछे। वह कोई जवाब दिए बिना चुप बैठा रहा। वनमानुषी ने उसे नहलाया। साफ-सुथरे वस्त्र पहनने को दिए। स्वादिष्ट भोजन उसके सामने परोसा। सदियों से उसने भोजन नहीं किया था इसलिए उसे याद ही नहीं था कि भोजन कैसे किया जाता है? स्त्री के कई बार कहने के बाद भी जब वह भोजन ताकता बैठा रहा, वनमानुषी ने अपने हाथ से उसे खिलाना शुरू कर दिया। वनमानुषी को ऐसा करते देख उसने भी वनमानुषी को खिलाना शुरू कर दिया। ऐसा करते हुए उसे बहुत सुख मिलने लगा। वनमानुषी को भी यह सुख बहुत दिनों बाद मिला था। उसका पति उसके जीवन भर के गुजारे के लिए धन-संपत्ति छोड़ कर दूसरी वनमानुषी के साथ राजधानी में रहने को चला गया था। यह वनमानुषी यहाँ अकेली ही रहती है।

भोजन करने और कराने के बाद वनमानुषी ने उसे अपने कमरे में सोने को भेज दिया। कमरे की भव्यता देख कर वह दंग रह गया। वह सोने की कोशिश करने लगा। धीरे-धीरे वह स्वप्नलोक में पहुँच गया। वहाँ पीली चिड़िया गा रही थी–

" सौतन के लंबे-लंबे बाल

हो राजा जी!

उलझ मत जाना,

उलझ मत जाना

हो राजा जी! "

वनमानुषी भी उसी लोक में आ गई थी। उसके लंबे-लंबे बाल बिस्तर पर बिखरे हुए थे। उसे छू रहे थे। ऐसे बालों का स्पर्श उसे पहली बार हो रहा था। उस स्पर्श ने उसे व्याकुल कर दिया था। उसे पता ही नहीं चल रहा था कि उसके साथ क्या हो रहा था? इसके पहले तो उसकी अनुभूति में ऐसा कोई दृश्य घटित नहीं हुआ था? क्या था यह?

"वर्जित फल!" हिरनी की आवाज़ कहीं से आई।

कई जनमों की नींद पूरी कर जब वह जगा था, वनमानुषी ने उसे बाहर के भव्य ड्राइंग रूम में रखे भव्य सोफ़े पर बिठा दिया था। टी.वी. चला दिया था।

जब वह ट्रे में चाय लेकर वहाँ आई, टी.वी. पर ब्रेकिंग न्यूज़ आ रही थी–

"वन मंत्री की हत्या!"

"ओ! माई गॉड!" सुनते ही वनमानुषी के मुँह से चीख निकल गई। हाथ से ट्रे गिर गया। वह भी धड़ाम से नीचे गिर पड़ी।

सोफ़े से कूदकर वह नीचे आया, वनमानुषी को उठाया, सोफ़े पर लिटाया और उसका सिर सहलाने लगा।

एंकर टी.वी. में चीख रही थी–" बहुत बड़ी ख़बर! ...वन मंत्री की कुछ जंगली वनमानुषों ने हत्या कर दी। वे जंगल में बाघ-संरक्षण के अपने मिशन पर गए हुए थे। ऐशगाह में घुस कर कुछ जंगली वनमानुषों ने उनपर ताबड़तोड़ गोलियाँ बरसाईं। मौके पर ही मंत्री जी की मृत्यु हो गई।

वनमानुषी चिल्लाई–"चला गया कमीना! हमेशा के लिए चला गया। जाने दो कमीने को! मेरी ज़िंदगी से तो कब का जा चुका था। जाने दो ...!"

