पीली टी शर्ट / अशोक कुमार शुक्ला

Gadya Kosh से
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लखनऊ के किस्से
यार..! तुम्हे डर नहीं लगता..?

हम तो बस उन दोनों की इस अदा को देखने भर से ही अंदर ही अंदर पिघल रहे थे... अभी उन मौतरमा ने अपनी स्कूल ड्रेस भी नहीं बदली थी। उसने खिड़की खोलने के बहाने बाहर झांका और फिर विमल भाई की ओर देखकर मुस्कराई। विमल भाई ने भी हाथ से कुछ लिखने जैसा इशारा किया तो वो मल्लिका एक हाथ से वही खिड़की पर ठहरने का इशारा करके वापिस चली गयी। हमने पूछा- "यह क्या माजरा है भाई..?" "बस देखते रहो मेरे दोस्त..!" विमल ने बड़ी अदा से कहा। कह नहीं सकते कि हमसे उनकी ये अदा नहीं देखी जा रही थी या मन में कुछ और था लेकिन हमने फिर से पूछा- "यार..! तुम्हे डर नहीं लगता..? कही कोई देख ले तो..क्या होगा..?" "कोई नहीं देखता..यार..वो क्या है कि बस ये जान लो की ये दो खिड़कियां ही देखती हैं एक दूसरे को बस.." विमल भाई ने बताया। "हमें नहीं लगता कि ऐसा है...समझ लो बच्चू...अगर किसी ने देख लिया और वार्डन सर से शिकायत कर दो तो हॉस्टल तो छूटेगा ही और जो होगा सो तो बस..." हमने पुनः अपने चिंता व्यक्त की। "अमां ..तुम बेकार की बाते मत करो और चुपचाप कमरे का दरवाजा बंद करके ऐसी जगह बैठ जाओ जहाँ से खिड़की न दिखे...समझे.." विमल ने हिदायत दी। कहने को हम भी अंदर ही अंदर सकपकाये हुए थे लेकिन इस ख़ास एपिसोड को देखने की इच्छा भी कम न थी।हमने लपक कर कमरे का दरवाजा बंद कर लिया और कोने में पड़े स्टूल पर ऐसे बैठ गए जैसे कोई मरीज डाक्टर के पास जाकर अपनी बारी के इन्तजार में बैठता है। इधर विमल भाई भी कुछ इंतजामो ने व्यस्त हो गए।उनकी टेबल पर पड़ी स्लेट और चाक को देखकर हमने पूछा- "यार ये स्लेट और चाक किसलिए..? क्या अब भी तुम स्लेट और चाक से लिखते हो..?.." विमल बोले-"यार ..क्या है न..फिजिक्स और मैथ के कठिन कठिन फार्मूले याद करने के लिए उन्हें कई बार लिखना होता है न...तो मैं यह स्लेट ले आया । इस पर बार बार लिखकर आसानी स्व याद हो जाते हैं फार्मूले...!" मैं फार्मूला याद करने की विमल भाई की इस तकनीक पर फ़िदा होता इससे पहले ही विमल भाई शरारत भरी मुस्कान के साथ बोले- "एक और ख़ास काम में आती है यह स्लेट.." "वो क्या..?" हमने उत्सुकता से पूंछा। प्रतिउत्तर में विमल भाई ने स्लेट और चाक उठाई और खिड़की के पास जाकर कुछ इस तरह रख दी कि सामने वाली खिड़की से नजर आती रहे। इतनी देर में वो मल्लिका भी अपनी स्लेट और चाक के साथ सामने वाली खिड़की पर आ गयी। हमारी समझ में कुछ नहीं आ रहा था ..लेकिन विमल भाई का उत्साह बता रहा था कि कुछ ख़ास होने को है। हम भी कौतुहल के साथ अगले पल घटित होने वाली कार्यवाही की प्रतीक्षा कर रहे थे। हमारे आश्चर्य की कोई सीमा न रही जब उन मौतरमा ने अपनी स्लेट पर कुछ लिखा और अपनी खिड़की पर कुछ इस तरह रख दी कि विमल भाई को दिखलाई पडे। कमरे के कोने में स्टूल पर बैठा मैं भी उस स्लेट पर लिखे हर्फ पढ़ सकता था। उस पर लिखा था- " शाम का सलाम.." विमल भाई ने भी अपनी स्लेट पर लिखकर सलाम पेश किया और हम सम्मोहित से उनके बीच जारी इस अनूठे वार्तालाप को देखकर भीतर ही भीतर रोमांचित होते रहे। वो मौतरमा अपनी वाली स्लेट पर एक सन्देश लिखती और फिर घर के अंदर चली जाती...थोड़ी देर में लौटकर आती तब तक विमल भाई अपना जवाब अपनी स्लेट पर लिख कर खिड़की पर लगा देते...वो आकर जवाब पढ़ती और अपनी वाली स्लेट पर अपनी जिज्ञासा लिखकर फिर घर के अंदर गायब हो जातीं। गजब की चैटिंग थी...हमें तो लगता है कि जुकरबर्क ने भी अवश्य कही ऐसा ही वार्तालाप देखा होगा तभी फेसबुक चैटिग का आविष्कार कर पाया होगा। उनके बीच जारी इस वार्तालाप में अचानक एक ख़ास मोड़ आया जब हम्हे देखा की सामने वाली स्लेट पर लिखा था- "आज वो पीली टी शर्ट वाला कौन था तुम्हारे साथ..?" विमल भाई जवाब लिखने से पहले हमारी ओर देखरेख मुस्कुराये तो हमने गौर किया कि हमारी टी शर्ट का रंग पीला था..! ओह हो...तो मौतरमा का यह जुमला हमारे लिए था... हम मन ही मन रोमांचित हो गए...। विमल भाई ने शरारत भरे अंदाज में अपनी स्लेट पर जवाब लिखा- "क्यों.. तुम्हे उससे क्या..मतलब?" बदले में जवाब आया- "नहीं हमें जानना जरूरी है.." "क्यों...जरूरी है..?" विमल ने पूंछा "पहले बताओ ...फिर बताएँगे.." उधर से अगला जवाब..आया और इधर हमारी धुकधुकी...बहुत तेजी से बढ़ गयी....