उसने स्त्री को सँभाला। पानी पिलाया। अपनी गोद में लिटाया और उसका सिर सहलाने लगा।

उसकी आँखों के आगे वनमानुषों की दोनों टोलियाँ घूम गईं। हिरनी घूम गई। हिरनी के शिकार की सजा 'साहब' को मिल गई थी। लेकिन वह वनमानुषी को नहीं बता सका कि वह 'साहब' के हत्यारों को जानता है। न ही अपनी हिरनी के दुखद अंत के बारे में वह उसे कुछ बता सका। उसे चिंता थी तो सिर्फ़ इस बात की कि हत्यारे वनमानुषों की टोली की उस वनमानुषी का क्या हुआ होगा? जब वनमानुषों की टोली अपने अड्डे पर लौटी होगी तो उस वनमानुषी को अकेले देखकर उसकी क्या दुर्दशा कि होगी? 'मैं बेकार यहाँ चला आया। उस वनमानुषी का गुनहगार हूँ मैं!' वह सोच रहा था।

सोच को विराम देकर वह उठा। उठकर बाहर आ गया। पेड़, पौधों और रंग-बिरंगे फूलों के बीच आकर उसे अच्छा लगा। तभी उसे अंदर से वनमानुषी के चिल्लाने की आवाज़ आई। वह अंदर चला गया। "कहाँ चले गए थे तुम?" कहकर वनमानुषी ने उसे अपनी ओर खींच लिया। उसे अपनी छाती में भींचकर कहा–"नहीं, तुम कहीं नहीं जाओगे! यहीं मेरे पास रहोगे। हमेशा रहोगे!"

उसने वनमानुषी को अपनी बाहों के घेरे में ले लिया। उसके बालों से अभी भी भीनी-भीनी ख़ुशबू आ रही थी। वह उस ख़ुशबू में खो गया।

टी.वी. पर अभी भी ज़ोर-ज़ोर से वही ख़बर चल रही थी। संवाददाता कुछ नायाब जानकारी जुटा लाने के दबाव में इधर-उधर भटक रहे थे। मंत्री जी के बारे में किसी गधे की बाइट ले रहे थे, किसी घोड़े की हिनहिनाहट लाइव टेलिकास्ट कर रहे थे। कोई उस वनमानुषी की तस्वीर दिखा रहा था जिसके कारण मंत्री जी इस वनमानुषी को छोड़कर चले गए थे। कोई उस ऐशगाह की तस्वीर दिखा रहा था जहाँ मंत्री जी की हत्या हुई थी।

अचानक इन सबको रोककर प्रधान वनमानुष का साफ-सफ़्फ़ाक डिजाइनर वस्त्रों में लिपटा पूरा शरीर टी.वी. स्क्रीन पर आ गया। चौड़े दाँतों और सफ़ेद दाढ़ियों वाला यह वनमानुष बोल रहा था–"बहनौं एवं भाइयौं, कुत्तौं एवं कुत्तियौं, चूहौं, गधौं, घौडों, उल्लुऔं, उल्लुऔं के पटठौं! यह बहुत दुख की घड़ी है। हमने अपने एक महान नेता को खो दिया है। मेरे देशवासियौं! आप धैर्य बनाए रखिए। हम हत्यारों को छोड़ेंगे नहीं। चौबीस घंटे के अंदर हत्यारे हमारी गिरफ्त में होंगे।"

"कमीना कहीं का!" उसकी बाहों के घेरे को तोड़कर वनमानुषी चिल्ला पड़ी–"हत्यारों को पकड़ेगा? ...वाह! हत्यारा हत्यारों को पकड़ेगा! सत्ता में आने के लिए इसने न जाने कितने मासूम बंदरों और भालुओं की हत्या कारवाई है? इसके सत्ता में आते ही कितने खरगोश, कितने हिरन क़त्ल कर दिए गए? कितनी भेड़ बकरियाँ क़त्ल कर दी गईं? और आज यह एक हत्या पर घड़ियाली आँसू बहा रहा है!"

उसने वनमानुषी को शांत कराया और सोफ़े पर लिटाकर उसका सिर अपनी गोद में रख लिया। उसके भाल, उसके कपाल और उसकी चक्षुओं पर उँगलियाँ फिराकर उसे सुलाने की कोशिश करने लगा।

स्त्री का व्याकुल मन सुकून के दरिया में गोते लगाने ही वाला था कि बाहर हो रहा शोर अंदर आ पहुँचा। इसी के साथ कॉल-बेल लगातार बजने लगी। स्त्री झटके से उठ बैठी। दरवाज़ा खोलकर उसने देखा कि अहाते के बाहर हाथों में कैमरा और माइक पकड़े ढेर सारे सियार हुआ-हुआ कर रहे हैं!

वनमानुषी ने झट दरवाज़ा बंद कर लिया। सियार खिसियानी बिल्ली की तरह बाहर लोहे के गेट को पीटते रहे। मंत्री जी की पूर्व पत्नी की बाइट न लेने से गुस्साए सियारों ने अब इस घर को ही कैमरे की जद में लेकर लाइव टेलिकास्ट करना शुरू कर दिया।

ब्रेकिंग न्यूज!

"मंत्री जी की पूर्व पत्नी ने पत्रकारों का किया अपमान!"

"पत्रकारों के मुँह पर दे मारा दरवाज़ा!"

किसी कैमरा मैन के संवेदनशील कैमरे ने वनमानुषी के पीछे खड़े उसकी तस्वीर भी क़ैद कर ली।

"कौन था वह शख़्स जो मंत्री जी की पूर्व पत्नी के पीछे खड़ा था?"

"मंत्री जी की पूर्व पत्नी को नहीं हुआ कोई शोक!"

"दरवाजा पीटते रह गए रिपोर्टर, रंगरेलियाँ मानती रह गईं मंत्री जी की पूर्व पत्नी!"

" मंत्री जी की पूर्व पत्नी के घर से जुड़ गए हैं हमारे जाँवाज संवाददाता–मंटा सियार! ' जी, मंटा,

हमारे दर्शकों को वहाँ का हाल पूरी तफसील से बताइए! ' "

" जी! मिक्की, मैं अपने दर्शकों को बताना चाहता हूँ कि हमारे बार-बार चिल्लाने और दरवाज़ा पीटने के बावजूद मंत्री जी की पूर्व पत्नी ने दरवाज़ा नहीं खोला। घर के अंदर का दरवाज़ा खोलकर उन्होंने एक क्षण को देखा ज़रूर। उनके चेहरे पर कहीं से भी ग़म के बादल दिखाई नहीं दे रहे थे। जैसे मंत्री जी की मृत्यु उनके लिए दुख का सबब हो ही नहीं! यहीं हम अपने दर्शकों को बता दें कि मंत्री जी की पूर्व पत्नी के पीछे एक शख़्स खड़ा नज़र आया। वह किसी और लोक का प्राणी लग रहा था। शक की सुई उस शख़्स की ओर भी जा रही है। कहा जा रहा है कि मंत्री जी की पूर्व पत्नी ने उस शख़्स के साथ मिलकर मंत्री जी की हत्या का षड्यंत्र रचा। मंत्री जी की पूर्व पत्नी से उस शख़्स के अवैध सम्बंध की बात भी कही जा रही है।

"क्या है मंत्री जी की पूर्व पत्नी के पीछे खड़े शख़्स का राज? ...जानिए शाम के सात बजे!"

टी.वी. स्क्रीन के नीचे यह इबारत बार-बार आ जा रही थी।

मंत्री जी की हत्या कि ख़बर पूरे देश में फैल चुकी थी। मीडिया ने हत्या का नया कोण निकालकर मंत्रि-भक्तों को सड़क पर उतार दिया। जगह-जगह विरोधी दलों की भेड़-बकरियों, चूहों-खरगोशों, हिरणों-बंदरों, आदि-आदियों की हत्याएँ होने लगीं। मकान जलाए जाने लगे, दुकानें लूटी जाने लगीं। कोई रोकने-टोकने वाला नहीं था। प्रधान वनमानुष ने हथियार-बंद वनमानुषों को तलवारें म्यान में रखे रहने का निर्देश दे दिया था।

इधर उस शहर में एक भीड़ उस वनमानुषी के घर की तरफ़ बढ़ रही थी। इससे बेख़बर वनमानुषी सोफ़े पर लेटी थी। 'दूसरे लोक का वह प्राणी' उसे फिर से सुलाने की कोशिश कर रहा था।

" पिया मेरा जागता मैं कैसे सोऊँ री!

साहिब मेरा जागता मैं कैसे सोऊँ री?

कैसे सोऊँ री सखी मैं कैसे सोऊँ री?

मालिक मेरा जागता मैं कैसे सोऊँ री? "


"निकल! बाहर आ स्साली! ...आ तेरी गर्मी दूर कर दूँ।" वनमानुषों की भीड़ चिल्ला रही थी। भीड़ अब उसके बाहर वाले दरवाजे पर आ गई थी।

"गली-गली में अंडी है, पूर्व पत्नी रंडी है!" ...भीड़ नारे लगा रही थी।

बाहर का दरवाज़ा पीटा जा रहा था।

दरवाजे को तोड़ने के लिए ज़ोर लगाया जा रहा था।

दरवाजे को आख़िर टूटना ही था। टूटा।

भीड़ को अंदर घुसना ही था। घुसी।

अब अंदर का दरवाज़ा तोड़ा जा रहा था।

उसे पीली चिड़िया का घोंसला याद आ रहा था। प्रलयंकर तूफान याद आ रहा था। पेड़ों का हिलना याद आ रहा था। बादलों का गरजना याद आ रहा था। मेघों का बरसना याद आ रहा था।

अंदर के दरवाजे के टूटते ही भीड़ ड्राइंग रूम में घुस आई। फिर से वही गालियाँ, वही चिल्लाना, वही धिक्कारना, वही कोसना! इसके साथ ही वनमानुषी की आवाज़–"किसी ने मुझे या इसे हानि पहुँचाने की कोशिश की तो गोलियों से भून दूँगी।" उसके हाथ में भीड़ की ओर तना रिवॉल्वर था।

भीड़ का प्रवचन चल ही रहा था–"ये कौन है तेरा? कहाँ से आया है? ये न तो हमारे देश का है, न ही धर्म का, न ही दुनिया का। मंत्री जी की हत्या करवाकर तू इसके साथ रंगरेलियाँ मना रही है! हम इसे नहीं छोड़ेंगे।"

"मैं कहती हूँ, पीछे हट जाओ! बाहर निकल जाओ!"

वनमानुषी के तने रिवॉल्वर की वज़ह से भीड़ थोड़ा पीछे हटी। लेकिन अहाते में आते ही उसने पैंतरा बदल लिया। वनमानुषी को चारों तरफ़ से घेर लिया। दो-तीन वनमानुष अंदर की ओर उसे पकड़ने को लपके। वनमानुषी ने चारों तरफ़ घूम-घूमकर गोलियाँ चला दीं। छह वनमानुषों को लुढ़काकर रिवॉल्वर की गोलियाँ ख़त्म हो गईं। भीड़ थोड़ी देर को तितर-वितर हुई लेकिन फिर गोलबंद हो गई। अब भीड़ की बारी थी। उसने वनमानुषी पर पत्थर और डंडे बरसाने शुरू कर दिए। वनमानुषी को बचाने अंदर से वह भागा-भागा आया। भीड़ उसपर भी टूट पड़ी। भीड़ की दी चोट से दोनों बेहोश हो गए। दोनों को मरा मानकर भीड़ वहाँ से हट गई।

भीड़ के हटने के बाद हथियार बंद वनमानुषों की टोली वहाँ आई। उन्होंने उन दोनों का मुआइना किया। वनमानुषी की धड़कन बंद थी। उसकी धड़कन अभी थी।

"इसे लेकर हम कहाँ जाएँगे? बेकार अस्पताल का ख़र्चा! सरकारी खजाने पर बोझ! इसका इनकाउंटर ही ठीक रहेगा।" वनमानुषों का सरदार बोला। "लेकिन यहाँ नहीं। इसे उठा। ले जा सड़क के उस पार–जंगल की तरफ़!"

दो वनमानुषों ने उसे दोनों ओर से उठाया। घसीटते हुए उसे बाहर ले गए। सड़क के उस पार जिस पेड़ के नीचे वह सोया था और वनमानुषी ने उसे जगाया था, वहाँ ले जाकर एक वनमानुष ने उसके सीने में गोली मार दी।

जंगल को जाने वाली पगडंडी वहाँ से कुछ ही दूरी पर उदास लेटी थी।

"कौन ठगवा नगरिया लूटल हो ...?"

पीली चिड़िया कहीं गा रही थी।